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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गारधर्मामृतवर्षिण टीका अं० ५ प्रभु समवसरणम् जातकं, किंचिदधिकाण्टवर्षजातं ज्ञात्वा शोभने तिथिकरणदिवसनक्षत्रमुहूर्ते ' कलायरियस्स ' कलाचार्यस्य समीपे उपनयति यावत् सर्वाः कलाः शिक्षयति मेघकुमारवद् द्वासप्ततिकला अनेन शिक्षिता इत्याशयः । भोगसमर्थ यौवनवयः समागमेन विषयभोगयोग्यताऽपन्नं ज्ञात्वा द्वात्रिंशता 'इन्भकुल बालियाणं ' इभ्य कुलबालिकानाम् महाधनाढ्यसार्थवाहानां द्वात्रिंशत्संख्यकन्यानाम् एकदिवसेन एकस्मिन्नेव दिने पाणिग्राहयति पाणिग्रहणं कारयति । द्वात्रिंशद्दायः द्वात्रिंशद् हिर कोट्यः द्वात्रिंशत् सुवर्णकोटचः इत्यादिरूपो मेघकुमारवद्दायोऽवगन्तव्यः । यावत् तदनन्तरं स्थापत्यापुत्रः द्वात्रिंशता इभ्यकुलबालिकाभिः सार्धं विपुलान् शब्दस्पर्श रसरूपवर्णगन्धान् विषयान् यावद् भुञ्जानः अनुभवन् विहरति = आस्तेस्म ॥ ०६ ॥ इस के उस स्थापत्य गोधा पत्नीने उस अपने पुत्र को आठवर्ष से कुछ अधिक जब जाना तब शुभ तिथि करण दिवस नक्षत्र एवं मुहूर्त्त में ( कलायरियरस) कलाचार्य के पास ( उवणे३) भेजदिया (जाव भोग समत्थं जाणित्ता बत्तीसाए इन्भकुलबालियाणं एग दिवसेणं पाणिं गेहावेह) यावत् मेघकुमार की तरह उस स्थापत्य पुत्र ने ७२ बहत्तर कलाओं को सीखलिया । यौवनवय के समागमन से विषय भोग की योग्यता विशिष्टइसे जानकर बाद में उस स्थापत्यागाथापत्नीने उसका वैवाहित संस्कार एकही दिनमें ३२ महाघनाढ्य सार्थवाहों की कन्याओं के साथ करवा दिया। (बत्तीसं ओदाओ जाव बत्तीसाए इम्भकुलपालियाहि सद्धिं विपुले सफरिसरूवगंधे जाव भुंजमाणे विहरइ) ३२बत्तीस हिरण्य कोटि ३२ बत्तीस सुवर्ण कोटि इत्यादि रूपदहेज इसे मेघकुमार की तरह मिला। इसके बाद स्थापत्य पुत्र ने ३२ उन इभ्यकुल बालिकाओं के साथ ગાથા પત્નીએ પેાતાના પુત્રને આઠવર્ષ થી ચેાડા માટે થયેલા જાણીને શુભ तिथि, पुरणु, द्विवस, नक्षत्र भने मुडूतंभां ( कलायरियस्स) सायार्यनी पासे (उत्रणेइ ) भोडल्या. ( जाब भोगसमत्थ जाणित्ता वसीसाए इब्भकुलबालियाणं एगदिवसेण पाणि गेव्हा वेइ ) मेघकुमारनी प्रेम ते स्थापत्य पुत्रे પશુ મેત્તેર કલાઓ શીખીલીધી. જયારે તે યુવાવસ્થા સંપન્ન થઈને વિષયાપભાગને લાયક થયા ત્યારે ગાથાપત્નીએ એકજ વિસમાં તેનું લગ્ન બત્રીસ भडाघनाढ्य सार्थवाहोनी अन्यामोनी साथै उरावडाव्यं ( बत्तीस ओदाओ जाव antare souकुलवालियाहि सर्दि त्रिपुले सफरिस गंधे जाव भुंज माणे बिहरह) मत्रीस हिरएस टि मंत्री सुर्य अविगेरे ढडे भेत्र भारनी જેમજ તેને પણ મળી. ત્યાર પછી સ્થાપત્ય પુત્ર બત્રીસ ઈલ્મકુળ બળાઓની For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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