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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७ कातरि' कुतरना (३)कम करना (४)कुरेदना; खुरचना (५)कटती कहना [ला.] कातरियुं न० छप्परके बिलकुल पासकी नीची मंजिल (२) लकड़ीका एक दुधारा अस्त्र (३) सेंध लगानेका औजार (४) दो चूड़ियोंके बीच में पहननेका एक पतला कंगन (५) भेजा (६) कटाक्ष; तेवर बदलकर देखना; तीखी निगाहसे देखना (७) स्लेटका टूटा हुआ बड़ा टुकड़ा। [कातरियां खावां, नाखवां रोषमें तिरछे देखना; चिढ़कर देखना.] कातरी स्त्री० किसी चीजका पतला, चिपटा टुकडा; कतला; बचका [प.] कातरो पुं० चिपटा, लंबा और टेढ़ा फल उदा. 'आमलीनो कातरो' (२) इससे मिलती-जुलती एक आतिशबाजी; छडूंदर(३)अनाजके उगते पौधोंको खा जानेवाला एक कीड़ा (४) गलमुच्छा (५) केलोंका घौरा, घौद कातळी स्त्री० देखिये 'कातरी' कातिल वि० कातिल (२) घातक (३) मर्मभेदी [(३) दगा [ला.] काती स्त्री० काती; छुरी (२) करवती कातुं न० काता; कुंद छुरी काथाकबला पुं० ब०व० कुत्सा; निंदा; झूठ-सच (२)हुज्जत ; व्यर्थकी तकरार कापियुं वि० कत्थई (२)न० नारियलके छिलकोंके रेशोंको बटकर बनाई हुई रस्सी (३) इसकी चटाई(४)पा-अंदाज़ काथी स्त्री० नारियलके छिलकोंके रेशे या इनकी डोरी कापो पुं० कत्था; खैरसार कादव पुं०कीच ; कीचड़। [-उरावो, फेंकवो निंदा करना; बदनाम करना.] कानुगे कादव-कीचड पुं० गहरा कीचड़, दलदल कान पुं० कान (२) लक्ष्य; ध्यान (३) बेध; छेद । [-ऊघरवाखरी बाबत मालूम होना। -करडवा कानाफूसी करना। घरेणे मूकवा-बहरा बनना। -फूटवा = (बहरा हो जाय ऐसा) असह्य कोलाहल होना (२) बहरा होना।-फोडी नाखवाभारी शोरगुल होना।-मांचा मारवा=कानमें तेल डालना.] कानखजूरो पुं० कनखजूरा कानछेरियां न० ब० व० कानके ऊपरके बालोंकी जुल्फें कानटोपी स्त्री० कनटोप; कुलही .. कानडी वि० करनाटकी(२) स्त्री० कन्नड (भाषा) कानपटी (-ट्टी) स्त्री० कामकी लो; लोलकी। -पकडवी=अपनी भूल क़बूल करना; कान पकड़ना (२) किसीको आगेके लिए सचेत करनेके लिए उसका कान पकड़ना; कान ऐंठना.] कानफटो पुं० कनफटा (साधु) कानफूटुं वि० बहरा कानफूसियां नम्ब०व० कानाफूसी ; कन फुसकी (२) बहकाना; कान भरना कानफूसियं वि० बहकानेवाला; कनफुसका (२)चुगलखोर(३) न० बहकाना या चुग़ली करना; कान भरना कानभंभेरणी स्त्री० कान भरना कानमूळियं न० कानकी जड़में होनेवाला एक रोग; कर्णमूल [कानछेरियां' कानशियां,कानशेरियां न०ब०व०देखिये कानस स्त्री० रेती (औजार) कानुगे पुं० कान्ह; कन्हाई; श्रीकृष्ण For Private and Personal Use Only
SR No.020360
Book TitleGujarati Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGujarat Vidyapith
PublisherGujarat Vidyapith
Publication Year1992
Total Pages564
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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