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आँखड़ी - आंबिय
रखना - सामने रखना । - के डोरे-आँखों के सफेद भागपर लाल रंगकी बारीक नसें । - के तारे छूटना - चोट आदिके कारण चकाचौंध होना । -के सामने नाचना - स्मृतिमें बना रहनाः दृश्य सामने रहना । - देखा हुआ - स्वयं देखा हुआ । - पर पट्टी बाँध लेना - ध्यान न देना । पर परदा पड़ना-भ्रम होना, समझमें न आना । - पर बैठाना - आदर के साथ रखना । - पर रखना - खातिरदारी के साथ रखना । -मेंनजर में, परखमें । - में काजल घुलना - काजलका खूब लगना । - में खून उतरना - क्रोधसे आँखोंका लाल होना । - में चढ़ना-पसंद आना, जँचना । - में चुभना - अच्छा न लगना, खटकना । में टेसूमें तीसी, - में सरसों फूलना - ध्यान में रहनेवाली बात सर्वत्र दिखाई देना; मस्ती आना । - में धूल झोंकना या डालना - धोखा देना । - में नाचना-ध्यान बना रहना । दृश्य सामने रहना । - में फिरना-ध्यान बना रहना ; - में बसना, - में समाना - दिल में घर कर लेना । - में बैठना - पसंद आना । - में भंग घुटना - भंगके नशे में होना । - में रखना - प्यारसे रखना, हिफाजत से रखना । - में रात काटना - जागकर रात बिताना। - में शील होना - मुरौवती होना । - में समाना - ध्यानपर चढ़ना; स्मरण बना रहना । लगना - ऊपर आना, शरीरपर बीतना । - से उतरना - नजरोंसे उतर जाना। -से ओझल होना - सामने न रहना, दृष्टिसे परे होना । - से काम करना - इशारेसे काम निकालना । - से गिरना - आँखोंसे उतरना । -से लगाकर रखना - प्यार के साथ रखना । आँखड़ी * - स्त्री० आँख; अँखड़ी ।
आँखा - पु० एक तरह की छलनी ।
आँग* - पु० अंग; शरीर; स्तन । आँगन - पु० चौक, अजिर, घरके भीतरका सहन । आंगिक - वि० [सं०] अंग या शरीर संबंधी; अंगचेष्टा द्वारा व्यंजित या कृत ( भाव, अभिनय आदि ) । पु० शारीरिक चेष्टाः कायिक अनुभाव । - अभिनय - पु० शारीरिक चेष्टाओं द्वारा किया जानेवाला अभिनय । आँगी* - स्त्री० अँगिया ।
आँगुर (ल) पु० अंगुल ।
आँगुरिया * - स्त्री० दे० 'आँगुर' |
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आदिका सामने रहनेवाला छोर; ॐचला; स्तन (ला० ) । मु० - दबाना - दूध पीना । - देना- बच्चेको दूध पिलाना; विवाहकी एक रीति; आँचलसे हवा करना । - में बाँधना - गाँठ बाँधना, अच्छी तरह याद कर लेना; ( किसी वस्तुको ) सर्वदा साथ रखना । - लेना - आँचल से पैर छू
कर प्रणाम करना । आँजन-पु० अंजन |
आँजना - स० क्रि० अंजन लगाना । आंजनेय - पु० [सं०] हनूमान् ।
आँट - पु० अँगूठे और तर्जनी के बीच की जगह; दाँव; पूला; लाग-डाट; गाँठ । - साँट - स्त्री० साजिश, बंदिश । मु० - पर चढ़ना - दाँवपर चढ़ना । आँटना* - अ० क्रि० अँटना; पूरा पड़ना; पार पाना; पहुँचना मिलना, हाथ लगना । स० क्रि० अँटाना । आँटी-स्त्री० गुल्ली-डंडा खेलनेकी गुल्ली; पूला; सूतका लच्छा; कुश्तीका एक पेच; टेंट ।
आँठी - स्त्री० दही, बलगम आदिका थक्का; गाँठ; गुठली । आँड़ - पु० अंडकोष |
आँड़ी - स्त्री० गाँठ, कंद; सिरा; पहियेकी साभी । आँडू - वि० जो वधिया न हो, अँडुआ (बैल) । भाँत - स्त्री० पाचन संस्थानका आमाशय के बादसे मलद्वारतकका भाग जिसमें से होकर आहार, रसग्रहणके बाद, मलरूपमें बाहर निकलता हैं, अंत्र, अंतड़ी । मु० -उतरना - आँत उतनेकी बीमारी, अंत्रवृद्धि, 'हानियाँ' । - ऐंटना - आँतों में ऐंठन होना, मरोड़ होना । आँतें कुलकु (बु)लाना-भूखसे देचैन होना । - मुँह में आना - आँतों में वल पड़ना। समेटना - भूख सहना । - सूखना- बहुत भूखा होना । आँतोंका बल खुलना
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छककर खाना ।
आँतर - पु० अंतर; खेतका वह भाग जो एक बार जोतने के लिए घेरा जाता है; पानीको क्यारियोंके बीच छोड़ा गया
रास्ता ।
आंतरिक्ष- वि० [सं०] अंतरिक्ष-संबंधी, आकाशीय । आंत्र - वि० [सं०] आँतसे संबंध रखनेवाला । पु० आँत । आंत्रिक - वि० [सं०] अंत्र-संबंधी ।
आँदू*-५० सीकड़; बेड़ी ।
आंदोलन - पु० [सं०] इधर से उधर आना-जाना, झूलना, हिलना; हलचल, किसी बात के लिए व्यापक सामूहिक प्रयत्नः तहकीक |
आंदोलित - वि० [सं०] कंपित; झुलाया हुआ; हलचलसे पूर्ण । आँध-स्त्री० अँधेरा; रतौंधी; आफत |
आँगुरी* - स्त्री० उँगली ।
आँधी - स्त्री० महीन जालीसे मढ़ी छलनी । आँच - स्त्री० गरमी ; जलन; लपट; आग; ताव; तेज; चोट, हानि, अहित; संकट; प्रेमः कामताप । मु० - आनाहानि होना; कष्ट, आघात पहुँचना । - खाना- आँचपर पकाया जाना; (पकायी जानेवाली चीजका ) अधिक आँच
खा जाना, ताव खाना ।
आंचन, आंछन- पु० [सं०] अस्थिभंग, मोच आदि ठीक करना; शरीर से काँटा, बाण आदि निकालना ।
आँचना * - स० क्रि० जलाना, तपाना ।
आँचर* - पु० दे० 'आँचल' ।
बाहलदी - स्त्री० आमाहलदी ।
आँचल - पु० शाल, दुपट्टे आदिका छोरा साड़ी, धोती | आंबिकेय - पु० [सं०] कार्त्तिकेयः धृतराष्ट्र |
आँधना * - अ० क्रि० हल्ला बोलना, टूट पड़ना । आँधर, आँधरा - * वि० अंधा । आँधारंभ- पु० अंधेर, मनमाना कार्य । आँधी-स्त्री० धूलभरी जोरकी हवा, तूफान; भारी हलचल । वि० आँधी-जैसा वेगवान्, बहुत तेज । मु०-उठना - हलचल मचना; तूफान उठना ।
आँधे * - स्त्री० दे० 'अधी' ।
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