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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 66 हरीतक्यादिनिघंटे ववासीर, घाव, और शूल, इनको जीतनेवाली है ॥ ८१ ॥ और कुछ क्षारवाली होती है, और कफकों जीतनेवाली होती है, तिक्त, कडवी, और कसेली, तीक्ष्ण, गरम, कृमिकों नाश करती है, हलकी, पित्तकों उत्पन्न करनेवाली, और गर्भकी गिरानेवाली है ॥ ८२॥ अथ करवीर(श्वेतरक्तकनेर)नामगुणाः. करवीरः श्वेतपुष्पः शतकुम्भोऽश्वमारकः । द्वितीयो रक्तपुष्पश्च चण्डातो लगुडस्तथा ॥ ८३ ॥ करवीरदयं तिक्तं कषायं कटुकं च तत् । व्रणलाघवकन्नेत्रकोपकुष्ठव्रणापहम् ॥ ८४ ॥ वीर्योष्णं कमिकण्डूनं भक्षितं विषवन्मतम् । टीका-सफेद फूलके कनेरकों शतकुम्भ अश्वमारक कहते हैं, और लाल कनेरकों चंडात, लगुड, कहते हैं । ८३ ॥ दोनों कनेर तिक्त, कसेले, और कडवे होते हैं, और घावोंकों भरनेवाले हैं और नेत्र, कुष्ठ, व्रण, इनकों शमन करनेवाले हैं ।। ८४॥ तथा वीर्यमें गरम हैं, कृमि और खुजली इनको हरनेवाले हैं, और खानेमें विषके समान हैं. अथ धतूरनामगुणाः. धतूरधूर्तधत्तूरा उन्मत्तः कनकाह्वयः ॥ ८५॥ देवताकितवस्तूरी महामोही शिवप्रियः। मातुलो मदनश्चास्य फले मातुलपुत्रकः ॥ ८६॥ धत्तूरो मदवर्णाग्निवातकज्वरकुष्ठनुत् । कषायो मधुरस्तिक्तो यूकालिक्षाविनाशकः ॥ ८७ ॥ उष्णो गुरुर्वणश्लेष्मकण्डूकमिविषापहः। टीका-धतूर, धतूरा, उन्मत्त, स्वर्णके नामोंवाला ॥ ८५ ॥ देवता, कितवस्तूरी, महामोही, शिवप्रिया, मातुल, मदन, ये धतूरेके नाम हैं. और इसके फलकों मातुलपुत्र कहते हैं ॥ ८६ ॥ ये मदकारी, अग्नि वात इनकों करनेवाला है, ज्वर, कुष्ठका हरनेवाला है, और कसेला, मधुर, तिक्त, जूवालिक इनका हरने For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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