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राष्ट्रीय।
काँध-कौवाल कौंध-स्त्री० बिजलीकी चमक; चमक ।
हँसी-मजाक; विवाहका कंगन कंगनकी विधि । -प्रियकाँधना-अ० कि० बिजलीका चमकना।
वि० जिसे खेल-तमीशा या हँसी-मजाक पसंद हो। काँधनी -स्त्री० करधनी।
कौतुकिया-वि० दे० 'कौतुकी'। कौंधा*-स्त्री० बिजलीकी चमक; बिजली-'जनु कौंधा कौतुकी(किन्)-वि० [सं०] खेल-तमाशा करनेवाला, लोकहि दुइ कोने'-५०; चमक ।
विनोदी विवाह-संबंध करानेवाला। कौल*-पु० कमल ।
कौतूह*-पु० लीला, कौतुक ।। कौवरा-वि० कोमल ।
| कौतूहल-पु० [सं०] कुतूहल; त्योहार, उत्सव । कौ*-प्र० कर्म, संप्रदान और संबंध कारककी विभक्ति। कौन-सर्व प्रश्नवाचक सर्वनाम । वि० किस प्रकारका। कौआ-पु० एक पक्षी जो अपने काले रंग, धूर्तता आदिके | कौनप*-पु० दे० 'कोणप'। लिए प्रसिद्ध है; धूर्त मनुष्य; गलेके भीतरकी धाँटी; कन-कौपीन--पु० [सं०] गुह्य भागको ढकनेवाला वस्त्र-खंड, कुटकी; एक मछली। -ठोठी-स्त्री० एक लता जिसके लँगोटी; चीथड़ा। फूलकी शकल कौएकी चोंचकीसी होती है। -परी-स्त्री० कीज्य-पु० [सं०] कुवड़ापन । काली, बदशकल स्त्री। -रोर-पु० हल्ला, कागारोल ।। क्रीम-स्त्री० [अ०] मनुष्य-समूह; जाति, वंश, नस्ल राष्ट्र । कौआल-पु० दे० 'कौवाल'।
-परस्त-वि० राष्ट्रवादी। कौआली-स्त्री० दे० 'कौवाली' ।
कौमार-पु० [सं०] कुमार-(जन्मसे पाँच बरसतककी) कोक्कुटिक-पु०[सं०] मुगें पालनेवाला; ढोंग करनेवाला । अवस्था; कुँवारापन । वि० कुमार-संबंधी; कोमल; युद्धकौटिलीय-वि० [सं०] कौटिल्यकृत ।
देव-संबंधी। -भृत्य-पु० बच्चोंका पालन-पोषण, दवाकौटिल्य-पु० [सं०] कुटिलता, टेढ़ापन, फरेब, बेईमानी; इलाज; आयुर्वेदका शिशु-चिकित्सा-अंग। -व्रत-पु०
अर्थशास्त्रके कर्ता और कूटनीतिके आचार्य चाणक्य । अविवाहित रहनेका व्रत । कीड़ा-पु० बड़ी कौड़ी; अलाव ।
क्रौमि(मी)यत-स्त्री० [अ०] जाति, कीमका भाव, जातीकौड़िया-वि० कौड़ीके रंग-रूपका। * पु० दे० 'कोडिला' । | यता राष्ट्रीयता। कौडियाला-वि० कौड़ीके रंगका, कोकई । पु० कोकई रंग; कौमी-वि० [अ०] कौमसे संबंध रखनेबाला, जातीय; एक जहरीला साँप; एक वनौषधि; कंजूस धनवान् । । कौड़ियाही-स्त्री० मिट्टी, ईटों आदिकी ढुलाई जो खेप पीछे कीमुदी-स्त्री० [सं०] चाँदनी कात्तिककी पूर्णिमा आश्विनकुछ कौड़ियोंके हिसाबसे दी जाती है। वि० स्त्री० बहुत | की पूर्णिमा उत्सव; दीपोत्सवः कुमुद; व्याख्या, टीका छोटी रकम लेकर काम करनेवाली।
(ग्रंथके नामके साथ)। -पति-पु० चंद्रमा । -महोकौडिल्ला-पु० एक मत्स्यभक्षी जलपक्षी।।
रसव-पु० कात्तिकी पूर्णिमाको होनेवाला उत्सव । कौड़ी-स्त्री० धोंधे, शंख आदिके वर्गका एक कीड़ा; उस कौमोदकी, कौमोदी-स्त्री० [सं०] विष्णुकी गदा । कीड़ेका अस्थिकोश जो विनिमयके साधनके रूपमें भी काममें कौर-पु० कवल, निवाला ।। लाया जाता है, वराटिका पैसा, धन; कर, महसूल; जाँध,कीरना -स० कि० हलका भूनना। काँख आदिमें निकलनेवाली छोटी गिलटी; आँखका डेला कौरव-पु० [सं०] कुरुका वंशज; कुरु-नरेश । वि० कुरुसीनेकी वह हदी जिसपर नीचेकी पसलियां मिलती है। वंशियोंसे संबंध रखनेवाला (कौरव सेना)। -पतिकटारकी नोक । -का-मूल्यरहित; तुच्छ, हेय ।-भर- पु० दुर्योधन । कौड़ी बराबर; बहुत थोड़ा। मु०-केफनको न होना
कीरा-पु० दरवाजेके अगल-बगलकी, चौखटेके पीछेकी बिलकुल मुफलिस, मुहताज होना ।-के तीन,-के तीन- दीवार; कुत्तेको दिया जानेवाला खाना; दे० 'कोड़ा' । तीन-बहुत सस्ता, जिसे कोई न पूछे ।-के तीन होना- म. कोरे लगना-किसीकी बातें सुननेके लिए. दरवाजेकी तुच्छ, हेय होना। -के मोल-बहुत सस्ता या सस्तेमें। बगल में छिपकर खड़ा रहना मुह फुलाना धातमें बैटना। -०न पूछना,-न लेना-मुफ्तमें भी न लेना, एकदम कोरी*-स्त्री० अंक, गोद । निकम्मा समझना । -.बिकना-बहुत सस्ता बिकना; | कौलंज-पु० पसलियोंके नीचे होनेवाला एक तरहका दई । तुच्छ, बेकदर होना। -कौड़ीका हिसाब-छोटीसे छोटी कौल-पु० कौर; * कमल कोर । रकमका. पाई-पाईका हिसाब । -कौडीको मुहताज- कौल-पु० [अ०] वचन, उक्ति प्रतिज्ञा, इकरार; वह बिलकुल मुफलिस, अति निर्धन । कीड़ी चुका देना-पूरा सूफियाना गीत या शेर जो कीवाल गाते हैं । -(व) पावना, पाई-पाई बेबाक कर देना ।-कौड़ी जोड़ना-एक- करार-पु० परस्पर प्रतिशा । -का पक्का-बातका धनी। एक पैसा-थोड़ा-थोड़ा करके धन बटोरना ।-फिरना- कौलटेय-पु० [सं०] कुलटाका पुत्र; भिक्षुकीका पुत्रा जुएमें अपना दाँव पड़ने लगना।
जारज पुत्र । कौणप-पु० [सं०] मुर्दाखोर राक्षसावि० पातकी, अधभी। कौलव-पु० [सं०] ज्योतिषके ११ करणों से एक । कौणिक-वि० [सं०] जिसमें कोण हो, नुकीला । कौलीन्य-पु० [सं०] कुलीनता । कौतिक, कौतिग*-पु० दे० 'कौतुक' ।
कौली*-अ० कबतक । कौतुक-पु० [सं०] कुतूहल, उत्सुकता कुतूहल जगानेवाली कौवा-पु० दे० 'कौआ'। वस्तु अचंभा; तमाशा; उत्सव, आनंदा हास्य-विनोद, कौवाल-पु० [अ०] कौवाली गानेवाला; गवैया ।
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