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(दरी, कालीन, जाजिम इ० ); बिछावन; धरातल; कंकर आदि कूटकर पक्की की हुई जमीन, गच । फर्शी - वि० फर्शका | स्त्री० दे० 'फरशी' । - जूता - पु० फर्श पर या घर में पहननेका जूता; स्लीपर, चप्पल | - सलाम - पु० वह सलाम जिसमें सिर फर्शके साथ लग जाय, बहुत झुककर किया जानेवाला सलाम । - हुक्का - पु० चौड़े पेंदेका हुक्का ।
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फलंक * - पु० फलाँग; आकाश । फल-पु० [सं०] पेड़ पौधोंका गूदेदार बीजकोश; शस्य; संतान; कर्मपरिणाम, नतीजा; बदला; कर्मसे प्राप्त होनेवाला सुख-दुःख-रूप भोग; व्याज, नफा; गणितक्रिया से प्राप्त अंक; उद्देश्य, प्रयोजन; तीर बरछी आदिका अग्रभाग; तलवार आदिकी धार; ढाल; फाल; आर्तव; जायफल, गिरी । -कंटक - पु० कटहल । -काम - वि० फलकी कामना करनेवाला । -ग्रह, -ग्राही (हिन्) - वि० फल ग्रहण करने, लाभ उठानेवाला । - दाता (तृ), - प्रदवि० फल देनेवाला; लाभदायक -दान- पु० ब्याह पक्का करने के लिए फल, रुपये आदि देनेकी रस्म ।-दार - वि० [हिं०] फलनेवाला; फलयुक्त । - परिणति - स्त्री०, - परिणाम, - पाक - पु० फलका अच्छी तरह पक जाना । - परिरक्षण - पु० (प्रिजर्वेशन ऑफ फ्रूट्स ) रासायनिक साधनों या अन्य उपायों द्वारा फलोंको क्षतिग्रस्त होने, सड़ने आदिसे बचाना। -पुच्छ-५० गाजर - शलजम आदिके वर्गकी वनस्पति । - प्राप्ति-स्त्री० अभीष्ट - सिद्धि, सफलता । - फलहरी, - फलारी - स्त्री० [हिं०] कई तरह के फल, मेवे - फूल - पु० [हिं०] फल और फूल । - भाकू ( ज ), - भागी (गिन् ) - वि० फल भोगने या पानेवाला । - भुक्कू ( ज ) - वि० फलभोजी । पु० बंदर । - भूमि - स्त्री० कर्मफल भोगनेका स्थान ( स्वर्ग या नरक ) । - भोग- पु० कर्मफल ( सुख-दुःख ) का भोग; लाभादिका अधिकार । भृत्-वि० जिसमें फल लग रहे हों, फलोंसे भरा हुआ । -योग- पु० फलप्राप्ति, वेतन पुरस्कार; नाटक में नायककी उद्देश्य सिद्धिका स्थान । -राज-पु० तरबूज | -लक्षणा- स्त्री० प्रयोजनवती लक्षणा (सा०) । - वंध्य - वि० (वृक्ष) जिसमें फल न लगे । वति स्त्री० घाव में भरनेकी मोटी बत्ती । -वृक्ष - पु० फलनेवाला वृक्ष - वृक्षक-पु० कटहल | - शाक - पु० तरकारीके काम आनेवाला फल, शाकके ६ भेदों में से एक । - श्रेष्ठ - पु० आम । - सिद्धि - स्त्री० फलप्राप्ति । - हारी। - वि० जिसमें अन्न न पड़ा हो । हीन - वि० फलरहित, निष्फल । मु० - आना - ( पेड़ में ) फल लगना, फलना । - खाना - श्रम, सत्कर्मका फल भोगना । - पाना- नतीजा मिलना, कियेकी सजा मिलना । - लाना - फल लगना, फलना; (कर्मका) फलजनक होना । फलक-पु० [सं०] लकड़ीका तख्ता, पट्टी, ताँबे, हाथीदाँत, दफ्ती आदिका पट्ट जो लेख या चित्रके आधारका काम दे; चौकी; नितंब; हथेली; फल; परिणाम; लाभ; आर्तव; कमलका बीजकोष; ललाटकी अस्थि; धोबीका पाट; ढाल; फल, तीरकी गाँसी ।
फलक - पु० [अ०] आकाश; * स्वर्ग
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फर्शी - फलित
फलकना * - अ० क्रि० छलकना; फरकना । फलका - पु० फफोला, झलका । फलतः ( तस् ) - अ० [सं०] फलस्वरूप, इसलिए । फलना -- अ० क्रि० ( पेड़ में फल आना, फलयुक्त होना; फल देना, फलजनक होना; संतानवती होना; बहुतसे दानों या फुंसियोंका निकल आना । मु०-फूलना - फल युक्त होना; बालवच्चोंवाला होना, सुख-सौभाग्ययुक्त होना । फलकंद * - पु० दे० 'फरकंद' |
फलवान् (वत्) - वि० [सं०] फलयुक्त; फल देने या उत्पन्न करनेवाला; जिसमें नाटकका फल हो । पु० फलदार वृक्ष । फलश, फलस - पु० [सं०] कटहल |
फलसफा - पु० [अ०] तर्कविद्या, दर्शनशास्त्र; शान, विद्या । फलाँ - वि० [अ०] कोई आदिष्ट (व्यक्ति या वस्तु), अमुक पु० लिंग | - फलाँ - वि० अमुक-अमुक ।
फलाँग - स्त्री० छलाँग; छलाँग में ते की जानेवाली दूरी । फलाँगमा * - अ० क्रि० कूदना, छलाँग मारना । फलाकना - स० क्रि० छलाँग मारकर पार करना । फलाकांक्षा- स्त्री० [सं०] फलकी कामना । फलागम - पु० [सं०] फल आना; फल आनेका काल; कथावस्तुकी वह अवस्था जिसमें फलकी प्राप्ति होती है ( ना० ); शरद् ऋतु । फलाढ्य - वि० [सं०] फलोंसे भरा हुआ । फलाट्या - स्त्री० [सं०] जंगली केला । फलादन- वि० [सं० [ फल-भक्षक । पु० तोता । फलादेश - पु० [सं०] फल कहना, विशेषतः ग्रहादिका । फलाना - वि० दे० 'फलाँ' । स० क्रि० फलनेका कारण या प्रेरक होना ।
फलानुमेय - वि० [सं०] जो फलसे जाना जा सके । फलान्वेषी ( धिन् ) - वि० [सं०] फलका आकांक्षी । फलापेक्षा - स्त्री० [सं०] फलको अपेक्षा, फलाशा । फलाफल - पु० [सं०] कर्म-विशेषका शुभ-अशुभ फल । फलाम्ल - पु० [सं०] खट्टे फलवाला पेड़; अम्लवेत; इमली | - पंचक- पु० बेर, अनार, इमली, अम्लवेत और बिजौराका समाहार ।
फलार - पु० फलाहार । फलाराम - पु० [सं०] फलोंका बाग |
फलार्थी ( र्थिन् ) - वि० [सं०] फलकी कामना करनेवाला | फलालैन- पु० [अं० 'फ्लैनेल '] एक तरहका मुलायम ऊनी कपड़ा ।
फलाशी ( शिन् ) - वि०, पु० [सं०] फल खाकर रहनेवाला, फलाहारी ।
फलासव - पु० [सं०] दाख, खजूर आदिसे बनाया हुआ
आसव ।
फलाहार - पु० [सं०] फल-मूलका आहार । फलाहारी (रिन् ) - वि० [सं०] फलाहार करनेवाला । फलाहारी - वि० दूध आदिसे निर्मित, अन्न-रहित ( मिठाई आदि ) । फलित-वि० [सं०] फला हुआ, सफल; फलीभूत । - ज्योतिष - पु० ज्योतिषका वह अंग जो ग्रह-नक्षत्रोंकी गति से शुभाशुभ अष्ट बताता है ।
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