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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अगटना - अगात्मज पैदा होनेवाला; पहाड़ पहाड़ घूमनेवाला; जंगली | पु० हाथी । - जग - पु० चराचर । -जा-स्त्री० पार्वती अगटनrt - अ० क्रि० एकत्र होना । अगड़ * - स्त्री० अकड़, ऐंठ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ अगराना * - स० क्रि० मन बढ़ाना; लाड़-प्यारके कारण धृष्ट बनाना । अ० क्रि० प्यार आदिके कारण धृष्टतापूर्वक व्यवहार करना । अगरी - स्त्री० [सं०] एक विषनाशक द्रव्य; देवताड़ वृक्ष । [हि०] व्योंडा: फूसकी छाजनका एक ढंग; * बुरी बात । | अगरु - पु० [सं०] अगरका पेड़ या लकड़ी । अगरे। - अ० सामने, आगे । अगड़धत्त (त्ता) - वि० लंबा-तगड़ा; ऊँचा; बढ़ा-चढ़ा | अगढ़बगड़ - वि० ऊलजलूल, बेसिरपैरका | पु० अंडबंड बात या काम । अगड़म - बगड़म - पु० तरह-तरह की चीजों या काठ कबाड़का बेतरतीब ढेर । अगरो* - वि० अगला; श्रेष्ठ; अधिक; निपुण । अगर्व - वि० [सं०] गर्व या अभिमानसे रहित । अगण - पु० [सं०] पिंगलके चार गण-जगण, तगण, रगण, अगर्हित-वि० [सं०] जो बुरा न हो, अनिंद्य । सगण - जो छंदके आदिमें अशुभ माने जाते हैं । अगणनीय - वि० [सं०] दे० 'अगण्य' । अगणित - वि० [सं०] अनगिनत, बेहिसाब | अगण्य - वि० [सं०] असंख्य; तुच्छ, उपेक्षणीय । अगत * - स्त्री० दे० 'अगति' । अगति - स्त्री० [सं०] गतिका अभाव; पहुँचका न होना; बुरी गति, असद्गति; गति अर्थात् मोक्षकी अप्राप्ति । अगतिक - बि० [सं०] निरुपायः निराश्रय । - गति - स्त्री० आश्रयहीनका आश्रय, अंतिम आश्रय ( ईश्वर ) । अगत्या - अ० [सं०] अंतमें; सहसा; लाचार होकर । अगढ़ - वि० [सं०] नीरोग, स्वस्थः न बोलनेवाला । पु० औषध, स्वास्थ्य, आरोग्य | अगदित - वि० [सं०] अकथित, जो कहा न गया हो । अगन+ - स्त्री० अग्नि । पु० दुष्ट गण ( पिंगल ) । वि० अगण, बेशुमार । अगनत, अगनित* - वि० दे० 'अगणित' । अगनिउ * - पु० अग्निकोण, दक्षिण-पूर्वका कोना । अगनी * - वि० अगणित । स्त्री० अग्नि । अगनू * - स्त्री० आग्नेय कोण । अगनेड (त) * - पु० अग्निकोण | अगम - वि० [सं०] न चलनेवाला, अगंता; सुदृढ़ । पु० वृक्ष; पहाड़ | *वि० दे० 'अगम्य' । पु० दे० 'आगम' | अगमन - पु० [सं०] गमनका अभ्भाव, न जाना । * अ० आगे से पहले । अगमनीया - वि० स्त्री० [सं०] दे० 'अगम्या' । अगमानी * - पु० अगुआ, नायक । स्त्री० अगवानी । अगमासी - स्त्री० दे० 'अगवाँसी' | अगम्य - वि० [सं०] दुर्गम पहुँच के बाहर, अप्राप्य; मन, बुद्धि के परे; कठिन; अपार; अथाह । अगम्या-वि॰ स्त्री॰ [सं०] न गमन करने योग्य (स्त्री) । स्त्री० वह स्त्री जिसके साथ संभोग निषिद्ध हो; अंत्यजा । -गमन - पु० अगम्या स्त्रीसे सहवास ( एक महापातक) । अगर- पु० एक पेड़ जिसकी लकड़ी में सुगंध होती हैं और धूप, दसांग में पड़ती है; ऊद | अगर - अ० [फा०] यदि, जो । -चे- यद्यपि । मु०-मगर करना - तर्क करना; आगा-पीछा करना । अगरई - वि० कालापन लिये हुए सुनहले रंगका । अगरना * - अ० क्रि० आगे जाना या बढ़ना । अगर बगर* - अ० दे० 'अगल-बगल' | अगरा* - दे० 'अगरो' । अगल-बगल - अ० इधर-उधर; आस-पास । अगला - वि० आगेका; बीते समयका, पुराना; आनेवाला; बादका | पु० अगुआ; चतुर, चालाक आदमी; पूर्वज । अगवना* - स० क्रि० सहना, अंगेजना । अ० क्रि० अग्रसर होना । अगवाँसी - स्त्री० हलकी वह लकड़ी जिसमें फाल लगता है। अगवाई - स्त्री० अगवानी । पु० अगुआ । अगवाड़ा - पु० घरके आगेका भाग या भूमि; 'पिछवाड़ा' का उलटा । अगवान - पु० अगवानी करनेवाला; अगवानी | अगवानी - स्त्री० आगे बढ़कर लेना या स्वागत करना, वरात स्वागतार्थं कन्यापक्षका आगे जाना । *५० अगुआ । अगवारt - पु० वह अन्न जो गाँवके पुरोहित, फकीर आदिको देनेके लिए खलिहान में राशिसे अलग कर दिया जाता है; ओसाते समय भूसेके साथ उड़नेवाला हलका अन्न; गाँवका चमार; दे० 'अगवाड़ा' | अगसार (री) - - * अ० आगे । अगस्त- पु० ईसवी सालका आठवाँ महीना; दे० 'अगस्त्य' | अगस्ति, अगस्त्य - पु० [सं०] एक प्राचीन ऋषि (पुराणों में इनके समुद्र को चुल्लू में धरकर पी जानेकी बात लिखी हैं ); एक तारा; एक पेड़ । अगह* - वि० अग्राह्यः पकड़ में न आने लायक; चंचल; ग्रहण के अयोग्य; दुस्साध्य; वर्णन या चिंतनके बाहर | अगहन - पु० अग्रहायण या मार्गशीर्ष मास । अगहनिया - वि० अगहनमें होनेवाला ( धान ) । अगहनी - वि० अगहन में तैयार होनेवाला । स्त्री० अगइनमें तैयार होनेवाली फसल । अगहर* - अ० आगे, पहले । अगहुँड़ * - अ० आगे; आगेकी ओर । वि० आगे चलने वाला । अगाउनी* - अ० अगौनी, आगे । अगाऊँ (ऊ) - वि० पेशगी, आगेका । अ० आगसे, पहले से । अगाड़ - पु० हुक्केकी निगाली; ढेकलीके छोरपर लगी पतली लकड़ी । , अगाड़ा - पु० पहले भेजा जानेवाला यात्राका सामान । अगाड़ी - अ० आगे; पहले; सामने; भविष्य में । स्त्री० किसी वस्तुका आगेका हिस्सा; घोड़ेकी गरदन में बँधी रस्सियाँ; अँगरखे या कुरतेका सामनेका भाग | अगात्मजा - स्त्री० [सं०] पार्वती । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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