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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षष्ठो विधाम: wwvvvv वीरवरस्स भगवओ उवसंपज्जित्तु धम्मपन्नत्ति । विहरइ अ जाव सामी समोसढो तत्थ तं समयं ।।११।। लट्ठो अ इमीसे कहाइ सो हट्टतुट्ठओ हिअए । सेअं खलु मह सामी वंदित्ता तह नमंसित्ता ।।१२।। तत्तो पडिनिअत्तस्स पोसहं पारिअं च पेहित्ता । जह नाम कामदेवो तह थुव्वइ पज्जुवासेइ ॥१३॥ जंपिअ समए भणिों कडसामइओ गुरूण पासंमि । रयहरणमह निसिज्ज मग्गइ सड्ढो अह घरम्मि ॥१४॥ तो तस्स उवग्गहिअं रयहरणं तस्स असइ पुत्तस्स । अतेणं तु तहपिअ पुत्तं मुहपुत्तिआ नेआ ।।१५।। वासत्ताणावरिआ निक्कारण ठंति कज्जि जयणाए । हत्थत्यंगुलिसन्ना पुत्तंतरिआ व भासंति ॥१६॥ इअ आवस्सयगाहामज्झे पढिअस्स पुत्तिसहस्स । मुहपत्तिअत्ति अत्थो चुणीए वणितो जम्हा ॥१७॥ कन्हस्सट्ठारसमुणिसहस्सवंदणगवइयरे वितहि । भणिअमिमं वि असामी समोसढो निग्गओ राया ॥१८॥ सव्वेपि वंदिआ जाव बारसावत्तवंदणेणंति । किं बहुणा पंचविहाभिगमो नम्भासिओ तत्थ ॥१९।। तह पन्हावागरणे दसमंगे सावगाण मुहपत्ती । पडिच्चिअ ठाणतिगे वन्निज्जइ तस्थिम पढम ॥२०॥ दव्वकयं भावकयं दव्वकयं पुत्तियाइ इय सुत्ते । - मुहपुत्तियाइ दब्वेण सावगं किणइ साहुत्ति ।।२१।। For Private And Personal Use Only
SR No.020363
Book TitleGuru Tattva Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChirantanacharya, Labhsagar
PublisherMithabhai Kalyanchand Pedhi
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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