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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५३ परिहेलना-परिकथा करनेवाला; पापसे बचनेवाला, भगत । -गारी-स्त्री० या विषयादिके संबंधमें सलाह देनेवाली समिति । परहेज करनेका कार्य, संयम, पापसे बचनेका कार्य । परामर्शालय-पु० [सं०] (कन्सल्टिंग रूम) किसी चिकिपरहेलना*-स० क्रि० अवहेलना करना, अनादर करना, त्सक या वकील आदिसे परामर्श करनेका स्थान, कमरा तुच्छ समझना। या गृह । परांग-पु० [सं०] दूसरेका अंग श्रेष्ठ अंग-भक्षी (क्षिन) परामृष्ट-वि० [सं०] पकड़कर खींचा हुआ स्पृष्टः विचारा वि० (पैरासाइट) दे० 'परोपजीवी' । हुआ; संबद्ध; जिसके विषयमें सलाह की या दी गयी हो। पराठा-पु० घी लगाकर तवेपर सेंकी जानेवाली चपाती। परायण-वि० [सं०] अति आसक्त, निरत; अवलंबित । परांत-पु० [सं०] मृत्यु । -काल-पु० मृत्युकाळ । परायत्त--वि० [सं०] पराधीन । परा-उप० [सं०] एक उपसर्ग जो अर्थ में प्रातिलोम्य (परा- पराया-वि० दूसरेका, बिराना; अपनेसे भिन्न । हत), प्राधान्य (परागत), आभिमुख्य (पराक्रांत), विक्रम परार*-वि० दूसरेका, पराया। पु० पयाल । (पराजित) आदिके यातनके लिए प्रयुक्त होता है। स्त्री० परारब्ध, परालब्ध-पु० दे० 'प्रारब्ध' । मूलाधार में स्थित रहनेवाली नाद रूपिणी वाणी; ब्रह्मविद्या परार्थ-पु० [सं०] दसरेका प्रयोजन, दूसरेका कार्य सबसे गंगा; * पंक्ति । वि० स्त्री० श्रेष्ठ । -गति-स्त्री० गायत्री। बड़ा लाभ । वि० जो दूसरेके निमित्त हो । -वाद-पु० पराइ*-वि० स्त्री० दूसरेकी। (ऐलट्र इज्म) दूसरोंकी सेवा या भलाईके लिए ही जीवित पराकाष्ठा-स्त्री० [सं०] अंतिम सीमा, चरम कोटि या रहने या कार्य करनेका सिद्धांत। सीमा, हद ब्रह्माकी आधी आयु ।। पराव, परावा*-वि० पराया,दूसरेका । पराकोटि-स्त्री० [सं०] दे० 'पराकाष्ठा' । परावत-पु० [सं०] फासला। पराक्रम-पु० [सं०] सामर्थ्य, बल; शौर्यविक्रम, उद्योग, परावन-पु० बहुतोंका एक साथ भागना, सामूहिक पलापुरुषार्थ; अभियान, आक्रमण; विष्णु । मु०-चलना- यन, भगदड़; * पर्वकाल-'पूरे पूरब पुन्यतें परयो परा• उद्योग किया जा सकना; शक्तिका साथ देना।। वन आज'-मति । पराक्रमी (मिन)-वि० [सं०] पराक्रमवाला; शूरः पुरुषार्थी। परावर-वि० [सं०] पहलेका और पीछेका; निकटका और पराग-पु० [सं०] फूलके भीतरकी धूल, पुष्परज; धूल दरका सर्वश्रेष्ठ; परंपरागत । पु० कारण और कार्य विश्व केसरका चूर्ण आदि जिसे नहानेके बाद लगाते हैं; उपराग; | अखिलता। चंदन; कपूरका चूरा; चंद्र या सूर्यका ग्रहण; ख्याति; एक परावर्त, परावर्तन-पु० [सं०] अदला-बदला, विनिमय पर्वत; स्वच्छंद गति । -केसर-पु० फूलोंके भीतरके वे लौटना, प्रत्यावृत्ति फैसला उलटना; ग्रंथोंको दोहराना, पतले लंबे डोरे जिनपर केसर लगा रहता है। उद्धरणी (जैन)। -व्यवहार--पु० फैसला किये हुए परागना-अ० क्रि० प्रेमासक्त होना, प्रेममें पड़ना । मुकदमेपर फिर विचार करना, फैसलेका पुनर्विचार । पराडमख-वि० [सं०] जिसने किसी ओरसे मुँह मोड़ परावर्तित-वि० [सं०] लौटाया हुआ। लिया हो, विमुख प्रतिकूल ।। परावृत्त-वि० [सं०] लौटा हुआ; लौटाया हुआ । पराजय-स्त्री० [सं०] हार, विजयका उलटा । परावृत्ति-स्त्री० [सं० लौटना, पलटना; लौटाया जाना, पराजित-वि० [सं०] जिसने हार खायी हो, हारा हुआ, पलटा जाना फैसला किये हुए मुकदमेपर फिरसे विचार हराया हुआ। करना। परात-स्त्री॰थालीकी शकलका पीतल आदिका बड़ा बरतन, पराश्रय-पु० [सं०] दूसरेका सहारा या अवलंब । वि० थाल । दूसरेपर आश्रित । पराधीन-वि० [सं०] जो दसरेके अधीन हो, परवश । परासु-वि० [सं०] मरा हुआ, मृत । पराधीनता-स्त्री० [सं०] पराधीन होनेकाभाव, परवशता। परास्त-वि० [सं०] हराया हुआ; जिसका प्रभाव नष्ट हो परान-पु० दे० 'प्राण'। गया हो; दबा हुआ; फेंका हुआ; अस्वीकृत । पराना*-अ० क्रि० पलायन करना, भागना। पराह-पु० [सं०] दूसरा दिन । परान-पु० [सं०] दूसरेका अन्न; दूसरेका दिया हुआ पराहत-वि० [सं०] आक्रांत; खदेड़ा हुआ, हटाया हुआ; भोजन। -भोजी(जिन्)-वि० दुसरेका दिया खाकर जोता हुआ; खंडित । पु० आघात । निर्वाह करनेवाला। पराह्न-पु० [सं०] दोपहरके बादका समय, दिनका तीसरा परापर-वि० [सं०] पर और अपर; परत्व और अपरत्व पहर दोनों गुणोंसे युक्त (वैशेषिक)। परिंदा-पु० [फा०] पक्षी, चिड़िया । पराभव-पु० [सं०] तिरस्कार, अनादर; हार, पराजय । | परि-उप० [सं०] एक उपसर्ग जोसमंततोभाव (परिक्रमण), पराभूत-वि० [सं०] जिसका पराभव हुआ हो; तिरस्कृत ।। व्याप्ति (परिणत), दोषकथन ( परिवाद ), भूषण (परिपराभूति-स्त्री० [सं०] दे० 'पराभव' । कार), आश्लेष (परिष्वंग), पूजन (परिचर्या), परामर्श-पु० [सं०] पकड़ना; खींचना; आक्रमण; बाधा; आच्छादन (परिच्छद) आदि अर्थोके द्योतनके लिए स्पर्श करना; रोगाक्रांत होना; विवेचना युक्ति; सलाइ । शब्दोंके पूर्व आता है। -कक्ष-पु० (कन्सस्टिग रूम) दे० 'परामर्शालय' ।- परिकप-पु० [सं०] कँपकँपी अत्यधिक भय । दात्री समिति-स्त्री० (ऐडवाइजरी कमिटी) किसी कार्य । परिकथा-स्त्री० [सं०] अनुकथा, वह छोटी कथा जो बड़ी For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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