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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३५ चटखनी - स्त्री० सिटकिनी । चटखारा - पु० स्वादिष्ठ वस्तुको खाते समय लगने से होनेवाली आवाज । मु०- ( २ ) लेकर खाना, होंठ चाटना । www.kobatirth.org जीभके तालूसे भरना - स्वाद चटचटाना - अ० क्रि० 'चट चट की आवाज के साथ टूटना, 'कूटना, जलना; लस पैदा हो जाना, चिपकना । चटचेटक * - पु० जादू, इंद्रजाल । चटनी - स्त्री० चाटनेकी चीज; नमक, मिर्च, खटाई के योग से बना हुआ अवलेह जो स्वाद के लिए भोजन के साथ खाया जाता है; चटनीके रूपमें बनी हुई दवा, अवलेह; काठका बना एक खिलौना जिसे हाथमें लेकर छोटे बच्चे चाटा करते हैं । मु० - करना - बहुत बारीक पीसना । चटपटा - वि० चरपरा, मिर्च-मसालेदार ; मजेदार | पु० चटपटी चीज, चाट (चने - चटपटे ) । चटपटाना - * अ० क्रि० छटपटाना; + हड़बड़ी मचाना । चटपटी - स्त्री० घबड़ाहट, उतावली, छटपटी | चटवाना-स० क्रि० दे० 'चटाना' । चटाई - स्त्री० घास, सीक, बेंतकी छाल आदिका बना बिछावन, साथरी; चाटनेकी क्रिया । चटान* - स्त्री० दे० 'चट्टान' | चटाना-स० क्रि० चाटनेकी क्रिया कराना; थोड़ा-थोड़ा खिलाना; घूस देना; तलवार आदिपर शान धराना । चटापटी - स्त्री० उतावली, जल्दी; संक्रामक रोगसे लोगोंका जल्दी-जल्दी मरना । चटावन - पु० बच्चोंको पहली बार अन्न खिलाने या चटानेकी रस्म, अन्नप्राशन संस्कार । चढ़ना - अ० क्रि० नीचेसे ऊपरको जाना, ऊँचा होना; तेज, तीखा होना (स्वर); सवार होना; दलबल के साथ जाना, चढ़ाई करना; उठना, उन्नति करना; बहाव के विरुद्ध जाना; चढ़ाया जाना (कागज, खोल चढ़ना); तनना, कसा जाना; देवतादिको भेंट किया जाना; लगना, आरंभ होना (मास, नक्षत्र आदि); पावना होना, निकलना; लिखा जाना (नाम, रकम); असर होना; आवेश होना (भूत); पोता जाना; पकने के लिए चूल्हेपर चढ़ाया जाना; तेज, महँगा होना (भाव); मामला अदालतमें ले जाना; ( नदीका ) बढ़ना, बाढ़पर होना । चढ़ बढ़कर, चढ़ा बढ़ा - वि० अधिक अच्छा, श्रेष्ठ | मु० चढ़ दौड़ना - चढ़ाई करना । चढ़वाना - स० क्रि० चढ़नेकी क्रिया कराना । चढ़ाई - स्त्री० चढ़नेकी क्रिया, भाव; धावा; ऊँचाई या उत्तरोत्तर ऊँची होती जानेवाली भूमि; * चढ़ावा । चटाकपटाक-अ० झटपट तेजीसे । चटाका (खा) - पु० लकड़ी, चिमनी आदिके टूटने, उँगली के चढ़ा - उतरी - स्त्री० बार-बार चढ़ना-उतरना । चटकने, तमाचा आदि पड़नेकी आवाज | चढ़ा उपरी - स्त्री० लाग-डाट, होड़, प्रतियोगिता । चटाचट - स्त्री० किसी वस्तुके टूटने, फूटनेको 'चट-चट' चढ़ा-चढ़ी - स्त्री० चढ़ा उपरी, लाग-डाट । आवाज | अ० 'चट-पट' आवाजके साथ । चटिक * - अ० चटपट; तत्काल । चटियल - वि० पेड़-पौधों से रहित, सपाट (मैदान) । चटी - स्त्री० चटशाला; एक तरहका जूता, चट्टी । चटुल- वि० [सं०] चंचल; अस्थिर; सुंदर । चटेल - वि० दे० 'चटियल' । चटोर - वि० दे० 'चटोरा' । -पन- पु० स्वाद लोलुपता । चटोरा - वि० स्वादिष्ठ, चटपटी चीजोंका शौकीन स्वाद लोलुप, खाने-पीने में रुपये उड़ानेवाला; लोभी | खट्ट - वि० चाट-पोंछकर खाया हुआ; समाप्त, गायब ! चट्टा - पु० चेला, शागिर्द; चकत्ता; बाँसकी चटाई; मैदान । चट्टान - स्त्री० बृहत् शिला, बड़ा पत्थर । चट्टा बट्टा - पु० काठके खिलौनों-चट्टू, झुनझुने आदिका समूह; ( बहुवचन) बाजीगरकी थैलीसे निकलनेवाले गोले या गोलियाँ । मु० एक ही थैलीके चट्टे बट्टे - एक जैसे, एक ही विचार - स्वभाव के मनुष्य । चट्टे बट्टे लड़ाना- इधरकी उधर लगाकर झगड़ा कराना । चट्टी - स्त्री० पड़ाव, यात्रियोंके टिकनेकी जगह; स्लिपर, एड़ीकी तरफ खुला हुआ जूता; हानि, टोटा; दंड । चट्ट - वि० चटोरा | पु० काठका एक छोटा खिलौना जिसे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चटखनी - चतुराई छोटे बच्चे मुँह में डालकर चाटते रहते हैं । चड्डी - स्त्री० एक तरहका लँगोट | चड्डी - स्त्री० पीठकी सवारी; एक बच्चेका दूसरे बच्चेकी पीठपर सवार होनेका खेल | चढ़त - स्त्री० देवताको चढ़ायी हुई वस्तु, चढ़ावा । चढ़न* - स्त्री० चढ़नेकी क्रिया । चढ़ाना - स० क्रि० ऊपर ले जाना; लटकती हुई चीजको सिकोड़ - सरकाकर ऊपर ले जाना (आस्तीन च० ); तेज, ऊँचा करना (भाव, स्वर); कसना; देवतादिको भेंट देना, अर्पण करना; लिखना, दर्ज करना; खींचना, तानना ( भौं कमान); लादना (कर्ज) ; पोतना; मढ़ना; पी जाना, उदरस्थ करना; चढ़ने, चढ़ाई करनेको प्रेरित करना; खींचना (नाक से पानी च० ); प्रवेश कराना; ढीठ बना देना । चढ़ाव - पु० चढ़नेका भाव, चढ़ाई; बढ़ाव; तेजी; ब्याइके समय वधूको वरपक्षकी ओरसे पहनाया जानेवाला गहना, चढ़ावा; धारा या बहावकी उलटी दिशा । चढ़ावा - पु० पूजा में देवताको चढ़ायी जानेवाली सामग्री; चढ़ाव या डालका गहना; चौराहे आदिपर रखी जानेवाली टोटकेकी सामग्री | For Private and Personal Use Only चणक- पु० [सं०] चना; एक गोत्रकार ऋषि । चतुरंग - वि० [सं०] चार अंगोंवाला । पु० चतुरंगिणी सेना; ऐसी सेनाका प्रधान अधिकारी; शतरंज; एक तरहका गाना जिसमें सरगम, तराना, तबले आदिके बोल बैठाये होते हैं । चतुरंगिणी - वि० स्त्री० [सं०] चार अंगोंवाली (सेना) । स्त्री० हाथी, घोड़ा, रथ और पैदलसे युक्त सेना । चतुर - वि० [सं०] होशियार, कार्यदक्ष, तेज, फुरतीला । चतुरई* - स्त्री० दे० 'चतुराई' | चतुरम्ल - पु० [सं०] अमलबेत, इमली, जंबीरी नीबू और कागजी नीबू - इन चार खट्टे फलोंका समाहार । - चतुरश्र (ख) - वि० [सं०] चौकोर, चतुष्कोण; सुडौल । चतुरसम* - पु० दे० 'चतुस्सम' | चतुराई - स्त्री० होशियारी, चालाकी ।
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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