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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / भटेषु व्याकुलेपूच्चैश्चंद्रे चिंतातुरे सति // निर्गतः सुभटः कोऽपि, हयारूढो महाद्युतिः // गुण भल्लेन त्रासितास्तेन, सर्वे भिल्लागिरिययुः। व्यावर्त्तमानो नो दृष्टः,सुभटः कापि केनचित।। चार // 36 // चंद्रश्चित्रमिदं चित्ते, दधानः सपरिच्छदः। आजगाम पुरी चंपां, पितुश्चक्रे परां मुदम् 141 / / भोजनादनु तातेन, पृष्टं पुत्र तवाध्वनि // कष्टद्वयं समायातं, नद्यां कांतार एव च // 14 // पुत्रोऽवादीत् कथं तात, भवता ज्ञायते ह्यदः॥ कथं को वा समायातः, पूर्वमेव ममागमात्।। पिता प्रोचे न कोऽप्यागाज्जानामि स्वयमेव हि // पुत्रेण कथमित्युक्ते, समये कथयिष्यते।। || / इत्युक्त्वा श्रेष्ठिना शीघं, लेख्यं पुत्रेण कारितम्॥अदूरे स्थापितश्वायं, रात्रौ वाती प्रकुर्वता।। || अर्द्धरात्रे जगौ श्रेष्ठी, वत्स जागर्षि किं न वा॥सोऽथ जागरितोऽद्राक्षीदूर्धस्थं पितरं निजम् // भूमौ शयानमेकं च, दृष्ट्वा स पितरं जगौ // किमिदं दृश्यते तात, तव रूपदयं मया 147 श्रेष्ठी जगाद हेवत्स, स्वरूपं कथ्यते तव // त्वयि चंद्रावती यातेऽभून्मे किंचिदपाटवम् 148 // # स्वभावेनैव सम्यक्त्वाद्युच्चारं स्वयमेव हि // कृत्वा सुप्तःप्रमीलायामेव मृत्वा सुरोऽभवम् // // 36 // अवधिज्ञानतो ज्ञात्वा स्वरूपं सर्वमात्मनः।। गृहसूत्राय काय स्वस्तत्क्षगादाश्रितो मया 150 axX For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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