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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गडूच्यादिवर्गः । शूलशोथ कटीबस्तिशिरःपीडोदरज्वरान् ॥ ६३ ॥ व्रणश्वासकफानाहकासकुष्ठाममारुतान् । एरण्डपत्रं वातघ्नं कफकृत्कृमिनाशनम् ॥ ६४॥ मूत्रकृच्छ्रहरं चापि पित्तरक्तप्रकोपनम् । वातार्यप्रदलं गुल्मबस्तिशूलहरं परम् ॥ ६५ ॥ कफवात मीन्हन्ति वृद्धिं सप्तविधामपि । एरण्डफलमत्युष्णं गुल्मशूलानिलापहम् ॥ ६६ ॥ यल्लीहोदरार्शोघ्नं कटुकं दीपनं परम् । तद्वन्मज्जा च विभेदी वातश्लेष्मोदरापहा ॥ ६७ ॥ टीका-शूल, शोथ, तथा कटि, पेडू, शिर, इनकी पीडा, उदररोग, ज्वर ॥ ६३ ॥ बद, श्वास, कफ, अफरा, कास, कुष्ठ, आमवात, इनको हरनेवाला है. अंडीका पत्रा वातनाशक, कफवमिकों हरनेवाला है ॥ ६४ ॥ और मूत्रकृच्छ्रका हरनेवाला है, तथा पिरक्तका प्रकोप करनेवाला है, अंडीका अग्रदल वायगोला, पेडूका शुल, इनका नाशक है ॥ ६५ ॥ कफ, वात, कृमी, और सातप्रकारकी अंडवृद्धी इनका नाशक है. और अंडीका फल बहुत गरम होता है, और वायगोला, शूल, वात, इनका हरनेवाला है ॥ ६६ ॥ यकृत, प्लीह, उदर, बवासीर, इनका नाशक हैं, कटु है, अत्यन्त दीपन है, इसीप्रकार इसकी गिरी मलकों भेदन करनेवाली है, वात, कफ, तथा उदरकी नाशक होती है ॥ ६७ ॥ अथ शुक्कालर्कनामगुणाः. अलर्को गुणरूपः स्यान्मन्दारो वसुकोऽपि च । श्वेतपुष्पः सदापुष्पः सबालार्कः प्रतीपसः ॥ ६८ ॥ रक्त परोऽर्कनामा स्यादर्कपर्णो विकीरणः । रक्तपुष्पः शुक्लफलस्तथा स्फोटः प्रकीर्तितः ॥ ६९॥ अर्कद्वयं सरं वातकुष्ठकण्डूविषव्रणान् । निहन्ति लीहगुल्मार्शः श्लेष्मोदरशकृत्कमीन् ॥ ७० ॥ अलर्ककुसुमं वृष्यं लघु दीपनपाचनम् । For Private and Personal Use Only ८५
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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