SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 534
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१५ अगारधर्मामृतवर्षिणी टी० मं० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् दोवईदेवी पउमनाभं रायं एवं क्यासी- किण्णं तुमं देवाशुप्पिया ! न जाणसि कण्हस्स वासुदेवस्स उत्तम पुरिसस्स विप्पियं करेमाणे ममं इहं हव्वमाणेसि, तं एवमवि गए गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! पहाए उल्लपडसाडए अवचूलगवत्थणियत्थे अंतेंउरपरियाल संपरिवुडे अग्गाई वराई रयणाई गहाय ममं पुरओ काउं कण्हं वासुदेवं करयलपायपडिए सरणं उवेहि, पणिवइयवच्छला णं देवाणुपिया ! उत्तमपुरिसा, तएणं से पउमनाभे, दोवइए देवीए एयमहं पडिसुणेइ पडिसुणित्ता हाए जाव सरणं उइ उवित्ता करयल० एवं वयासी - दिवाणं देवाप्पियाणं इड्डी जाव परक्कमे तं खामेमि णं देवाणुपिया ! जाव खमंतु णं जाव णाहं भुज्जोर एवं करणयाएत्तिकहु पंजलिवुडे पायवडिए कण्हस्स वासुदेवस्स दोवई देवि साहित्थि उवणे, तणं से कहे वासुदेवे पउमणाभं एवं वयासी - हं भो पउमणाभा ! अप्पत्थियपत्थिया४ किण्णं तुमं ण जाणसि मम भगिणिं दोवईदेवीं इह हव्वमाणमाणे तं एवमवि गए णत्थि ते ममाहिंतो इयाणि भयमस्थि त्तिकट्टु पउमणाभं पडिविसजेइ पडिविसज्जित्ता दोवई देवि गिन्हइ गिण्हित्ता रहं दुरुहेइ दुरुहिता जेणेव पंच पंडवे तेणेव उवागच्छर्इ उवागच्छित्ता पंचण्हं पंडवाणं दोवई देवि साहित्थि उवणेइ, तपणं से कण्हे पंचहि पंडवेहि सद्धि अप्पछट्टे छहिं रहेहिं लवणसमुहं मज्झं मज्झेणं जेणेव जंबूदीवे दीवे जेणेव भारहे वासे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सू० २९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy