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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -... बाताधर्मकथाहरणे ते भगा देवा वेसमणेणं एवं धुत्ता समाणा हट्ट तुट्ठा जाव पडिसुणेति, पडिसुणित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता जाव उत्तर वेउब्धियाइं, रुवाइं विउव्वंति) इस के बाद वैश्रमण देव के बारा इस तरह अज्ञापित हुए उन जंभक देवो ने हर्षित एवं संतुष्ट होकर उस की आज्ञा को मान लिया-स्वीकार कर लिया-। स्वीकार कर वे ईशान कोण की ओर गये । वहां जाकर उन्हों ने उत्तर वैक्रिय रूपों की विकुर्वणा की-(विउन्वित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव वोइवयमाणा जेणेव जंबूहीवे दीवे भारहे वासे जेणेव मिहिला रायहाणी, जेणेव कुंभगस्स रमोभवणे तेणेव उवागच्छंति) विकुर्षणा करके फिर वे उस देव गति संबन्धी उत्कृष्ट गति से यावत् चलते हुए जहां जंबूद्वीप नाम का द्वीप भारत वर्ष नाम का क्षेत्र, उस में भी जहां मिथिला नाम की राजधानी उसमें भी जहां कुंभक राजा का राज प्रासाद था-वहां आये। (उवागच्छित्ता कुंभगस्स रण्णो भवणसि तिन्नि कोडिसया जाव साहरंति) वहां आकर उन्हों ने कुंभक राजा के भवन में तीनसौ अट्ठासीकरोड और ८०लाख सुवर्ण दीनारसे भंडार भर दिया। (साहरि (तएणं जंभगा देवा वेसमणेण एवं वुत्ता समाणा हट्ठ तुट्ठा जाव पडिसुणे ति, पडिमुणित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीमागं अवक्कमंति अबक्कमित्ता जाव उत्तरवे उब्वियाई रूपाई विउबति) ત્યારબાદ વૈશ્રવણ દ્વારા આજ્ઞાપિત થયેલા ઝભક દેવેએ હર્ષિત તેમજ સંતુષ્ટ થઈને તેની આજ્ઞાને માની લીધી એટલે કે તેની આજ્ઞા સ્વીકારી. સ્વીકાર્યા બાદ તેઓ ઈશાન કેણુ તરફ ગયા. ત્યાં જઈને તેઓએ ઉત્તર વૈકિય રૂપની વિકુણા કરી. (विउव्बित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव वीइवयमाणा जेणेव जंबूहीवे दीवे भारहे वासे जेणेव मिहिला रायहाणी, जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे तेणेव उवागच्छंति) વિમુર્વણા કર્યા પછી તેઓ દેવગતિ સંબંધી ઉત્કૃષ્ટ ગતિથી ચાલતાં જ્યાં જબૂઢીપ નામે દ્વીપ, ભારતવર્ષ નામે ક્ષેત્ર અને તેમાં પણ જ્યાં મિથિલા નામની રાજધાનીમાં કુંભક રાજાને મહેલ હતું ત્યાં ગયા. (उबागच्छित्ता कुंभगस्स रण्णो भवणंसि तिन्नि कोडिसया जाव साहरं ति) ત્યાં જઈને તેઓએ કુંભક રાજાના મહેલમાં ત્રણ ઈર્ષાશીકરોડ અને એંશી લાખ સોનામહેર ભંડાર–ખાનામાં મૂકી દીધી. For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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