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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीतवीतरागप्रबन्धः मण्डपपल्लवतोरणमण्डलशोभितकृत गिरिजालं खण्डितवनिताकृतक कलह भावमण्डितविमुखविशालम् । ब्रूहि व्यलिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ *४ ॥ सुरगिरितमणिरुचिगणयवनिकाव्यवहित दम्पतिरूपं सरसजनितकोपयुवतिचरणह तिगिरितटगुल्मकलापम् । ब्रूहि व्यखिदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ ५ ॥ ५ मामभिरञ्जितुमानत मस्तकराजितवनितालीलं " कोमलतरचरणौ मम नन्दितुमानमदबलाखेलम् । ब्रूहि व्यलिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ *६ ॥ अच्युत कल्पसुरेन्द्र कृतादर लब्ध सन्मानविस्तारं अर्चितमेरुनगादि जिनगृह वन्दनगमनविचारम् । ब्रूहि व्य लिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ *७ ॥ ५) A लीलां । ६ ) AM खेलाम् । उरसि मम विहितचरण सुलान्छनत्रिरहितसकलविनोदं चरणसरोजे नतमकुटं मां त्यक्त्वा सरससुमोदम् । ब्रूहि व्यलिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ ८ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020343
Book TitleGeet Vitrag prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages119
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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