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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाताधर्मकथासूत्र तस्से ' त्यादि, तस्य स्लु प्रथमस्य श्रुतस्कन्धस्य एकोनविंशतिरध्ययनानि एगसरगाणि' एकस्वरकानि=समानोच्चारणानि अन्तराले उद्देशरहितानि एकोन विंशति दिवसेषु समाप्यते ॥ मू० ७ '। मंगलं भगवान् वीरः मंगलं गौतमः प्रभुः। सुधर्मा मंगलं, जंबूनॆनधर्मश्च मंगलम् ॥ १ ॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगदूवल्लभ-प्रसिद्धवाचकपञ्चदशभाषाकलितललितक.. लापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहूच्छ. त्रपतिकोल्हापुररानप्रदत्त-'जैनशास्त्राचार्य' पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री-घासीलारअतिविरचितायां — ज्ञाताधर्मकथाङ्ग' सूत्रस्यानगारधर्मामृतव पिण्याख्यायां व्याख्यायां प्रथमश्रुतस्कंधः समासः ।। इस कथन में मैंने अपनी तरफ से कोई भी कल्पना मिश्रित नहीं की है किन्तु प्रभु के मुख से जैसा मैंने इसे सुना है वैसा ही यह तुम से मैंने कहा है । " तस्से " त्यादि इस प्रथम श्रुतस्कंध के अन्तराल में उद्देश रहित १९ अध्ययन हैं। ये अध्ययन १९ दिनोंमें समाप्त होते हैं । टीकार्थ:-सांसरिक समस्त जीवों के लिये यदि मंगलकारी पदार्थ है-तो ये हैं भगवान महावीर प्रभु गौतमगणघर, सुधर्मास्वामी, जंबूस्वामी और जैनधर्म। __ इस तरह ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्रके प्रथम श्रुतस्कंध संपूर्ण । આ કથનમાં મેં મારા તરફથી કઈ પણ જાતની કલ્પના મિશ્રિત કરી નથી, पा प्रभुना भुमयी रे में समन्युं छे ते २४ मे छ. " तस्से " A LE આ પ્રથમ શ્રત–રકંધના અંતરાલમાં ઉદ્દેશ રહિત એગણીસ અ યને છે. આ અધ્યયને ઓગણીસ દિવસોમાં સમાસ હોય છે. ટકાથ–બધા સાંસારિક જેના માટે જે મંગળકારી પદાર્થો છે તે તે એજ છે-ભગવાન મહાવીર પ્રભુ, ગૌતમ ગણધર, સુધર્મા સ્વામી, રવાની અને જૈન ધર્મ. "मा प्रभादेशाताधर्म यांगनी ज्ञाता-नामे प्रथम श्रुत४५ समास यया." . For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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