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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पावस- पिंजड़ा - हाउस - पु० वह स्थान जहाँ वितरणके लिए बिजली तैयार की जाती है, बिजलीघर । पाषान* - पु० दे० 'पाषाण' । पासँग, पासंग - पु० [फा०] तराजूकी डाँड़ी बराबर करनेके लिए हलके पलडेकी ओर रखी जानेवाली वस्तु; डाँड़ीका ऊपर नीचे होना । मु० (किसी का) - भी न होनाकिसी के मुकाबले में कुछ भी न होना । पावस- पु० वर्षा ऋतु । पासनी * - स्त्री० अन्नप्राशन, चटावन । पावrt - पु० दे० 'पाय'; गोरखपुर से उत्तर-पश्चिम में स्थित एक प्राचीन गाँव जहाँ बुद्ध कुछ समयतक ठहरे थे । पाश - पु० [सं०] सरकनेवाली गाँठोंका, रस्सी, तार आदि | 'का विशेष प्रकारका घेरा जिसमें फँसनेसे प्राणी बँध जाता है, फाँस (प्राचीन कालमें युद्ध में भी आयुधके रूपमें पाशका प्रयोग किया जाता था); पशु-पक्षियोंको फँसानेका जाल; पासा; किसी बुनी हुई चीजका छोर; फँसानेवाला पदार्थ, बंधन (समासमें पाश शब्द समूह, शोभा और अपकर्ष आदि सूचित करता है, जैसे- केशपाश, कर्णपाश, वैद्यपाश) । - जाल - पु० संसाररूपी जाल | पाशव - वि० [सं०] पशु-संबंधी; पशुका । पाशविक - वि० दे० 'पाशव' | पासा - पु० चौसर के खेल में फेंका जानेवाला वह चौपहला लंबोतरा हड्डीका या लकड़ीका बना टुकड़ा जिसपर बिंदियाँ बनी होती हैं; पासोंसे खेला जानेवाला खेल, चौसर; गुल्ली; सुनारोंके कामका पीतल या काँसेका चौकोर लंबा ठप्पा जिसपर गोल गड्ढे बने होते हैं। -सार- पु० पासेकी गोटी; पासेका खेल | मु० ( किसीका ) - पड़ना - पासेका इस रूप में गिरना जिससे किसीकी जीत हो; विरोधीको हरानेवाला दाँव पड़ना; भाग्य खुलना । -पलटनाचौसर में जीत या हारका दाँव पड़ना; अच्छे या बुरे दिन आना, भाग्यका अनुकूल या प्रतिकूल होना । - फँकनाभाग्यकी परीक्षा करना, किस्मतकी आजमाइश करना । पासि* - पु० फंदा, बंधन | पासिक* - पु० फंदा; जाल | पाशुपत - वि० [सं०] पशुपति संबंधी; शिव-संबंधी या शिवका; शिवका दिया हुआ । पु० पशुपति या शिवका उपा सक; एक प्रसिद्ध दार्शनिक मतः इस मतको माननेवाला । पाशुपतास्त्र - पु० [सं०] एक भीषण अस्त्र जिसे अर्जुनने शिवसे प्राप्त किया था । पासिका * - स्त्री० फंदा, बंधन; जाल । पाश्चात्य - वि० [सं०] पश्चिमका, पच्छिमी; पच्छिमका पासी- पु० बहेलिया; एक अस्पृश्य जाति जिसका पेशा रहनेवाला; बादका पिछला । सूअर पालना या ताड़ी उतारना है । पासुरी* - स्त्री० पसली । पापंड - पु०, वि० [सं०] दे० 'पाखंड' | पाषंडक, पाषंडिक, पापंडी (डिन् ) - पु० [सं०] धार्मि- पाहँ* - अ० पास, समीप, प्रति, से कताका आडंबर फैलानेवाला व्यक्ति । पापर* - स्त्री० दे० 'पाखर' | पाषाण - पु० [सं०] पत्थर, शिला । भेदक, -भेदनपु० एक पौधा, पखानभेद । - युग - पु० ( स्टोन एज ) दे० 'प्रस्तरयुग' । - हृदय - वि० जिसका दिल पत्थर की तरह कड़ा हो, निष्ठुर, निर्दय । पाषाणी - स्त्री० [सं०] पत्थरका बटखरा; भाला । वि० स्त्री० पाहीँ * - अ० दे० 'पाहिँ । कठोर, पत्थरका दिल रखनेवाली । * पास - अ० समीप, नजदीक, दूरका उलटा; अधिकार में; पले; (किसी के) प्रति, निकट जाकर, से । * पु० ओर, तरफ; पासा; फाँस भेड़ के बाल कतरनेवाली कैचीका दस्ता । - पास - अ० एक दूसरेके करीब, एक दूसरेके निकट । - मान, वान * - पु० पास रहनेवाला, सेवक - 'जिनके धनद समान पेखियत पासवान-भू० । -वर्ती * - दे० 'पार्श्ववती' । - सार* - पु० दे० 'पासासार' । मु० ( किसीके ) - जाना - समागम करना। -तक न फटकना-दूर ही रहना । - फटकना - समीप जाना। - बैठनेवाला - साथी, हेली मेली; सहवासी । पास-पु० [अ०] कहीं जानेकी लिखित आज्ञा या अनुमति; वह टिकट या आज्ञापत्र जिसे दिखाकर रेल आदि द्वारा बेरोक-टोक भ्रमण कर सकें । वि० जिसने पार किया हो; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जो किसी परीक्षा में सफल हो चुका हो, उत्तीर्ण; स्वीकृत, मंजूर । - पोर्ट- पु० विदेश जानेके लिए सरकारी अनुमतिपत्र, राहदारीका परवाना। -बुक - स्त्री० बंकसे मिलनेवाली वह किताब जिसमें रुपया जमा करने आदिका हिसाब रहता है । पाहत पाहात - पु० [सं०] ब्रह्मदारु, शहतूत का पेड़ । पाहन * - पु० पत्थर । पाहरू - पु० पहरू, पहरेदार । पाहिँ* - अ० पास, समीप, प्रति, से । ४७८ पाहि- (क्रियापद) [सं०] रक्षा करो; बचाओ | पाहिरक्षा करो - रक्षा करो; बचाओ-बचाओ । For Private and Personal Use Only पाही - स्त्री० बस्ती से दूरका या दूसरे गाँवका स्थान । - काश्त - पु० दूसरे गाँव में खेती करनेवाला असामी । - खेती - स्त्री० वह खेती जो दूरवर्ती स्थान या अन्य गाँव में हो । पाहुँच * - स्त्री० दे० 'पहुँच' । पाहुना, पाहुना पु० अतिथि, मेहमान; दामाद । कुछ ही समय बाद चला जाने, चल बसनेवाला । पाहुनी - स्त्री० स्त्री अतिथिः उपपत्नी; अतिथि सत्कार । पिंग - वि० [सं०] ललाई लिये भूरा, दीपशिखाके रंगका । ० ललाई लिये भूरा रंग, पिंग वर्ण; हरताल । - स्फटिक - पु० गोमेद | पिंगल - वि० [सं०] पिंग वर्णका, ललाई लिये भूरे रंगका । पु० पिंग वर्ण, ललाई लिये भूरा रंग; *एक पक्षी, पपीहा, - 'पिंगल पि पि करै ताको काल न खाय' - साखी । पिंगला- स्त्री० [सं०] शरीर के दक्षिण भागकी एक प्रसिद्ध नाड़ी; एक पक्षी; लक्ष्मी; एक वेश्या जो अपनी धर्मनिष्ठाके लिए प्रसिद्ध थी । पिंगलाक्ष-पु० [सं०] शिव । पिंजड़ा - पु० दे० 'पिंजरा' ।
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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