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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विपरीता - स्त्री० [सं०] दुश्चरित्रा, पुंश्चली | विपरीतार्थ - वि० [सं०] उलटे अर्थवाला | विपर्णक - वि० [सं०] विना पत्तोंका । पु० पलाशका पेड़ । विपर्यय - पु० [सं०] व्यतिक्रम; विपरीतता, प्रतिकूलता; चक्कर; पलायन; समाप्ति; परिवर्तन ( स्थान, वस्त्रादिका ); हानि; विनाश; विनिमय; भूल; संकट; शत्रुता; विरोध । - से भी- अ० (वाइस वर्सा) दे० 'विपरीततः भी' । विपर्यस्त - वि० [सं०] परिवर्तितः अस्त व्यस्त; उलटापलटा हुआ; औरका और समझा हुआ । विपर्याय - पु० [सं०] (एंटोनिम ) किसी शब्दका विलकुल विरोधो अर्थ प्रकट करनेवाला शब्द । ७३९ सबके लिए एक-सा होता है, समपरिधान । विपरीत - वि० [सं०] उलटा; प्रतिकूल; नियमविरुद्ध असत्य; विरुद्ध; बेमेल; अशुभ; भिन्न । पु० एक अर्थालंकार - 'जहाँ कार्यसिद्धि में स्वयं साधकका ही बाधक होना दिखलाया जाय' - (केशव); एक रतिबंध । -कर,कारक, - -कारी (रिन् ), - कृत् - वि० विरुद्ध काम करनेबाला । - गति - वि० उलटी दिशा में जानेवाला । -चेता( तस ), बुद्धि, मति - वि० जिसका दिमाग फिर गया हो। -रति--स्त्री० रतिका एक प्रकार ।-लक्षणास्त्री० व्यंग्य में उलटी बात कहना । विपरीततः भी- अ० ( वाइस वर्सा ) ( पहले कहे हुएके) उलटे प्रकार या क्रमसे भी, विपर्यय से भी । विपरीतता - स्त्री०, विपरीतत्व - पु० [सं०] विपर्यय, विप विप्रच्छन्न- वि० [सं०] छिपा हुआ, गुप्त । रीत होनेका भाव | विप्रणाश- पु० [सं०] नाश, लोपः मृत्यु | विप्रतारित - वि० [सं०] जो छला गया हो । विप्रतिकृत - वि० [सं०] जिसका विरोध या प्रतिशोध किया गया हो । कृष्ण | विपुत्र - वि० [सं०] पुत्रहीन | विपुल - वि० [सं०] बृहत्, बड़ा; विस्तृत अधिक, प्रचुर; गहरा, अगाध । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपरीत- विप्लव मिला हो । विपोहना * -स० क्रि० पोहना, छेदना; पोतना; संहार विपुलता - स्त्री, विपुलत्व - पु० [सं०] आधिक्य; प्राचुर्य; विस्तार | करना । विप्र- पु० [सं०] ब्राह्मणः पुरोहित; चतुर आदमी । - चरण, -पद-पु० विष्णुके हृदयपर अंकित भृगुका चरणचिह्न । - समागम - पु० ब्राह्मणोंसे मेल-जोल रखना । - स्व-पु० ब्राह्मणकी संपत्ति । विप्रकृत - वि० [सं०] अपकृत, अनाहत, क्षतिग्रस्त । विप्रकृति-स्त्री० [सं०] अपकार; परिवर्तन; क्षति; विरोध; प्रतिशोध । विप्रकृष्ट - वि० [सं०] खींचकर हटाया हुआ, दूर किया हुआ; दूरवर्ती; बहुत दूर; फैलाया हुआ । विपर्यास - पु० [सं०] परिवर्तन; विपरीतता, प्रतिकूलता विप्रमत्त-वि० [सं०] प्रमादरहित । विप्रमोहित-वि० [सं०] हतबुद्धि | विप्राण- पु० [सं०] चल देना; पलायन | विप्रयुक्त - वि० [सं०] अलग किया हुआ; वियुक्त; मुक्त किया हुआ; वंचित, विहीन । उलट-पुलट, भ्रम, भूल, मिथ्या ज्ञान । विपल - पु० [सं०] समयका एक बहुत छोटा मान, पलका साठवाँ भाग । विप्रयोग- पु० [सं०] वियोग (विशेषकर प्रियसे), विच्छेद | विप्रयोगी (गिन्) - वि० [सं०] (प्रिय आदिसे) वियुक्त, जो अलग हो । विपलायन - पु० [सं०] भागना; विभिन्न दिशाओं में भागना । विपाक - पु० [सं०] पकना; पूर्ण दशाको प्राप्त होना; पचना; परिणाम; कर्मका फला अवस्था परिवर्तन | विपाटक- वि० [सं०] फाड़ने, फोड़ने, उखाड़नेवाला । विपाटन - पु० [सं०] उखाड़ने, फोड़नेकी क्रिया । विपादिका - स्त्री० [सं०] पैरका एक, रोग, पादस्फोट, बेवाई । विपादित - वि० [सं०] नष्ट किया हुआ; बध किया हुआ । विपाशा - स्त्री० [सं०] व्यास नदी । विपिन - पु० [सं०] जंगल, वन; उपवन । -चर- पु० वनचर; जंगली आदमी; पशु, पक्षी आदि । - पति-पु० सिंह । - विहारी (रिन् ) - - पु० वनमें विहार करनेवाला; विप्रतिपत्ति - स्त्री० [सं०] विरोध; मतभिन्नता; दो नियमोंका परस्पर विरुद्ध होना; भ्रांत धारणा; संदेह; विरोधी भाव; पारस्परिक संबंध; घबराहट; अभिशता; अपकीर्ति; विकृति | विप्रतिपद्य - वि० [सं०] जिसका विरोध किया जाय; विभिन्न प्रकार से सिद्ध किया जानेवाला । विप्रनष्ट-वि० [सं०] जो पूर्णतः नष्ट हो गया हो; लुप्त; निष्फल, बेकार | विप्रलंभ - पु० [सं०] छल, धोखा, बहकावा; नैराश्य; प्रेमियोंका वियोग विच्छेद; कलह । - श्रृंगार - पु० वियोगशृंगार जिसमें विरह-वर्णन होता है । विप्रलंभन - पु० [सं०] छल करना, धोखा देना । विप्रलब्ध - वि० [सं०] वंचित; छला हुआ; निराश; क्षतिग्रस्तः विरही । विप्रलब्धा - स्त्री० [सं०] संकेत-स्थल में प्रियके न मिलने से दुःखी नायिका | विप्रलाप - पु० [सं०] बेमतलब बकना; परस्पर खंडनमंडन करना; विवाद । विशेषक- पु० [सं०] ( रेमिटर ) किसी दूर रहनेवाले व्यक्ति के पास रुपया-पैसा या अन्य वस्तु भेजनेवाला । विप्रेषण- पु० [सं०] (रेमिटेंस ) किसी दूरस्थ आदमीके पास रुपया-पैसा आदि भेजना; वह वस्तु जो दूर भेजी जाय । विप्रोषित - वि० [सं०] परदेशमें रहनेवाला; निष्कासित । -भर्तृका - स्त्री० वह स्त्री जिसका पति विदेश में हो । विपुला - स्त्री० [सं०] पृथ्वी; एक छंद; आर्या छंदका भेद । विपुलाई * - स्त्री० दे० 'विपुलता' ।। विपुलेक्षण - वि० [सं०] बड़ी आँखोंवाला । विपुष्ट-वि० [सं०] जो पुष्ट न हो, जिसे पूरा पोषण न | विप्लव - पु० [सं०] प्लावन; उपद्रव, अशांति; हल्ला-गुल्ला; ४७ For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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