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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावान ६३५ मायामय-मार्च है; प्रकृति, अविद्या; जीवको बाँधनेवाले चार पाशोंमेंसे । मारतील-पु० एक तरहका बड़ा हथौड़ा। एक (शैवागम); मोहकारिणी शक्ति; लक्ष्मी, दुर्गाः प्रज्ञा मारना-स० क्रि० पीटना, प्रहार करना; चोट पहुँचाना, (वे०); कृपा, बुद्ध की माताका नाम; लीला, करामात किसी चीजसे आघात करना; ठोंकना (मेख); पटकना (यह सब उन्हींकी माया है); धन-दौलत (हिं०); ममता, (सिर); पछाड़ना; जान लेना, हत्या करना; काटना, (हिं०) संसारासक्ति, पुत्र कलत्रादिमें राग। -कार-पु० उड़ाना (गरदन); जीतना (मैदान, कुश्ती); नाश करना, जादूगर, इंद्रजाल करनेवाला ।-जाल-पु० माया, मोह- बरबाद करना; पकड़ना मछलियाँ); शिकार करना; का फंदा; घर-गृहस्थीका जंजाल । -जीवी(विन)- दबाना (गुस्सा, पित्ता); सहना (भूख, प्यास), प्रभावपु० दे० 'मायाकार'। -पटुः-वि० मायावी। -पति- रहित कर देना (जहरको मारना); भस्म, कुश्ता करना पु० ईश्वर । -पाश-पु० मायाकी फाँस, फंदा ।-पुरी- (धातु); लगाना (गोता, चक्कर)। स्त्री० हरिद्वार । -मृग-पु. सीताजीको छलनेके लिए | मारफत-स्त्री० [अ०] जरीया, वसीला; शानः अध्यात्ममारीच राक्षस द्वारा धृत स्वर्णमृगका रूप । -युद्ध-पु० | शान; अध्यात्म-विषयक रचना । मायावलसे किया जानेवाला युद्ध । -वाद-पु० संसार-मारवाड़ी-वि० मारवाड़ देशका । स्त्री० मारवाड़की भाषा। को मिथ्या माननेका सिद्धांत । -वादी(दिन)-पु० मारा-वि० मारा हुआ; ग्रस्त, पीडित । * स्त्री० माला मायावादको माननेवाला । -टूट आँसु जनु नखतन्ह मारा-प० । मु०-मारा मायामय-वि० [सं०] मायायुक्त । फिरना-दुर्दशाग्रस्त होकर जहाँ-तहाँ भटकना; दर-दरकी मायावती-स्त्री० [सं०] कामदेवकी स्त्री रति । ठोकरें खाना। (वत्)-वि० [सं०]दे० 'मायावी' । पु० कंस । मारात्मक-वि० [सं०] घातक, संहारकारी। मायावी(विन्)-वि० [सं०] भाया करने, जाननेवाला, मारामार-स्त्री० इफरात, बहुतायत; हलचल, भगदड़ जादूगर; छलनेवाला, फरेबी। दौड़-धूप; मारपीट । अ० बहुत जल्दी। मायिक-वि० [सं०] मायावाला; मायाकृत, बनावटी । मारि-स्त्री० [सं०] महामारी, मरी; मारण, वध । पु० जादूगर, माजूफल । मारिष-पु० [सं०] नाटकका सूत्रधार; नाटकादिमें किसी मायी(यिन्)-वि० [सं०] मायावाला; मायाविशिष्ट ।। सम्मानित व्यक्तिके संबोधनका शब्द: मरसा नामका साग । पु० जादूगर छलिया; परमेश्वर कामदेव अग्नि शिव । | मारी-स्त्री० [सं०] मरी, महामारी चंडी। मायूर-वि० [सं०] मयूर-संबंधी; मयूरपंखका बना। मारीच-पु० [सं०] एक राक्षस जिसने सीता-हरणके समय मायूस-वि० [अ०] निराश, भग्नहृदय । सोनेका मृग बनकर रामको ललचाया था; बड़ा हाथी । मायूसी-स्त्री० [अ०] नैराश्य, नाउम्मेदी। मारुत-पु० [सं०] वायुः वायुके अधिष्ठाता देवता; श्वास । मार-पु० [सं०] मारण, वध; मृत्युः कामदेव विघ्न प्रेम, -तनय,-सत-पु० हनूमान् । राग; ललचाने, बहकानेवाली शक्ति (बौद्ध); धतूरा। मारुतात्मज-पु० [सं०] हनूमान् । -जित्-पु. शिव; बुद्ध । मारुति-पु० [सं०] हनूमान् भीम । मार-स्त्री० * दे० 'माला'; मारनेकी क्रिया, चोट, मार-मारू-पु० युद्ध में गाया-वजाया जानेवाला एक राग; डंका; पीट, लड़ाई; निशाना (तोपकी मार); कष्ट, क्लेश (गरीबीकी मरुदेशवासी। वि० काट करनेवाला (मारू नयन); मार)। -काट-स्त्री० हरबे-हथियारकी लड़ाई, युद्ध युद्धोत्साह, रणरंग जगानेवाला (मारू बाजा)। खू रेजी। -धाड़,-पीट-स्त्री० लड़ाई, एक दूसरेको | मारे-अ०."के कारण, वजहसे। मारना। मार्ग--पु०[सं०] रास्ता, पथ भ्रमणपथ (ग्रहका)।-तोरणमारक-वि० [सं०] मारनेवाला, जान लेनेवाला; नाशक पु० (अभिनंदन आदिके लिए) रास्तेमें बनाया हुआ तोरण दमन या शमन करनेवाला। -स्थान-पु० कुंडली में | या फाटक ।-दर्शक-पु० रास्ता दिखानेवाला, रहनुमा । लग्नसे सातवाँ और दूसरा स्थान । -रक्षक-पु० (एस्कट) वह (सशस्त्र) व्यक्ति या व्यक्तिमारका-पु० [अं'मार्क'] चिह्न, निशान; [अ०] युद्धस्थल; समूह जो किसी अन्य व्यक्तिकी रक्षाके लिए मार्गमें उसके युद्ध; लड़ाई-झगड़ा; हंगामा। -(के)का-भारी, महत्त्व- साथ-साथ चले किसी जहाज या जहाजी बेड़ेकी रक्षाके पूर्ण (मारकेकी बात) । मु०-सर करना-युद्ध में जयलाभ | लिए साथ साथ चलनेवाला हवाई जहाज, विध्वंसक पोत करना। आदि ।-शोधक-पु० रास्ता साफ करनेवाला, अग्रणी। मारकीन-पु० एक मोटा, कोरा कपड़ा। मार्गण-पु० [सं०] अन्वेषण, खोज; जाँच; याचना बाण । मारकेश-पु० [सं०] मृत्युकी संभावना उपस्थित करनेवाला | मार्गणा-स्त्री० [सं०] अन्वेषण; याचना । ग्रहयोग। मार्गन*-पु० दे० 'मार्गण', (बाण, तीर)। मारग*-पु० दे० 'मार्ग'। मार्गशिर, मार्गशीर्ष-पु० [सं०] अगहनका महीना । मारगन-पु० दे० 'मार्गण', (बाण)-'राम मारगन-गन मागित-वि० [सं०] अन्वेषित । चले लहलहात जनु ब्याल'-रामा० । मार्गी (गिन)-पु०[सं०] आगे बढ़कर रास्ता बतानेवाला; मारजन-पु० दे० 'मार्जन'।। पथप्रदर्शक रास्तेपर चलनेवाला (समासमें)। मारण-पु० [सं०] मारना, जान लेना; शत्रुताके लिए मार्च-पु० [अं०] ईसवी सन्का तीसरा महीना सैनिकों का किया जानेवाला तांत्रिक अभिचार: भस्म करना । । नपी तुली चालसे चलना सेनाका प्रस्थान, कूच । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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