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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गडूच्यादिवर्गः । विदारी स्वादुकन्दा च सा तु क्रोष्ट्री सिता स्मृता । इक्षुगन्धा क्षीरवल्ली क्षीरशुक्ला पयस्विनी ॥ १७९ ॥ वाराहवदना गृष्टिदरेत्यपि कथ्यते । विदारी मधुरा स्निग्धा बृंहणी स्तन्यशुक्रदा ॥ १८० ॥ शीता स्वर्या मूत्रलाच जीवनी बलवर्णदा । गुरुः पित्तास्त्रपवनदाहान्हन्ति रसायनी ॥ १८१ ॥ १०५ टीका - और इस वाराहीकंदकों कोई आचार्य चर्मकारालुक कहते हैं, और ये आनूपदेशमें वराहके समान रोमवाला होता है ।। १७८ ॥ विदारी १, स्वादुकन्दा २, क्रोष्ट्री ३, सिता ४, इक्षुगन्धा ५, क्षीरवल्ली ६, क्षीरशुक्ला ७, पयस्विनी ८, ।। १७९ ।। वाराहवदना ९, गृष्टि १०, बदरा, ये विदारीकंदके नाम हैं, और ये मधुर होता है, स्निग्ध है, पुष्ट है, दुग्ध और शुक्रकों करनेवाला है ॥ १८० ॥ शीत, स्वरकों अच्छा करनेवाला है, मूत्रकों उत्पन्न करनेवाला है, जीवन है, बलवर्णकों देनेवाला है, भारी है, और रक्तपित्त, वात, दाह, इनका हरनेवाला है, और रसायनी है ॥ १८१ ॥ अथ मुसलीकन्दनामगुणाः. तालमूली तु विद्वद्भिर्मुसली परिकीर्तिता । मूली तु मधुरा वृष्या वीर्योष्णा बृंहणी गुरुः ॥ १८२ ॥ तिक्ता रसायनी हन्ति गुदजान्यनिलं तथा । टीका - तालमूलीकों विद्वानोंनें मुशली कही है. ये मूशली मधुर है, पुरुषत्वक करनेवाली है, वीर्यमें गरम है और पुष्ट तथा भारी होती है, और कडवी, रसायन है, तथा ववासीर बात उनको हरनेवाली है ॥ १८२ ॥ अथ शतावरीमहाशतावरीनामगुणाः. शतावरी बहुसुता भीरुरिन्दीवरी वरी ॥ १८३ ॥ नारायणी शतपदी शतवीर्या च पीवरी । महाशतावरी चान्या शतमूल्यर्धकण्टिका ॥ १८४ ॥ सहस्रवीर्या हेतुचरिष्या प्रोक्ता महोदरी । १४ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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