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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विषय 'विज्ञान घन एव....' का अर्थ, इन्द्रभूति की दीक्षा पृ० सं० गणधर २: श्रग्निभूति कर्म विषयक शंका www.kobatirth.org श्रद्धा की आवश्यकता न दिखने के ११ कारण कर्म की सिद्धि : परलोकी है : कर्म विचार संगत है ( ख ) ३४ ३६ ३७ ४० ४१ कर्म यह हिंसा, राग, द्व ेष श्रोर ४२ कर्म से जन्य हैं । 'अकस्मात् जन्म लेते हैं' के चार अर्थ ४३ पुण्यानुबन्धी श्रादि ४ ४४ ४५ ४७ कर्म - सिद्धि के अनुमान दान - हिंसादि का फल सामग्री समान होने पर भी भेद कर्म से : मूर्त का कारण मूर्त प्राकाशीय विकार प्रनियत, जब सुख दुःखादि नियत प्रमूर्त श्रात्मा को मूर्त कर्म क्यों लगता है ? ईश्वर कर्ता क्यों नहीं ? 'पुरुषेवेदं नि' का अर्थ विधिवाद, श्रर्थवाद, अनुवाद ग्निभूति की दीक्षा ५० कि ५२ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय गणधर ३ - ( वायुभूति ) शरीर ही जीव है या क्या ? पृ० सं० संदेह का कारणः जीव भिन्न इसके तर्क प्रत्येक में हो तभी समुदाय में हो, आवारक व्यंजक नहीं, ज्ञान नियामक ? अथवा प्राण ? मृत्यु होने पर वातपित्तादि समविकार : साध्य अथवा असाध्य ? वस्तु में दीखता धर्म अन्य का कैसे ? गरणधर ४ ( व्यक्त) पंच भूत सत् या प्रसत् सर्वशून्यता के पांच तर्क सर्वशून्यता का खंडन असत् का संदेह नहीं, संदेह हो वह ज्ञानपर्याय : स्वप्न स्वयं असत् नहीं स्वप्न स्वप्न सत्य श्रसत्य आदि भेद क्यों ? For Private and Personal Use Only ५८ ६० श्रात्मा इन्द्रिय से भिन्न क्यों ? शरीर कर्ता नहीं परन्तु कर्म कर्ता: क्षणिकवादी को त्रुटियां : योग-उपयोगलेश्या श्रादि का देह के साथ मेल नहीं ५६ ६२ ६५ ६६ ६८ ६१ ૧૨
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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