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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२. प्रकार भव से भव भव से भव, भव... इस तरह चलता ही रहेगा, और मोक्ष कभी नहीं होगा । क्योंकि आप को तो भव के प्रति पूर्व भव हो कारण है । (६) प्र० - मिट्टी में से स्व स्वभाव से अनुरूप कार्य घड़ा होता है, इसी प्रकार इस भव में से स्व स्वभाव से अनुरूप समान भवांतर होना चाहिये । उ०- -घड़ा भी कर्ता, कररण श्रादि की अपेक्षा रखता है, इस प्रकार यहां भावांतर भी जीव कर्म श्रादि की अपेक्षा रखता है । 'बिना कर्म के स्वभाव से होता हो,' तो भवांतरीय शरीर यह मेघ आदि की भांति अनिश्चित प्राकारवाला होगा, निश्चित प्राकारवाला कैसे ? (७) 'यह भव वैसे स्वभाव से ही समान भवांतर करता है' ऐसा अगर कहो, तो यह बताइये 'स्वभाव' क्या वस्तु है ? क्या वस्तु का स्वभाव यह ( १ ) वस्तु रूप है ? अथवा (२) निष्कारणता रूप है ? या (३) वस्तुधर्म रूप वह होता है ? प्रस्तुत में (१) 'वस्तु' रूप में यह भव लो, तो भवांतर के पहले ही वह तो नष्ट हो चुका, फिर भवांतर में स्वभाव रूप से वह कारण कैसे ? वस्तु-रूप में यदि कारण पकड़ो तो वह अपने प्रति कारण कैसे हो सकता है । (२) निष्कागता कहते हो तो उसमें तो यह श्राया, कि 'भवांतर निष्कारणता से इस भव के समान होता है' । यों जब निष्कारणता ही भवांतर में प्रयोजक है, तब तो ये प्रश्न होते हैं कि ( i ) भवांतर सदृश ही हों, श्रसदृश नहीं, यह कैसे ? (ii) भवोच्छेद क्यों नहीं ? (iii) निश्चित आकार क्यों (iv) एवं भव नित्य सत् हो या नित्य श्रसत् हो, पर कदाचित् सत् क्यों ? ( ३ ) स्वभावरूप से बस्तु-धर्म कहते हो तो यह श्राया कि 'भव वस्तुधर्म से भवांतर समान करता है तब इस भव का ऐसा कौन सा धर्म है जो भवांतर में कारण भूत हो ? मूर्त श्रथवा अमूर्त ? अमूर्त नहीं कह सकते, क्योंकि ऐसे अमूर्त का कार्य मूर्त शरीर सुख-दुःखादि नहीं बन सकता । मूर्त धर्म कहते हो तो 'वह सदा समान ही हो, यह नियम क्यों, कि जिससे यह समान ही भवांतर करे ऐसा कह सकें ? (८) वस्तु स्थिति यह है कि मात्र श्रात्मा का परभव ही क्या, त्रिभुवन में वस्तुमात्र कई पूर्व पर्याय से तदवस्थ रहती हैं तो कई पूर्व पर्याय छोड़कर For Private and Personal Use Only
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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