SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गच्यादिवर्गः । ९१ नको जीतता है ॥ ९९ ॥ और प्रमेह, श्वास, वायगोला, ववासीर, मूषेका विष, इनका नाशक है. अथ पारिभद्र ( जलनीम) नामगुणाश्च. पारिभद्रो निम्बतरुर्मन्दारः पारिजातकः ॥ १०० ॥ पारिभद्रोऽनिल श्लेष्मशोथमेदः कृमिप्रणुत् । तत्पत्रं पित्तरोगघ्नं कर्णव्याधिविनाशनम् ॥ १०१ ॥ टीका - पारिभद्र १, निम्बतरु २, मंदार ३, पारिजातक ४, ये जलनीमके नाम हैं, ॥ १०० ॥ ये वात, कफ, सूजन, मेद कृमि, इनका हरनेवाला है, और इसका पत्र पित्तरोगका नाशक है, और कर्णारोगकाभी हरनेवाला है ॥ १०१ ॥ अथ काञ्चनार (कचनार) नामगुणाश्च. काञ्चनारः काञ्चनको गण्डारिः शोणपुष्पकः । ( अथ कचनारभेदः) कोविदारश्वमरिकः कुद्दालो युगपत्रकः ॥ १०२ ॥ कुण्डली ताम्रपुष्पश्चाश्मन्तकः स्वल्पकेसरी । काञ्चनारो हिमो ग्राही तुवरः श्लेष्मपित्तनुत् ॥ १०३ ॥ कृमिकुष्ठगुदभ्रंशगंडमालाव्रणापहः । कोविदारोपि तद्वत्स्यात्तयोः पुष्पं लघु स्मृतम् ॥ १०४ ॥ रूक्षं संग्राहि पित्तास्त्रप्रदरक्षयकासनुत् । ये टीका - काञ्चनार १, काञ्चनक २, गंडारी ३, शोणपुष्पक ४, ये कचनारके नाम हैं, अब दूसरा कचनारके नाम लिखे हैं. कोविदार १, चमरिक २, कुद्दाल ३, युगपत्रक ४, ॥ १०२ ॥ कुण्डली ५, ताम्रपुष्प ६, अश्मंतक ७, स्वल्पकेसरी ८, दूसरा कचनार के नाम हैं. ये शीतल, काविज, कसेला, कफ पित्तका हारक है ॥ १०३ ॥ कृमि, कुष्ठ, गुदभ्रंश, गंडमाला, घाव, इनका हरनेवाला है, और दूसरा कचनारभी इसीके समान गुणवाला होता है, और इनका फूल हलका है ॥ १०४ ॥ रूखा, काविज, रक्तपित्त, प्रदर, क्षय, कास, इनकाभी हरनेवाला है. For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy