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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भ्रामक - मंजरीक भ्रामक - वि० [सं०] भ्रमजनक; धूर्त; बहकानेवाला । पु० सियार; चुबक; ठग | भ्रामर - वि० [सं०] भ्रमर-संबंधी । पु० भौरोंका इकट्ठा किया हुआ शहद, चुंबक | भ्रष्ट्र - पु० [सं०] आकाश; वह अथरी जिसमें भड़भूजे दाना भूनते हैं । भ्रात्रिक- पु० [सं०] शरीरकी एक नाड़ी | श, कंस, कंश, भ्रकंस - पु० [सं०] स्त्रीके वेश में काम करनेवाला नेट । भ्रुकुटि, भ्रुकुटी - स्त्री० [सं०] भ्रूभंग; भौं । भ्रव - स्त्री० भौंह | भ्र - स्त्री० [सं०] भौं । कुटि, कुटी - स्त्री० भ्रूभंग । म मंगला - स्त्री० [सं०] पार्वती; पतिव्रता स्त्री; सफेद दूब । मंगलाचरण - पु० [सं०] शुभ कार्यके आरंभ में मंगलकामना से की जानेवाली देवस्तुति; ग्रंथारंभ में लिखा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१० - कुटी मुख - पु० एक साँप । -क्षेप - विक्षेप - पु० भौं टेढ़ी करना, भ्रूभंग | -भंग, -भेद - पु० भौं टेढ़ी करना, भौं चढ़ाकर रोष प्रकट करना । - मध्य-पु० दोनों भवोंके बीचका स्थान । - लता - स्त्री० मेहराबदार भौं । -विक्रिया - स्त्री० भ्रूभंग । - विलास - पु० भवोंका मोहक संचालन, भंगी । भ्रूण - पु० [सं०] गर्भस्थ शिशु । -न-पु० भ्रूणहत्या करनेवाला । - हत्या - स्त्री० गर्भपात द्वारा गर्भस्थ शिशुकी हत्या करना । - हा ( हन् ) - पु० भ्रूणहत्या करने वाला । ष - पु० [सं०] नाश; गमन; डर । भ्वहरना * - अ० क्रि० भीत होना, डरना । म- देवनागरी वर्णमालाका पचीसवाँ व्यंजन वर्ण । मंखी - स्त्री० बच्चों के गलेमें पहनानेका एक जेवर । मंग - स्त्री० माँग, सीमंत । मँगता, मंगन - पु० भिखमंगा, याचक | मँगनी - स्त्री० माँगनेका भाव; माँगकर, काम हो जानेपर लौटा देनेका वचन देकर, पायी हुई चीज; ब्याह पक्का करनेकी रस्म । -की चीज़- पुनः लौटा देने की शर्तपर ली हुई वस्तु । मंगल - पु० [सं०] शुभ, कल्याण; सौभाग्य; अभीष्ट अर्थकी सिद्धि; सौरमंडलका एक ग्रह जो पृथ्वीका पुत्र माना जाता है; मंगलवार; विष्णु; अग्निका एक नाम । वि० कल्याण कारी, शुभ, शुभ लक्षणयुक्त; संपन्न; वीर । - कलशपु० दे० 'मंगलधट' | - काम - वि० मंगलकी कामना करनेवाला, शुभचिंतक । -कामना - स्त्री० कल्याणकी कामना । - कारक, -कारी (रिन्) - वि० कल्याणकारी | - कार्य - पु० शुभ कार्य, ब्याह, जन्म आदिका उत्सव | -काल-पु० शुभ घड़ी । -गान - पु० मंगलके अवसरपर होनेवाला गाना बजाना । -गीत- पु० मंगल अवसर पर गाया जानेवाला गीत । - ग्रह - पु० शुभ ग्रह; मंगल नामक ग्रह । - घट, पात्र- पु० शुभ कार्यों में देवता के सामने रखा जानेवाला जलपूर्ण घट । - वाद्य - पु० शुभ अवसरपर बजाये जानेवाले बाजे । - पाठक- पु० बंदीजन स्तुतिपाठक | -प्रद - वि० कल्याणकारी । - प्रदा- स्त्री०हल्दी; शमीका पेड़ । -वार, वासर - पु० सोमवार के बादका दिन, भौमवार ।-सूत्रपु० हल्दी में रँगा सूत जो ब्याइके समय वर-कन्याके हाथमें बाँध दिया जाता है; सधवा स्त्रियों द्वारा गलेमें पहना जानेवाला पवित्र सूत्र । -स्नान - पु० मांगलिक अवसरपर या मांगलिक पूजनके लिए किया जानेवाला स्नान । मंगलमय - वि० [सं०] कल्याणमय, मंगलरूप | मँगेतर - स्त्री० लड़की जिसकी किसी के साथ मँगनी हुई हो। मंगोल - पु० मनुष्योंकी चार मूल जातियों में से एक जो तिब्बत, चीन, जापान आदि में बसती है और जिसका रंग हलका पीला तथा नाक चिपटी होती है । मंच - ५० [सं०] खाट, मचिया; मचान; सिंहासन; रंगभूमि । - मंडप - पु० फसलकी रखवाली के लिए या विवाहादिके अवसरपर बनाया हुआ मचान । मंचिका - स्त्री० [सं०] चिया । मंछर* - पु० दे० 'मत्सर'; 'मच्छर' । मंजन-पु० दाँत साफ करनेके लिए औषधियोंका बना चूर्ण; स्नान । मँजना - अ० क्रि० माँजा जाना; अभ्यास होना, अनुभव से दक्षता प्राप्त होना । मंज़र-पु० [अ०] दृष्टिका आश्रय; दृश्य; नज्जारा; देखने योग्य वस्तु; स्थान; झरोखा | मंजरित - वि० [सं०] मंजरियोंसे लदा हुआ । मंगला - वि० मंगली (पुरुष); मंगलको पैदा होनेवाला । मंजरी - स्त्री० [सं०] कला, कोंपल, सीके में लगे हुए छोटे, - मुखी - स्त्री० वेश्या । घने फूल; मोती; लता; तुलसी । चामर-पु० मंजरीकी शकलका चवँर | मंजरीक - पु० [सं०] तुलसी; तिलक वृक्ष; बेत; अशोक वृक्ष; मोती । जानेवाला मांगलिक पद आदि । मंगलाचार - पु० [सं०] मंगलकृत्यके पहले होनेवाला मंगलगान; शुभानुष्ठान । मंगलाष्टक - पु० [सं०] वे मंत्र जिनका पाठ विवाहके समय वर-वधू के कल्याणार्थ किया जाता है। मंगली - वि० (स्त्री या पुरुष) जिसकी कुंडली में चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में मंगल पड़ा हो; (ऐसी कुंडली) जिसके चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में मंगल हो । स्त्री० इलदी ( कविप्रि० ) । मंगलेच्छु - वि० [सं०] मंगल चाहनेवाला, हितेच्छु । मंगलोत्सव - पु० [सं०] मांगलिक उत्सव । मंगल्य - वि० [सं०] मंगलकारक; सुंदर । पु० चंदन; सोना । मँगवाना, मँगाना - स०क्रि० किसीसे कोई चीज लाने या भेजने के लिए कहना । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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