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पित्तल-पिलकना वि०पित्तके प्रकोपसे होनेवाला। -ज्वर,-दाह-पु० पिनपिनाना -अ०कि. 'पिन:पिन' शब्द करना; बच्चेका पित्तके प्रकोपसे होनेवाला ज्वर । -द्रावी (विन्)- नकियाकर और अस्पष्ट स्वरमें रुक-रुककर रोना। वि०पित्तको पिघलानेवाला । पु० मीठा नीबू ।-नाडी- पिनाक-पु० [सं०] शिवका धनुष् , अजगव; धनुष्; स्त्री० एक तरहका नाड़ी-व्रण । -नाशक-वि०पित्तका त्रिशूल । -गोता(प्त),-त्,-पाणि-पु० शिव ।' नाश या शमन करनेवाला। -पांडु-पु. पित्तविकारसे पिनाकी(किन्)-पु० [सं०] शिव । उत्पन्न होनेवाला एक रोग जिसमें नेत्र आदि पीले हो पिन्ना -वि. जो बराबर रोया करे, रोनेवाला। पु० जाते है । -पापड़ा-पु० [हिं०] पितपापड़ा।-प्रकोप- धुनकी । पु० पित्तका बढ़ जाना या कुपित हो जाना। -भेषज- पिन्हाना-स० कि. 'पहनाना'। अ० क्रि० दे० पु० मसूरकी दाल । -रक्त-पु० 'रक्तपित्त' नामक रोग। | ‘पेन्हाना'। -विसर्प-पु० विसर्प रोगका एक भेद ।-व्याधि-स्त्री० पिपरमिंट-पु० [अं०] पुदीनेकी जातिका एक विदेशी पित्तके प्रकोपसे उत्पन्न रोग।-शमन,-हर-वि० पित्तके | पौधा जो प्रायः दवाके काम आता है। इसका सत । प्रकोपको दूर करनेवाला । -शूल-पु० पित्तके प्रकोपसे पिपरामूल-पु० पीपलकी जड़, पिप्पलीमूल । उत्पन्न होनेवाला शूल रोग। -शोथ-पु० पित्तज शोथ। | पिपास*-स्त्री० पिपासा, प्यास ।। -संशयन-पु० चंदन, लालचंदन, नेत्रबला आदि पित्त- पिपासा-स्त्री० [सं०] पीनेकी इच्छा, प्यास, तृषा; लालच । नाशक औषधियोंका समूह । -स्थान-पु० दे० 'पित्त- | पिपासित-वि० [सं०] जिसे प्यास लगी हो, प्यासा । कोष' ।-हा (हन्)-वि०पित्तको मारनेवाला। मु. पिपासु-वि० [सं०] पीनेकी इच्छा रखनेवाला, प्यासा । -उबलना या खौलना-बहुत अधिक क्रोध आना। | पिपीलिका-स्त्री० [सं०] चींटी। (किसीका)-गरम होना-क्रोधी स्वभाव होना। | पिप्पल-पु० [सं०] पीपलका पेड़ बंधन-रहित रखा हुआ पित्तल-वि० [सं०] जिसमें पित्तकी अधिकता हो, पित्त- पक्षी; पक्षी; आस्तीन, चूचुक, चूची; पीपलका गोदा।। बहुल । पु० पीतल; भोजपत्र; हरताल ।
पिप्पली-स्त्री० [सं०] पीपल नामकी ओषधि । -मूलपित्ता-पु० पित्ताशय; साहस; रुतबा । -मार-वि० | पु० पीपरकी जड़, पिपरामूल । नीरस और दुष्कर (काम) । मु०-उबलना या खीलना- पिय*-पु० प्रियतम, कांत, पति । बहुत क्रोध आना । -पानी करना-घोर परिश्रम करना। | पियर*-वि० पीला। -मरना-क्रोधशीलता दूर होना क्रोध जाता रहना। | पियरई, पियराई-स्त्री० पीलापन । -मारना-क्रोधका शमन करना, क्रोधके वेगको रोकना; | पियरवा -पु० प्रियतम, कांत । जीको ऊबने न देना।
पियराना*-अ० क्रि० पीला होना, पीला पड़ना। पित्तातिसार-पु० [सं०] पित्तके प्रकोपसे होनेवाला पियरी*-वि० स्त्री० पीली । स्त्री० पीली धोती; पीलापन । अतिसार।
पियल्ला*-पु० दुधमुँहाँ बच्चा । पित्तारि-पु० [सं०] पितपापड़ा।
पिया-पु० दे० 'पिय'। पित्ताशय-पु० [सं०] पित्तकी थैली, पित्तकोष । पियारा*-वि० प्यारा। पित्ती-स्त्री० पित्तकी अधिकता या रक्तके अधिक उष्ण | पियास*-स्त्री० प्यास । होनेसे उत्पन्न होनेवाला एक रोग जिसमें शरीरपर लाल पियासी*-स्त्री० एक मछली। चकत्ते पड़ जाते हैं। पु० चाचा, काका ।
पियुख, पियूष-पु० दे० 'पीयूष' । पिथीरा-पु० दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज । पिरकी-स्त्री० फुड़िया, फुसी। पिदारा*-पु० पिद्दीका नर ।
पिरथी -स्त्री० दे० 'पृथ्वी'।-नाथा-पु० दे० पृथ्वीनाथ'। पिदा-पु० पिद्दीका नर; गुलेलेकी डोरीमें निवाड़ आदिकी | पिराई*-स्त्री० पीलापन, जदी।
वह गद्दी जिसपर रखकर गोली चलायी जाती है। पिराक-स्त्री० गोझिया जैसा एक पकवान । पिही-स्त्री० बयाकी जातिकी एक छोटी चिड़िया; अति | पिराना*-अ० क्रि० दर्द करना; दर्द का अनुभव करना; तुच्छ प्राणी।
किसीके दुःखसे दुःखी होना । पिधान-पु० किवाड़ [सं०] ढकने या आच्छादित करने- पिरारा*-पु० डाकू, लुटेरा ।
की क्रिया अपवारण; आवरण; ढकना, ढकनः म्यान ।। पिरीतम*-पु० प्रियतम । पिधानक-पु० [सं०] कोप, भ्यान; ढकन ।
पिरीता*-वि० प्यारा। पिधायक, पिधायो(यिन)-वि० [सं०] ढकने, छिपाने पिरीति-स्त्री० प्रीति । वाला।
पिरोजा-पु० हरापन लिये नीले रंगका एक बहुमूल्य पत्थर, पिनकना-अ० क्रि० अफीमके नशे में आगेकी ओर झुक- | फीरोजा । झुक पड़ना, पीनक लेना; नीदके मारे आगेकी ओर झुक- पिरोना-स० क्रि० सुईके छेद में धागा डालना किसी बारीक झुक जाना, ऊँधना।
छेदमें कोई चीज डालना; डोरेमें मनका आदि पहनाना। पिनकी-पु० पीनक लेनेवाला, अफीमची।
पिरोहना*-स० कि० दे० 'पिरोना' । पिनपिनहाँ-वि० 'पिन-पिन' करनेवाला, जो सदा पिलकना-स० क्रि० गिराना; ढकेलना । अ० क्रि० चिढ़ना; पिनपिनाया करे।
| चिढ़कर भागना।
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