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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गडूच्यादिवर्गः। बलाचतुष्टयं शीतं मधुरं बलकान्तिकृत् । स्निग्धं ग्राहि समीरास्त्रपित्तास्त्रक्षतनाशनम् ॥ १४५॥ बलामूलस्त्वचचूर्ण पीतं सक्षीरशर्करम् । मूत्रातिसारं हरति दृष्टमेतन्न संशयः ॥ १४६ ॥ हरेन्महाबला कच्छं भवेदातानुलोमनी । हन्यादतिबला मेहं पयसा सितया समम् ॥ १४७ ॥ टीका-वरियार, सहोदयी, ककहिया, गुलशकरी, ये बलाचतुष्टय हैं. वाघ १, वाघालिक २, ये वरियारके नाम हैं. और महाबला १, शीतपुष्पा २, सहदेवी ३, ये सहदेवीके नाम हैं ॥ १४४ ॥ और इससे दूसरी ककन्तिका, अतिबला, ये ककरैयाके नाम ऋषियोंने कहै हैं. और गांगेरुकी १, नागवला २, ह्रस्वा ३, गवेधुका ४, ये गुलशकरीके नाम हैं ॥ १४५ ॥ ये चारों शीतल, मधुर, वल और कन्तिकों करनेवाली, चिकनी, और काविज हैं. वात, रक्त, पित्त, रक्तक्षत, इनकी हारक हैं ॥ १४६ ॥ वरियारेकी छालके चूर्णकों दूध औ शक्करके साथ पीनेसें मूत्रातीसारकों हरती है, इसमें संशय नहीं. और महाबला मूत्रकृच्छ्रकों हरती है, और वातकों अनुलोमन करती है, और गुलशकरी दूध, और चीनीके साथ पीनेसें प्रमेहकों हरती है ॥ १४७॥ अथ लक्ष्मणानामगुणाः. पुत्रकाकाररक्ताल्पबिन्दुभिाञ्छिता सदा। लक्ष्मणा पुत्रजननी बस्तगन्धाकतिर्भवेत् ॥ १४८॥ कथिता पुत्रदावश्यं लक्ष्मणमुनिपुङ्गवैः । टीका-पुत्रकाकार रक्तके अल्प बिन्दुओंसें लांछित होती है, लक्ष्मणा, पुत्रजननी, बस्तगन्धाकृति ॥ १४८ ॥ पुत्रदा, ये लक्ष्मणाके नाम हैं. मुनिश्रेष्ठोंने लक्ष्मणाकों अवश्य पुत्रके देनेवाली कही है. अथ स्वर्णवल्लीनामगुणाः. स्वर्णवल्ली रक्तफला काकायुः काकवल्लरी ॥ १४९॥ स्वर्णवल्ली शिरःपीडां त्रिदोषान्हन्ति दुग्धदा। For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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