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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - पंच www.kobatirth.org न्यूनता विकृत; हीन; नीच; निकृष्ट । कोण - पु० (एक्यूट एंगिल ) वह कोण जो एक समकोणसे छोटा हो । - कोणत्रिभुज - पु० (ऐक्यूट एंगिल्ड ट्राइएंगिल) वह त्रिभुज जिसके तीनों कोण न्यूनकोण हो । धी- वि० कमअक्कु, मूर्ख । -पोषण - पु० (मैन्यूट्रीशन) खाद्य वस्तुओंकी खरावी, कमी आदि के कारण पर्याप्त पोषणका न मिलना, कुपोषण; (अंडरनरिशमेंट) पोषणकी या पोषक तत्त्वोंकी कमी । न्यूनता - स्त्री० [सं०] न्यून होनेका भाव, कमी; हीनता । - बोधक - वि० (डिम्यूनिटिव) यह उससे न्यून या छोटा है, यह बोध करानेवाला (शब्द), ऊनवाचक, अल्पार्थक न्यूनन - पु० (एब्रिजमेंट) घटा देना, कम कर देना, छोटा कर देना, संक्षेपण | | | न्यूनांग - वि० [सं०] जिसका कोई अंग विकृत हो । न्यूनाधिक - वि० [सं०] कम-वेश; असम | न्यूनीकरण - पु० [सं०] ( अबेटमेंट) कम कर देना, घटा देना । प - देवनागरी वर्णमालाका २१वाँ व्यंजन वर्ण । पंक- पु० [सं०] कीचड़, दलदल; पाप; लेप । -क्रीड, - क्रीडन - पु० सूअर । -ज- वि० जो कीचड़ में उत्पन्न हो । पु० कमल; सारस पक्षी । -ज-जन्मा ( न्मन्) - पु० ब्रह्मा । -ज-नाभ - पु० विष्णु । -ज-राग- पु० पद्मराग मणि । -जात-पु० कमल । - रुह - पु० कमल । पंकजासन - पु० [सं०] ब्रह्मा । पंकजिनी - स्त्री० [सं०] कमलका पौधा; पद्म-राशि; कमलपूर्ण स्थान; कुमुद दंड | पंकिल - वि० [सं०] पंकयुक्त, जिसमें कीचड़ मिला हो । पंकिलता - स्त्री० [सं०] कलुष; कालिमा; गंदगी । पंकेरुह - पु० [सं०] कमल; सारस । पंक्ति - स्त्री० [सं०] वह समूह जिसमें प्रायः सजातीय पदार्थ या व्यक्ति एक दूसरे के पीछे या बगल में क्रमके अनुसार स्थित हों, श्रेणी, कतार; पाँचका समाहारः दसकी संख्या; भोज में एक साथ खानेवालोंकी पाँत, पंगत । - च्युत - वि० (डिग्रेडेड) दे० 'कोटिच्युत', जो अपनी पंक्ति या कोटि ( दरजे) से नीचे हटा दिया गया हो। -पावन - पु० विद्या, तप आदिसे विशिष्ट ब्राह्मण जिससे श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मणोंकी पंक्ति पवित्र हो जाती है; वह ब्राह्मण जो पंक्तिदूषक द्वारा अपवित्र की गयी पंक्तिको पवित्र बना देता है (मनु०), पंक्तिदूषकका उलटा । बद्ध - वि० श्रेणीबद्ध | पंख - पु० पर, डैना । मु० - जमना - भागने, खिसकने, कुमार्गपर चलने या प्राण गँवानेका लक्षण प्रकट होना । - लगाना - पक्षीकीसी गतिसे युक्त होना; उड़ान भरना । खड़ी - स्त्री० फूलका वह पत्ता जैसा अवयव जिसके संकोचसे वह मुकुलित रहता है और फैलावसे खिलता हैं, फूलकी पत्ती, पुष्पदल । पंखा- पु० वह वस्तु जिससे हवा की जाती है। -कुलीपु० पंखा खीचनेवाला नौकर । -पोश-पु० पंखेका Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ न्यूनोन्नत क्षेत्र - पु० [सं०] (अंडर-डेवेलप्ड एरिया) वह भूभाग जो उद्योगों, खनिज द्रव्यों आदिको दृष्टिसे बहुत पिछड़ा हुआ हो, जिसकी बहुत कम उन्नति हुई हो । न्योछावर - स्त्री० दे० 'निछावर' | न्योजी* - स्त्री० लीची; चिलगोजा । न्योतना-स० क्रि० भोज आदिके लिए निमंत्रित करना । न्योतनी - स्त्री० विवाहादि अवसरोंपर होनेवाला भोज । न्योतहरी - पु० निमंत्रित व्यक्ति । न्योता - पु० निमंत्रण; भोज आदिका निमंत्रण, दावतः वह रकम या वस्तु जो न्योतहरी न्योता देनेवालेको देता या उसके यहाँ भेजता है । न्योरा* - पु० दे० 'नेवला'; बड़े दानोंका बँधरू । वैनी* - स्त्री० दे० 'नोई' । न्हवाना * - स० क्रि० नहलाना, स्नान कराना । न्हान* पु० स्नान । न्हाना * - अ० क्रि० नहाना । खोल । मु० - करना - पंखा डुलाकर किसी ओर इवाका झोंका देना; पंखा डुलाकर वायुका संचार करना । पँखिया * - स्त्री० भूसीके महीन टुकड़े; पँखड़ी । पंखी - पु० पक्षी; पाँखी । स्त्री० छोटा पंखा । पँखुड़ा, पंखुरा । - ५० दे० 'पखुरा' | पंखुड़ी, पँखुरी * - स्त्री० दे० 'पंखुड़ी' । पखेरू + - पु० दे० 'पखेरू' । पंग - वि० लँगड़ा; कुंठित; बेकाम; अवरुद्धः स्तब्ध | पंगत, पंगति- स्त्री० पंक्ति, कतार; भोज में एक साथ खानेवालोंकी पाँत; समाज; भोज । पंगा - वि० दे० 'पंगु' । पंगु - वि० [सं०] जो पाँवके बेकाम होनेसे चल-फिर न सकता हो; जो चल न सके, गतिहीन । पंगुता- स्त्री०, पंगुत्व - पु० [सं०] लँगड़ापन । पंगुल - वि० [सं०] पंगु । पंच (न्) - वि० [सं०] पाँच । कन्या - स्त्री० अहल्या, द्रौपदी, कुंती, तारा और मंदोदरी-ये पाँच स्त्रियाँ जो सदा कन्या रहीं । - कल्याण, - कल्याणक - पु० वह घोड़ा जिसके पैरों और मुँहका रंग सफेद हो ( ऐसा घोड़ा बहुत मांगलिक माना जाता है ) । - कवल- पु० भोजनके पहले पक्षियों आदि के लिए निकाला जानेवाला पाँच ग्रास अन्न । -काम- पु० पाँच प्रकारके कामदेव जिनके नाम ये हैं - काम, मन्मथ, कंदर्प, मकरध्वज और मीनकेतु । - कोण-पु० पाँच भुजाओंवाला क्षेत्र ( ज्या० ) । वि० पाँच कोनोंवाला । - कोसी - स्त्री० [हिं०] काशीकी परि क्रमा । -क्रोशी - स्त्री० पाँच कोसका फासला; काशीपुरी जो पाँच कोसोंमें बसी हुई है। -गंग-पु० गंगा, यमुना, सरस्वती, किरणा और धूतपापा-इन पाँच नदियोंका समादार | - गंगा ( घाट ) - पु० [हिं०] काशीका एक प्रसिद्ध स्थान जो कई नदियोंका संगमस्थान माना जाता है । -गय- पु० गायके दूध, दही, घी, गोबर और For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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