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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्वाक्षर - पु० [सं०] दस्तखत, हस्ताक्षर, सही; (आटोग्राफ) किसी ( प्रसिद्ध ) व्यक्तिका स्वहस्ताक्षर । -युक्त- वि० जिसपर दस्तखत किया गया हो । स्वाक्षरित - वि० [सं०] हस्ताक्षर किया हुआ । स्वागत - पु० [सं०] किसीके आगमनपर कुशल प्रश्न आदिके द्वारा इर्षप्रकाश, भगवानी; एक बुद्ध । वि० स्वयं आया हुआ; बौद्ध उपायोंते प्राप्त (धनादि) । -कारिणी समिति, -समिति - स्त्री० किसी सभा, सम्मेलन में आनेवाले प्रतिनिधियों, दर्शकोंको टिकाने खिलाने-पिलानेका प्रबंध करनेवाली स्थानीय समिति (रिसेप्शन कमीटी) । - कारी (रिन्) - वि० स्वागत करनेवाला । - पतिकास्त्री० दे० 'आगत-पतिका' - प्रश्न- पु० मिलनेपर स्वास्थ्यादि के संबंध में पूछना । भाषण- पु० स्वागतसमिति के अध्यक्षका भाषण । ८९३ स्वस्रीया, स्वत्रेयी - स्त्री० [सं०] बहिनकी बेटी, भानजी । स्वहाना* - अ० क्रि० दे० 'सुहाना' | स्वांग - पु० [सं०] अपना ही अंग । स्वाँग - पु० हँसी-मजाक या धोखा देनेके लिए बनाया हुआ दूसरेका रूप; हँसी-मजाकका खेल-तमाशा; होली आदिपर निकाला जानेवाला हास्यजनक वेशभूषावाला जुलूस; करतब; जो न हो वैसा होनेका ढब अख्तियार करना | मु०- बनाना, - भरना-रूप भरना, भेस बनाना; नकल करना । - लाना - दे० 'स्वाँग भरना' । स्वाँगना * - स० क्रि० स्वाँग बनाना । स्वाँगी - पु० ढोंगी, स्वाँग करनेवाला, अनेक रूप भरने स्वादनीय - वि० [सं०] जायकेदार; स्वाद लेने योग्य । वाला व्यक्ति । वि० रूप बनानेवाला । स्वादित - वि० [सं०] चखा हुआ, जिसका स्वाद लिया स्वांगीकरण - पु० (एसीमिलेशन) किसी पोषकतत्त्व, विचार, गया हो; जायकेदार बनाया हुआ; प्रसन्न किया हुआ । सिद्धांतादिको अपने में पूरी तरह मिला लेना या मिला- स्वादिष्ट - वि० दे० 'स्वादिष्ठ' । कर एक कर लेना, आत्मसात् करना । स्वतः सुखाय - [सं०] केवल अपना मन प्रसन्न करने, जी बहलाने के लिए, किसी अन्य लाभके लिए नहीं । स्वांत- पु० [सं०] अपना अंत, मृत्युः हृदय, अंतःकरण; गह्वर । -ज-पु० प्रेम; काम । - स्थवि हृदयस्थ । स्वाँस* - पु०, स्त्री० दे० 'साँस' | स्वादिष्ठ - वि० [सं०] अतिशय स्वादु बहुत ही जायकेदार । स्वादी ( दिन) - वि० [सं०] स्वाद लेनेवाला । स्वादीला - वि० स्वादिष्ठ, जायकेदार, सुस्वादु । स्वादु - वि० [सं०] स्वादयुक्त, जायकेदार, रुचिकर; मीठा; सुंदर; इष्ट । - फला- स्त्री० बेरका पेड़ खजूरका पेड़; मुनक्का । स्वाँसा* - स्त्री० दे० 'साँस' । स्वादेशिक - वि० [सं०] स्वदेश संबंधी । स्वाद्य - वि० [सं०] स्वाद लेने योग्य; जायकेदार । स्वाधिकार - पु० [अ०] अपना अधिकार या पद; अपना कर्तव्य | [सं०] स्वच्छंदता, नियंत्रणका अभाव, स्वागतिक - वि०, पु० [सं०] स्वागतकर्ता । स्वाच्छंथ - पु० निरंकुशता । स्वातंत्र्य - पु० [सं०] आजादी, स्वतंत्रता । - युद्ध - पु० ( बार ऑफ इंडिपेंडेंस ) विदेशी शासनसे मुक्त होने या स्वतंत्र होनेके लिए किया जानेवाला युद्ध । संग्रामपु० आजादी की लड़ाई | - प्रिय, - प्रेमी ( मिनू ) - वि० स्वतंत्रताका प्रेमी, आजादी पसंद | स्वात* - स्त्री० दे० 'स्वाति' । स्वाति - स्त्री० [सं०] २७ नक्षत्रों में से १५ वाँ जो शुभ माना गया है (कवि समय के अनुसार चातक इसमें ही होनेवाली वर्षाका जल पीता है, और वही जल सीपके संपुटमें पहुँच कर मोती और बाँसमें वंशलोचन बनता है); सूर्यकी एक पत्नी; तलवार | - पंथ, - पथ* - पु० आकाशगंगा । - बिंदु - पु० स्वाति नक्षत्र में बरसनेवाले जलकी बूँद । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वस्त्रीया - स्वापन - योग - पु० आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में स्वाति नक्षत्रका चंद्रमा के साथ योग :- सुत, सुवन* - पु० मोती । स्वाती - स्त्री० [सं०] दे० 'स्वाति' । स्वाद - पु० [सं०] कुछ खाने-पीने से जीभको होनेवाला रसानुभव, जायका, लज्जत; मजा; (काव्यगत) सौंदर्य; * चाह, इच्छा । मु० - चखाना - दे० 'मजा चखाना' । स्वादक - पु० [सं०] स्वाद चखनेवाला; राजा आदिकी पाकशाला में इस कामपर नियुक्त कर्मचारी । स्वादन - पु० [सं०] स्वाद लेना, चखना; रस लेना (कविता आदिका); जायकेदार बनाना । स्वाधिष्ठान - पु० [सं०] हठयोग में माने हुए छः चक्रोंमें से दूसरा जिसका स्थान शिश्नमूल और रूप षड्दलकमलका माना जाता है; अपना स्थान । स्वधीन - वि० [सं०] जो अपने ही अधीन हो, दूसरे के नहीं, स्वतंत्र, आजाद; जो अपने वश में हो; स्वच्छंद, किसीका अंकुश, दाब न माननेवाला । - पतिका, - भर्तृका - स्त्री० पतिको अपने वशमें रखनेवाली नायिका । स्वाधीनता- स्त्री० [सं०] स्वतंत्रता, आजादी । -प्रेमपु० स्वातंत्र्यप्रियता, आजादीका प्रेम । स्वाधीनी* - स्त्री० दे० 'स्वाधीनता' | स्वाध्याय- पु० [सं०] आवृत्तिपूर्वक वेदाध्ययन; शास्त्राध्ययन; वेद; अध्ययन; वह दिन जब अनध्यायके बाद वेदपाठ आरंभ होता है । स्वाध्यायार्थी (र्थिन् ) - पु० [सं०] वह विद्यार्थी जो अध्ययनकालमें अपनी जीविका खुद कमानेका यत्न करे । स्वाध्यायी (यिन् ) - वि० [सं०] वेदपाठ करनेवाला; नियमपूर्वक अध्ययन करनेवाला | स्वान - पु० [सं०] शध्द, ध्वनि; घड़घड़ाहट ( रथादिकी ); * दे० 'श्वान' | स्वाना * - स०क्रि० 'सुलाना' । स्वानुभव - पु०, स्वानुभूति - स्त्री० [सं०] अपना अनुभव | स्वानुरूप - वि० [सं०] अपने अनुरूप, योग्य; सहज । स्वाप - पु० [सं०] नींद; स्वप्न; तंद्रा; सुन्न हो जाना । स्वापक - वि० [सं०] निद्रा लानेवाला । स्वापन - पु० [सं०] सुलाना, नींद लाना; मंत्रबल से चालित एक अस्त्र जिसके प्रभावसे शत्रुदल सो जाता था; For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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