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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किचिद् यक्तब्य । चिरन्तनाचार्यविरचित स्वोपज्ञ विवरणथी अलङकृत उत्सूत्रकन्दकुद्दालापरनाम 'गुरुतत्त्वप्रदीप' नामनो ग्रन्थ 'गुरुतत्वव्यवस्थापनवादस्थल'सहित जिनागमना रसिक एवा बुधजनोना करकमलमा अर्पण करवामां आवे छे. बीजा केटलाक पू. ग्रन्थकारनी जेम आ पू. ग्रन्थकारे पण पोतानु पुण्य नामादि जणावेल नथी परंतु पूज्यश्री जिनशासनना रागथी रंगायला तेमज सातिशय ज्ञानवंत हता ए वांचनारने सहज प्रतीत थाय तेम छे । सत्तासमय-पू. ग्रन्थकारना सत्तासमयसंबन्धमा पू. ग्रन्थ कार पोते आ ग्रन्थना ८ मा विश्रामना १४ मा 'एतत्तु क्षेमकीाद्य०' श्लोकमा जणावे छे, के-गुरुशिष्यना क्रमवालु आगमानुसार आ चारित्र आचार्यश्री विजयचन्द्रसरिजीना शिष्य आचार्यश्री क्षेमकीतिसूरिजी विगेरेमा छे. आ उपरथी आ पू. ग्रन्थकार आचार्यश्री क्षेमकीतिसूरिजीना समयमां थया छे ए सिद्ध थाय छे. आचार्यश्री क्षेमकीतिसूरिजीनो सत्तासमय विक्रमनी १४ मी शताब्दी छे तो आ ग्रन्थकारनो सत्तासमय पण विक्रमनी १४ मी शताब्दी छे विषय-आमां स्वपक्ष तपगच्छन स्थापन अने दिगम्बर-पूनमीया आदि परपक्षोनु आगम अने युक्तिपूर्वक मध्यस्थताथी निरसन करवामां आव्यु छ. विशेष विषयानुक्रमथी जाणवो. प्रामाण्य-आ ग्रन्थना घणा श्लोको महोपाध्याय श्रीमद्धर्मसागरगणिवरे पोतानां तत्त्वतरङ्गिणी,प्रवचनपरीक्षा विगरे ग्रंथोमा साक्षी तरीके उद्धरेला छ. आ उपरथी आ ग्रन्थ- प्रामाण्य प्रतीत थाय छे. संशोधनमा शासनकण्टकोद्धारक गणिवर्यश्री हंससागरजी महाराजजीना शिष्यरत्न ज्योतिविद् मुनिराजश्री नरेद्रसागरजी महाराजजीए आ ग्रन्थनी स्वहस्तलिखित ४ बुको अमोने आपी हती. तथा एक प्रति श्रीहेमचन्द्राचार्यजनज्ञानमन्दिर पाटणनी साहित्यसंशोधननिष्णात विद्वद्वर्य मुनिराजश्री पुण्यविजयजी महाराजजी द्वारा अने बीजी एक प्रति महोपा. ध्याय श्री यशोविजयजी शास्त्रसंग्रह डभोईनी सुश्रावक मफतलालभाई द्वारा प्राप्त थइ हती. तेना आधारे आ ग्रन्थन सावधानीथी संशोधन करवामां आव्युं छे. छता कोइ भूल रहेली जणाय तो सुज्ञोए सुधारी वांचq ए अभ्यर्थना । नागपुर अक्षयतृतीया लि.- संशोधक For Private And Personal Use Only
SR No.020363
Book TitleGuru Tattva Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChirantanacharya, Labhsagar
PublisherMithabhai Kalyanchand Pedhi
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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