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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५५ । माल देनेवाला, बेईमान; छिपकर काम करनेवाला; जो मनका भाव प्रकट न होने दे; मनमें छिपी बुराई, दुर्भाव; घाव आदिके भीतर छिपी विकृति, खराबी; खेल में हारनेवाला लड़का जिससे और लड़के दाँव लें; ताश, गंजीफेका पत्ता जिसे कोई खिलाड़ी दबाये बैठा हो; एक गंध-द्रव्य, चोरक । वि० [हिं०] छिपा हुआ, गुप्त; जिसका बाह्य रूप धोखा देनेवाला हो (चोर दरवाजा, चोर महल, इत्यादि) - कट - पु० [हिं०] चोर, चोट्टा । -ख़ाना - पु० [हिं०] संदूक, आलमारीका छिपा खाना। - खिड़की - स्त्री० [हिं०] छोटा चोर दरवाजा | गढ़ा - पु० [हिं०] छिपा हुआ गढ़ा । -गली - स्त्री० [हिं०] सँकरी गली जिसका पता कुछ ही लोगोंको हो; गलीके भीतर की गली। - ज़मीन - स्त्री० [हिं०] वह दलदल जो ऊपर से देखने में सूखा, कड़ी जमीनसा जान पड़े। - ताला-पु० [हिं०] किवाड़ के अंदर लगा हुआ गुप्त ताला जिसका पता ऊपरसे न लगे; वह ताला जो अनोखे रहस्यमय ढंगसे खोला जाय | -धन- वि० [हिं०] दुहते समय दूध चुरा रखने वाली | - दंत - ५० दे० 'चोरदंता' । - दंता, दाँत - पु० [हिं०] बत्तीस दाँतोंके अतिरिक्त दाँत जिसके निकनेमें बहुत कष्ट होता है । - दरवाजा- पु० [हिं०] मकानके पिछवाड़ेका छोटा दरवाजा जिसका पता कुछ खास लोगों को ही हो। -द्वार - पु० चोर दरवाजा । - पेट - पु० [हिं०] ऐसा पेट जिसमें गर्भका पता अरसे - तक न लगे । - बदन-पु० [हिं०] वह मनुष्य जो ऊपरसे कमजोर मालूम हो, पर वस्तुतः बलवान् हो । - बाज़ार - पु० [हिं०] वह दुकान, स्थान जहाँ चोरीसे, नाजायज तरीके से माल बेचा, खरीदा जाय। -बालूस्त्री० [हिं०] वह रेता जिसके नीचे दल-दल हो । -महलपु० [हिं०] वह महल जिसमें किसी राजा, रईसकी रखेलियाँ रहें । - मिहीचनी* - स्त्री० आँख-मिचौनी । - मूँग - पु० [हिं०] मूँगका वह कड़ा दाना जो न दलनेसे दला जाय और न पकानेसे गले । चोरटा - पु० चोर । [स्त्री० 'चोरटी' ।] चोरना* - स० क्रि० चोरी करना । चोर-चोरी* - अ० दे० 'चोरी-चोरी' । चोरित - वि० [सं०] चुराया हुआ । चोरी - स्त्री० चोरका काम, चुरानेकी क्रिया; छिपाव, दुराव; ठगी, धोखेबाजी । - चोरी - अ० छिपे छिपे; छिपाकर । - छिनाला - पु० चोरी और व्यभिचार; दूषित कर्म । - का काम, - की बात - छिपाकर करनेका काम, बात । से - छिपाकर । चोल - पु० [सं०] दक्षिण भारतका एक प्राचीन जनपद, आधुनिक तंजौर; उक्त जनपदका निवासी; चोला; मजीठ; वल्कल; कवच । स्त्री०चोली - 'क्या करै बपुरी चोल' - साखी । - खंड - पु० एक चोलीके ब्योंतभरका जरदोजीके कामका कपड़ा । - सुपारी - स्त्री० [हिं०] चिकनी सुपारी | चोलना * - पु० साधुओंका लंबा कुरता । चोला- पु० मुल्लाओं, फकीरों आदिके पहननेका लंबा, ढीलाढाला कुरता; शिशुको पहली बार पहनाया जानेवाला कपड़ा; अँगरखेका ऊपरका भाग; देह, शरीर । मु०- बदलना - चोरटा - चौ एक शरीर त्यागकर दूसरा धारण करना; रूप बदलना । चोली- स्त्री० [सं०] वह अँगिया जिसमें पीछेकी ओर बंद न हों; चोला । मु० - दामनका साथ कभी न छूटनेवाला साथ । चोल्ला* - पु० दे० 'चोला' । चोवा- पु० दे० 'चोआ' । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोषक - पु० [सं०] चूसनेवाला । चोषण- पु० [सं०] चूसना । चोषना* - स० क्रि० दे० 'चोखना' । चोष्य - वि० [सं०] चूसने योग्य | पु० चूसकर खायी जानेवाली चीज | चौंकना - अ० क्रि० भय, विस्मय या पीड़ाकी अचानक अनुभूतिसे चंचल हो जाना, हिल, काँप उठना; सोतेसे थकायक जाग उठना; चौकन्ना या चकित होना; भड़कना । चौंकाना - स० क्रि० दूसरेके चौकनेका कारण होना । चौंटना* - स० क्रि० चुटकीसे तोड़ना (फूल आदि) । चौतीस - वि० तीस और चार । पु० चौंतीसकी संख्या, ३४ । चौंध - स्त्री० चकाचौंध, तिलमिलाहट | चौधना* - अ० क्रि० (बिजलीका) चमकना, कौंधना | चौंधियाना-अ० क्रि० चकाचौंध होना । चाँधी* - स्त्री० चकाचौंध | चाँप * - स्त्री० इच्छा - 'कबीर सोया क्या करे, जागनकी करि चौप' - साखी । चौर - पु० चँवर; झालर, फुंदना; भड़भाँड़की जड़ । - गाय - स्त्री० सुरा गाय | चौराना* - स० क्रि० नॅवर डुलाना; बुहारना । चौरी - स्त्री० घोड़ेकी पूँछके बालोंका गुच्छा जिससे घुड़सवार मक्खियाँ उड़ानेका काम लेते हैं; चोटी बाँधने की डोरी; सफेद पूँछवाली गाय । चौंसठ - वि० साठ और चार । पु० चौंसठकी संख्या, ६४ । चौ- पु० मोती आदि तौलनेका बाट । वि० चार (केवल समासमें व्यवहृत ) । - आई, बाई, वाई- स्त्री० चारों दिशाओंसे, कभी इस और कभी उस दिशा से बहनेवाली हवा; अफवाह । -कठ-स्त्री० दे० 'चौखट' ।-कठा- पु० दे० 'चौखटा' | - कड़ा - पु० दो-दो मोतियोंवाली बाली । - कड़ी - स्त्री० चार चीजोंका समूह; चार आदमियोंकी मंडली; चार घोड़ोंकी गाड़ी; चौपायोंकी वह दौड़ या छलाँग जिसमें चारों पाँव एक साथ फेंके जायँ; हिरन आदिकी कुलाँच (भरना); चार युगों का समूह; चारपाईकी वह बुनावट जिसमें सुतली या बानकी चार-चार लड़ियाँ एक साथ हो। (मु०चौकड़ी भूल जाना - अकलका काम न करना; राह न सूझना; घबरा जाना ।) -कन्ना - वि० चारों ओर ध्यान रखनेवाला, सजग, सावधान, होशियार । - करी* - स्त्री० दे० 'चौकड़ी' । -कल- पु० चार मात्राओंका समूह । - कस - वि० चौकन्ना, सावधान; ठीक, दुरुस्त । - कसाई, - कसी - स्त्री० सावधानी; निगरानी । -कोन वि० दे० 'चौकोना' । -कोना - वि० चौकोर, चतुष्कोण । - कोर - वि० चौकोना, चौखूँटा । - खंडवि० चार खंडोबाला (मकान ), चौमंजिला । - खट-स्त्री० लकड़ीका चौकोर ढाँचा जिसमें किवाड़ के पल्ले जड़े जाते For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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