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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गडूच्यादिवर्गः। आग्नोयो विषवद्यस्य फलमत्स्यनिषूदनम् ॥ १३४ ॥ टीका-चिल्हक, वातनिर्हार, श्लेष्मघ्न ये चीलूके नाम हैं. ये श्लेष्मका नाशक, धातुका पुष्ट करनेवाला, और गरम है. इसका फल विषके समान है, और मछरीका नाशक है ।। १३४ ॥ अथ टंकारीनामगुणाश्च. टंकारी वातजित्तिक्ता श्लेष्मघ्नी दीपनी लघुः । शोथोदरव्यथाहन्त्री हिता पीठविसर्पिणाम् ॥ १३५॥ टीका-टंकारी वातकों जीतनेवाली है, तिक्त है, और कफकी नाशक है, दीपन है, हलकी है, शोथ, उदरव्यथा इनका नाश करनेवाली है, और पीठ, विसपरोग, इनको हित है ॥ १३५॥ .. अथ वेतसनामगुणाः. वेतसो नम्रकः प्रोक्तो वानीरो वझुलस्तथा । अभ्रपुष्पश्च विदुलो रथशीतश्च कीर्तितः ॥ १३६ ॥ वेतसः शीतलो दाहशोथार्थोयोनिरुक्प्रणुत् । हन्ति वीसर्पकच्छ्रास्त्रपित्ताश्मरिकफानिलान् ॥ १३७ ॥ टीका–वेतस १, नम्रक २, वानीर ३, वञ्जुल ४, अभ्रपुष्प ५, विदुल ६, रथशीत ७, ये वतेके नाम हैं, ।। १३६ ॥ ये शीतल है. दाह, शोथ, बवासीर, योनिपीडा, इनको हरनेवाला है. और विसर्प, मूत्रकृच्छ्र, रक्तपित्त, पथरी, कफ, वायु, इनका नाश करनेवाला है ॥ १३७ ॥ अथ जलवेतसनामगुणाः. निकुञ्चकः परिव्याधो नादेयो जलवेतसः। जलजो वेतसः शीतः कुष्टहृदातकोपनः॥ १३८ ॥ टीका-निकुंचक १, परिव्याध २, नादेय ३, जलवतेस ४, ये जलवेतसके नाम हैं. ये शीतल है, कुष्ठका नाशक है, वातका प्रकोप करनेवाला है ॥ १३८ ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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