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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमी-पंजीयक ४३४ फ्रैंकोने पाँचवीं सेनाके रूपमें इन देशद्रोहियों या भेदियोंसे पुतली; एक प्रकारका.गीत शतरंज आदिकी बिसात । ही सहायता प्राप्त की थी, इसीसे इस तरहके लोग पाँचवीं पंचाशत-वि० [सं०] चालीस और दस । पु०५०की संख्या। सेनाके अंग या 'पंचमांगी' कहे जाने लगे। पंचाशिका-स्त्री० [सं०] पचास वस्तुओं, व्यक्तियों या पंचमी-स्त्री० [सं०] चंद्रमाकी पाँचवीं कला पक्षकी पाँचवीं पद्योंका समूह । तिथि; द्रौपदी; अपादान कारक । पंचास्य-वि०, पु० [सं०] दे० 'पंचानन' । पंचांग-वि० [सं०] पाँच अंगोंवाला। पु० पाँचका समा-पंचाह-पु० [सं०] पाँच दिनोंका समूह । हार; पाँच अंग; किसी वृक्ष या पौधेके ये पाँच अंग-जड़, पंचेपु-पु० [सं०] कामदेव । छाल, पत्ता, फूल और फल; घुटना, सिर, हाथ तथा छाती- | पंचोपचार-पु० [सं०] पूजनके साधनभूत पाँच द्रव्य-गंध, को पृथ्वीसे सटाकर और आँखको देवताके चरणोंकी ओर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, इन पाँच द्रव्योंसे किया गया करके किया जानेवाला एक प्रकारका प्रणाम (तंत्र); पूजन । तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण-इन पाँच अंगोंसे | पंछा-पु० प्राणियोंके शरीर या पेड़-पौधों में कटने, छिलने युक्त तिथिपत्र, पत्रा (ज्यो०)। राजनीतिके ये पाँच अंग- आदिकी जगहसे निकलनेवाला एक प्रकारका पसेव घावसहाय, साधन, उपाय, देशकाल-भेद और विपत्-प्रतिकार का पसेव फफोले, चेचकके दाने आदिमें भरा हुआ पानी। पंचभद्र घोड़ा कछुवा ।-शुद्धि-स्त्री० तिथि, वार, नक्षत्र, पंछाला-पु० फफोला; फफोलेके भीतरका पानी। योग और करण इन पाँचकी निर्दोषता। पंछी-पु० पक्षी, चिड़िया । पंचाक्षर-वि० [सं०] पाँच अक्षरोंवाला। पु० एक छंदः पंज-वि० [फा०] पाँच । -रोज़ा-वि० पाँच दिनोंका; शिवका पाँच अक्षरोंवाला मंत्र-'ॐ नमः शिवाय'। कुछ ही दिनोंतक रहनेवाला; अस्थायी, जो टिकाऊ न पंचाग्नि-स्त्री० [सं०] पाँच प्रकारकी अग्नियाँ-अन्वाहार्य, | हो। -हज़ारी-पु. पाँच हजार सैनिकोंका नायक । पचन, गाई पत्य, आहवनीय और आवरुथ्य; चारों ओर पंजर-पु०[सं०] हड़ियोंका हाँचा, कंकाल, पसली; पिजड़ा, जलती हुई चार अग्नियाँ तथा ऊपरसे सूर्यके तापका सेवन शरीर । -शुक-पु० पिजड़े में बंद तोता । करनेका ग्रीष्म ऋतुमें किया जानेवाला एक तप, चीता, पजरना*-अ० क्रि० दे० 'पजरना' ।। चिचड़ी, भिलावाँ, गंधक और मदार-ये पाँच बहुत गरम पंजा-पु० [फा०] पाँच सजातीय वस्तुओंका समाहार; गाही; तासीरवाली ओषधियाँ (आ० वे०)।। पाँचों उँगलियोंके सहित हथेली; पैरका अगला भाग; पंचाट-पु० (अवार्ड) दे० 'परिनिर्णय। अधखुली मुट्ठी जिसमें अँगूठा और उँगलियाँ इस स्थितिमें पंचात्मक-वि० [सं०] पाँच तत्त्वोंवाला (शरीर)। हों कि किसी वस्तुको पकड़ा या बकोटा जा सके; उँगलियोंपंचानन-वि० [सं०] पाँच मुँहोंवाला । पु० शिवः सिंह । के सहित हथेलीका अर्धसंपुट, जूतेका वह भाग जिसे पहपंचानबे-वि० नब्बेसे पाँच अधिक, जो सौसे पाँच कम हो। ननेपर वह पंजेको ढके रहता है। पीठ खुजलानेका पंजेकी पु० नब्बेसे पाँच अधिककी संख्या, ९५।। आकृतिका बना एक आला; पंजा लड़ानेकी क्रिया या प्रतिपंचामृत-पु०[सं०] पाँच द्रव्योंकासमाहारदेवताओंके स्नान योगिता; पाँच बूटियोवाला ताशका पत्ता; आदमीके पंजेके कराने और चढ़ानेके कामका एक पेय पदार्थ जो गायके आकारका टिन आदिका वह टुकड़ा जिसे लंबे बास आदिमें दूध, दही, घी, मधु और चीनीके योगसे बनाया जाता है। लगाकर झंडेके रूपमें ताजियेके साथ ले चलते हैं। -तोड़ पंचाम्ल-पु० [सं०] बेर, अनार, अमलबेत, चक और बैठक-स्त्री०कुश्तीका एक पेंच । मु०-फेरना,-मोड़नाबिजौरा नीबू-ये पाँच खट्टे पदार्थ (आ० वे०)। पंजेकी लड़ाईमें प्रतिद्वंद्वीको हराना।-फैलाना-बढ़ानापंचायत-स्त्री० पंचोंकी मंडली या सभा; किसी मामले या लेने या अधिकार में करनेकी चेष्टा करना। -मारना झगड़ेके संबंधमें पंचों द्वारा किया जानेवाला विचार या झपट्टा मारना।-लड़ाना,-लेना-कसरत या बलपरीक्षानिवटारा कई आदमियोंका एकत्र होकर इधर-उधरकी के लिए उँगलियोंको फंसाकर जोर लगाना। (पंजे)मेंबातें करना, गपशप करना (व्यंग्य); जनता द्वारा चुने काबूमें। हुए प्रतिनिधियोंका मंडल । पंजाबी-वि० [फा०] पंजाबका; पंजाब-संबंधी। पु० पंजाब पंचायतन-पु० [सं०] पाँच देवताओंकी प्रतिमाओंका प्रांतका निवासी । स्त्री० पंजाबकी भाषा। समुदाय । पंजि, पंजी-स्त्री० [सं०] पूनी; बही; (रजिस्टर) वह पुस्तक पंचायती-वि० पंचायतका; जिसपर बहुतोंका अधिकार या बही जिसमें हिसाब, कार्य-विवरण, जन्म-मृत्युका लेखा, हो अनेक मनुष्योंका; जनताका; जनताके प्रतिनिधियों गृह, भूमि आदिकी अधिकृत बिक्री या हस्तांतरण आदिद्वारा संचालित, जिसका संचालन जनता द्वारा चुना का ब्यौरा लिखा या दर्ज किया जाय; पंचांग । -कार, हुआ प्रतिनिधिमंडल करे। -राज्य-पु० जनताके प्रति- -कारक-वि० लेखक; बही लिखनेवाला, कुर्क। -बद्धनिधियों द्वारा संचालित राज्य, गणतंत्र । वि०(रजिस्टर्ड) जो पंजी यारजिस्टर में चढ़ा दिया गया हो। पंचाल-पु० [सं०] हिमालय तथा चंबलसे सीमित एक पंजिका-स्त्री० [सं०] ऐसी टीका जिसमें प्रत्येक शब्दका अर्थ प्राचीन देश जो गंगाके दोनों ओर स्थित था (द्रपद यहींके समझाया गया हो, विशद टीका; पंचांग, तिथिपत्र; आय राजा थे-म० भा०); इस देशका निवासी; यहाँका राजा। व्यय लिखनेकी बही; रजिस्टर; यमकी बही जिसमें पंचालिका-स्त्री० [सं०] कपड़े आदिकी पुतली; नटी। जीवोंके कर्म लिखे जाते है । पंचाली-स्त्री० पांचाली, द्रौपदी; [सं०] कपड़े आदिकी पंजीयक-पुक (रजिस्ट्रार) किसी लेख, इच्छापत्र आदिकी For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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