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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ महाबलादि षट्राजचरितनिरूपणम् २७७ ( मध्यजम्बूद्वीपे ) भारते वर्षे भरत-क्षेत्रो, विशुद्धपितमातृवंशेषु राजकुलेषु प्रत्येकं २ कुमारतया ' पच्चायाया होत्या प्रत्युत्पन्ना अभूवन् तद्यथा-१. पतिबुद्धिः-इक्ष्वाकुराजः प्रथमो जीवः प्रतिबुद्धि नामकः कोशलदेशाधिपतिः । यत्रदेशेअयोध्यानगरी २. चन्द्रच्छाय:-अङ्गराजः द्वीतीयो-धरणि जीवः चन्द्रच्छायनामाऽङ्ग देशाधिपतिः यत्र चम्यानगरी ३. शङ्ख काशिराजः, तृतीयोऽभिचन्द्रजीतः शङ्खनामा-काशिदेशाधिपतिः यत्र वाराणसी नगरी । ४ रुक्मी-कुणालाधिपतिः चतुर्थः पूरण जीव:--रुक्मीनामकः कुणालदेशाधिपतिः यत्र श्रावस्ती नगरी । ५. अदीनशत्रु:-कुरुराजः, पश्चमो वसु जीवोऽदीनशत्रुनामकः कुरु देशाधिपतिः । यत्र( विसुद्धपिइमाइवंसेसु ) विशुद्ध माता पिता के वंश वाले राज कुलों में ( पत्तेय २) पृथक २ (कुमारत्ताए पच्चायायासी) पुत्र रूप से उत्पन्न हुए । (तंजहा) इनमें (पडिबुद्धी इक्खागराया चंदच्छाए अंगराया संखे कासि राया, रुप्पी कुणालाहिवह, अदीणसत्तू कुरु राया, जित पत्तू पंचालाहिवई ) प्रथम जो अचल का जीव था वह कोशल देश का अधिपति हुआ, जिस में अयोध्या नगरी है-इसका नाम वहां प्रतिबुद्ध हुआ। दूसरा जिसका नाम धरण था वह चन्द्र छाया नाम का अङ्ग देश का अधिपति हुआ। इस अंग देश में चंपा नगरी है। तीसरा जो अभि चन्द्र का जीव था वह काशी देश का राजा हुआ। वहां इसका नाम शंख हआ। इस काशी देश में बनारस नाम की नगरी है। चौथा जो पूरण का जीव था वह कुणाल देश का अधिपति हुआ उसका वहां नाम रुक्मी था । इस कुणाल देश में श्रावस्ती नगरी है । पांचवां जो "विसुद्धपिइमाइवसेसु" विशुद्ध भातापिताना शा २०४ामा (पत्तयं२) हा हा (कुमारत्ताए पच्चायायासी) पुत्र ३ म पाभ्या. (तौं जहा) मा मधामi. (पडिबुद्धी इक्खागराया चंदच्छाए अंगराया संखे कासिराया रुप्पी कुणाला हिवइ अदीणसत्तू कुरुराया, जितसत्त पंचालाहिवई ) પહેલે અચલને જીવ કેશલ દેશને અધિપતિ થયે કેશલ દેશનું પાટનગર અયોધ્યા નગરી હતું. અચલને જીવ ત્યાં પ્રતિબુદ્ધ નામે પંકાયે. બીજે ધરણ અંગ દેશને અધિપતિ થયે તેનું નામ ચંદ્રછાય હતું. ત્રીજા અભિચંદ્રને જીવ કાશી દેશને રાજા થયે. તે ત્યાં શખ નામે પ્રસિદ્ધિ પામે. આ કાશી દેશમાં બનારસનામે નગરી છે. ચોથા પૂરણને જીવ કુણાલ દેશને અધિપતિ થયે. ત્યાં તેનું નામ કમી હતું. આ કુણાલદેશમાં For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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