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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थकान-थाना ३४० जाना; अशक्त हो जाना। थरथराहट-स्त्री० कँपकँपी। थकान-स्त्री० थकावट, श्रांति, शैथिल्य । थरथरी-स्त्री० भय आदिके कारण होनेवाली कँपकँपी । थकाना-स० क्रि० श्रांत करना, शिथिल बना देना। थरसल*-वि० थहराया हुआ, स्तब्ध, हक्काबका। थकावट, थकाहट-स्त्री० दे० 'थकान' । थरहर-स्त्री० दे० 'थरथरी'। थकित-वि० श्रांत, शिथिल, थका हुआ; मुग्ध । थरहराना-अ० क्रि० दे० 'थरथराना' । थकौं हाँ*-वि० कुछ थका हुआ, थोड़ा शिथिल । थरहरी-स्त्री० दे० 'थरथरी' । थक्का-पु० किसी चीजका जमा हुआ टुकड़ा, लोंदा । | थरहाई-स्त्री० निहोरा, थराई । थगित-वि० रुका हुआ; शिथिल । थरि, थरी*-स्त्री० सिंह, बाघ आदिकी माँद । थणुसुत*-पु० शिवपुत्र-गणेश तथा कात्तिकेय । थरिया-स्त्री०३० 'थाली'। थति*-स्त्री० थाती; पूँजी। थरु*-पु० दे० 'स्थल'। थत्ती-स्त्री० राशि, ढेर।। थर्राना-अ० क्रि० काँप उठना, दहलना। थन-पु० गाय-भैंस आदिका स्तन, गाय-भैस आदिका थैली थल-पु० स्थल, स्थान, जगह, ठौर; खुश्की; फोड़ेका घेरा। जैसा अंग जिसमें दूध रहता है। -चर-पु० पृथ्वीपर रहनेवाले जीव । -चारी-वि० थनेला-पु०,थनेली-स्त्री०स्त्रियोंके स्तनपर होनेवाला फोड़ा। पृथ्वीपर विचरण करनेवाला । -ज-पु० गुलाब । -पति थनैत-पु० गाँवका मुखिया; जमींदारका कारिंदा । -पु० राजा, भूपति । -बेड़ा-पु० नाव या जहाजके थपकना-स० कि० प्यार या लाड़-चावसे किसीकी पीठ किनारे लगनेकी जगह; (ला०) ठिकाना। -रुह-पु० आदिपर हथेलीसे हलका आघात करना, थपकी देना। । पृथ्वीपर उगनेवाले वृक्ष आदि । थपका-पु० थक्का; थपकी। थलकना-अ० क्रि० मोटाई या झोलके कारण चलने थपकी-स्त्री० हथेलीका हलका आघात । आदिमें हिलना; काँपना।। थपड़ी-स्त्री० ताली, करतलध्वनि।मु०-पीटना-बजाना थलथल-वि० मोटाई या ढीलेपनके कारण हिलता हुआ। - हथेलियोंके परस्पर आघात द्वारा शब्द उत्पन्न करना; थलथलाना-अ० क्रि० शरीरकी स्थूलताके कारण मांसका उपहास करना। ऊपर-नीचे हिलना। थपथपी-स्त्री० दे० 'थपकी'। थली-स्त्री० स्थान प्रदेश; भूमि; जलके नीचेका तल बैठक थपन*-पु० स्थापन, स्थापित करनेकी क्रिया । -हार- रेतीली जमीन; वह भूखंड जो अपने प्रकृत रूपमें हो। पु० पुनः स्थापित करनेवाला, प्रतिष्ठापक । थवई-पु० राजगीर, मकान बनानेवाला कारीगर । थपना*-अ० क्रि० स्थापित होना, स्थापित किया जाना । थहना-स० कि० थाह लेना; आंतरिक अभिप्रायका पता स० क्रि० स्थापित करना, स्थिर करना, दृढ़ करना;| लगाना।। जमाना; ठोकना । पु० थापी ठोकनेका साधन । थहरना-अ० कि. हिलना, काँपना । थपाना*-स० क्रि० स्थापित कराना। थहराना-अ० क्रि० भयसे काँपना; हिलना। थपुआ-पु० चौड़ा-चिपटा खपड़ा जिसके ऊपर नरिया रखी | थहाना-स० कि० थाह लेना, गहराईका पता लगाना। जाती है। थॉग-पु० चोरोंका गुप्त अड्डा, खोज, सुराग; भेद । थपेड़ना-स० क्रि० चपत जमाना; आघात करना, ठोकर थाँगी-पु० चोरोंका मुखिया; चोरीका माल लेनेवाला; देना। चोरोंका पता देनेवाला; चोरीका पता लगानेवाला, जासूस थपेड़ा-पु० चपत, चपेटा; घात-प्रतिघात, दरेरा, धक्का। चोरोंको आश्रय देनेवाला। थपोड़ी-स्त्री० दे० 'थपड़ी। थाभ-पु० खंभा। थपोरी*-स्त्री० दे० 'थपड़ी' । थाँभना*-स० क्रि० दे० 'थामना' । थप्पड-पु० तमाचा, झापड़, चपेटा ।मु०-कसना,-थावला-पु० थाला। लगाना-तमाचा मारना । था-अ० क्रि० 'होना'का भूतकालिक रूप, रहा । थम*-पु० स्तंभ केलेकी पड़ी। थाई*-वि० जो बहुत कालतक बना रहे, स्थायी । थमकारी-वि० रोकनेवाला, थामनेवाला । थाकना*-अ० क्रि० दे० 'थकना' । थमना-स० क्रि० रुकना, ठहरना, चालू न रहना, बंद थात-वि० बैठा या ठहरा हुआ, स्थित । होना, होता न रहना, रुक जाना प्रतीक्षा करना; ठहरा थाति -स्त्री० स्थिरता, स्थायित्व, ठहरने या रहनेको रहना; धैर्य रखना। क्रिया; थाती। थर-पु० राजपूतानेके उत्तर में एक रेगिस्तान स्थल, जमीन | थाती-स्त्री० धरोहर, अमानत, किसीके पास जमा की हुई जगह । स्त्री० तह; शेरकी माँद । वस्तु; संचित धन, पूँजी। थरकना*-अ० क्रि० भयसे कंपित होना, थर्राना । थान-पु० स्थान; रहनेकी जगह; देवता, ब्रह्म आदिका थरकाना -सक्रि० भयसे कँपाना । स्थान; पशुओंके बाँधे जानेकी जगह; बँधी हुई लंबाईका थरकहाँ-वि० काँपता हुआ चंचल स्थिर । कपड़ेका बड़ा टुकड़ा; अदद। थरथर-अ० इस प्रकार कि सभी अंगामें कंपन हो जाय। थाना-पु० पुलिसकी चौकी; केंद्र; निवासस्थान, बाँसकी थरथराना-अ० क्रि० भयके मारे काँपना, काँपना। । कोठी । -पति--पु० ग्रामदेवता, स्थानका रक्षक देवता। For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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