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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - कांत - पु० चंद्रमा । -मुख- पु० संध्या । विभावरीश- पु० [सं०] चंद्रमा । विभावसु-पु० [सं०] दे० 'विभा' के साथ | विभाषा - स्त्री० [सं०] विकल्प, चुनाव, पसंदकी स्वतंत्रता; व्याकरणका वह स्थान जहाँ अपवाद और विधान दोनों पाये जायँ । 089 या अवस्था जो मनमें किसी भावको उत्पन्न या उद्दीप्त करे; भावोदय या भावोद्दीपनका कारण (सा० ) । विभावन - पु० [सं०] कल्पना; चिंतन; अनुभूति; तर्क; परीक्षण; वह मानसिक व्यापार जिसके द्वारा काव्यके नायकादिके साथ श्रोता या पाठकका तादात्म्य होता है, साधारणीकरण (सा० ) । विभावना-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ (१) कारणके बिना या ( २ ) अपर्याप्त कारणसे अथवा (३) कारणका प्रतिबंध करनेवाली वस्तुके रहते हुए भी कार्यकी उत्पत्ति हो या (४) जहाँ अहेतुसे या (५) विपरीत हेतुसे कार्यकी उत्पत्ति दिखायी जाय या फिर (६) कार्य से ही कारणकी उत्पत्तिका वर्णन हो । विभावरी - स्त्री० [सं०] रात; तारोंवाली रात; हल्दी । विभोर - वि० निमग्न, तल्लीन । विभूति - स्त्री० [सं०] ऐश्वर्य; शक्ति; अलौकिक शक्ति महत्ता; अभ्युदय, समृद्धि; उच्च पद; धन; प्राचुर्य; गोबरकी राख; शक्ति प्रदर्शन; प्रभुता; लक्ष्मी; एक श्रुति (संगीत) । विभूतिमान् ( मन ) - वि० [सं०] शक्तिशाली; अलौकिक शक्तिसंपन्न; भस्म धारण किया हुआ । विभूषण - वि० [सं०] अलंकृत करनेवाला । पु० सजाना; अलंकार; मंजुश्री ; सौंदर्य; कांति । विभूषना* - स० क्रि० अलंकृत करना, सजाना; शोभित | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विभावन - विमला छेदने, काटनेवाला; अंतर करनेवाला; फूट डालनेवाला । विभेदक - वि०, पु० [सं०] काटने, छेदनेवाला; भेद दिखानेवाला; अंतर डालनेवाला । विभेदन- पु० [सं०] काटने, फाड़ने आदिकी क्रिया; धँसना; _फूट डालना; पृथक करना । विभेदना * - स० क्रि० काटना; छेदना; प्रवेश करना । विभेदी ( दिन) - वि० [सं०] काटने, छेदनेवाला; दूर, नष्ट करनेवाला; छेदकर प्रवेश करनेवाला; फर्क करनेवाला | विभेदीकरण- पु० [सं०] (डिसक्रिमिनेशन) करारोपण या व्यवहारादिमें एककी तुलना में दूसरेसे विभेद करना, विभेद या पार्थक्यका ध्यान रखना (अनुपालन करना) । विभेद्य - वि० [सं०] काटने, छेदने योग्य | करना । विभूषित - वि० [सं०] अलंकृत सजाया हुआ; गुणादिसे युक्त; शोभित । विभेंटन* - पु० भेंटनेकी क्रिया, आलिंगन । विभेद - पु० [सं०] तोड़ना, खंडित करना; विभाग करना; छेदना; पार्थक्य; संकोच; बाधा; परिवर्तन; मतभिन्नता, फूट अंतर प्रकार; विरोध, खंडन । -कारी (रिन्) - वि० विभ्रांत वि० [सं०] घूमा हुआ; चक्कर खाता, घूमता हुआ; चारों ओर फैला हुआ; भ्रममें पड़ा हुआ, घबड़ाया हुआ । - मना (नस) - वि० हतबुद्धि । विभाषित - वि० [सं०] वैकल्पिक । विभास - पु० [सं०] चमक; सात सूर्योमेंसे एक; एक राग । विभ्रांति - स्त्री० [सं०] चक्कर खाना; जल्दबाजी, घबड़ाहट; विभासना * - अ० क्रि० चमकना, झलकना । विभासित- वि० [सं०] दीप्त; चमकाया हुआ; प्रकाशित । विभिन्न - वि० [सं०] काटा, तोड़ा हुआ; छिदा हुआ; आहत; कई तरहका; मिश्रित । विभिन्नता - स्त्री० [सं०] विभिन्न होना, अलगाव । विभीषण- वि० [सं०] अति भयानक, बहुत डरावना; देशद्रोही (आ० ) । पु० रावणका एक भाई जो रामका पक्ष लेकर रावणसे लड़ा ! विभीषिका - स्त्री० [सं०] डरवाना; आतंक; भयंकर कांड । विभु - वि० [सं०] सर्वव्यापकः शक्तिशाली; योग्य, सक्षम; जितेंद्रिय; स्थायी; विस्तृत; महान् । पु० स्वामी, प्रभुः ईश्वर । विभुता - स्त्री०, विभुत्व - पु० [सं०] स्वामित्व, प्रभुत्व; ऐश्वर्य; शक्ति; व्यापकता । विभ* - पु० दे० 'विभव' (ऐश्वर्य, धन, प्रभुत्व ) । विभ्रम-पु० [सं०] इतस्ततः भ्रमण करना; चक्कर खाना; लुढ़कना; अस्थिरता; घबड़ाहट; संदेह; भ्रांति; सौंदर्य, शोभा; प्रणय केलि; एक हाव (सा० ) । भूल, भ्रम । विभ्राजित - वि० [सं०] चमकाया हुआ । विभ्राट - पु० बखेड़ा, गड़बड़ी; आफत | विमंडन - पु० [सं०] सजाना, अलंकरण; अलंकार । विमंडित - वि० [सं०] सजाया हुआ, भलंकृत; से युक्त । विमत- वि० [सं०] भिन्न या विरुद्ध मतका । पु० विपरीत मत; शत्रु । विमति टिप्पणी - स्त्री० [सं०] (मिनिट ऑफ डिसेंट) किसी विषयकी जाँच, अध्ययन आदिके बाद तैयार किये गये प्रतिवेदनमें बहुमतने जो सम्मति दी हो, उससे अपना मतभेद प्रकट करनेके लिए एक या एकाधिक सदस्यों द्वारा अलग से जोड़ी गयी टिप्पणी या वक्तव्य । विमद - वि० [सं०] मदरहित; निरानंद, जो मस्त न हो (हाथी) । विमन - वि० खिन्न, उदास, अनमना । विमनस्क - वि० [सं०] खिन्न, उदास; व्याकुल; अधीर । विमर्द - पु० [सं०] रगड़ना, पीसना रौंदना; संघर्ष ; नाश । विमर्दक- वि० [सं०] मलने, रौदने, नष्ट करनेवाला । विमर्दित - वि० [सं०] पीसा, रौंदा हुआ; रगड़ा हुआ । विमर्श - पु० [सं०] विचार, विवेचन; परीक्षण; समीक्षा; तर्क; शान । - वादी (दिन्) - वि० तर्क करनेवाला । विमर्शन-पु० [सं०] तर्क-वितर्क; परीक्षण; समीक्षा । विमर्शी (शि) - वि० [सं०] विचार करनेवाला; समीक्षक । विमर्ष - पु० [सं०] विचारणा, विवेचन; आलोचना; उद्वेग; व्याकुलता; क्षोभ । विमल- वि० [सं०] साफ, बेदाग; विशुद्ध; निर्दोष; स्पष्ट; पारदर्शक; श्वेत; सुंदर । विमला - स्त्री० [सं०] सिद्धिकी दस भूमियों, अवस्थाओं में से एक; चाँदीका मुलम्मा; सरस्वती । - पति-पु० ब्रह्मा । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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