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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २ ) इन्द्रिय भिन्न श्रात्मा का साधक अनुमान यह, कि जो जिसकी प्रवृत्ति बंद होने के पश्चात् भी स्मरण-प्रवृत्ति करे, वह उससे भिन्न वस्तु होती है । जैसे मकान के पांच झरोंखों में से देखने के पश्चात् झरोखे बंद होने पर भी, स्मरण - कर्ता भिन्न व्यक्ति है । जैसे झरोखा स्वयं द्रष्टा नहीं है उसी तरह इन्द्रियां भी स्वयं द्रष्टा नहीं हैं; क्योंकि (३) इन्द्रियां स्वयं कार्यव्यस्त न होने पर भी, कभी मन प्रन्यत्र जाने पर अथवा शून्य होने पर, नहीं दीखतीं । ( ४ ) इन्दिय व्यापार बन्द होने पर भी देखी हुई वस्तु का स्मरण होता है । (५) इन्द्रियों के द्वारा देखे जाने के पश्चात् चितन, विकार, प्रातुरता अथवा अस्वीकृति आदि संवेदनों का अनुभव करने वाला अन्दर बैठा हुआ कोई और ही हैं । इससे सूचित होता है कि गवाक्ष की भांति भूतमय इन्द्रियां ही प्रात्मा नहीं हैं, आत्मा तो इन सब साधनभूत पदार्थों का उपयोग करने वाली एक भिन्न व्यक्ति है । (६) जिस तरह किसी को कोई एक गवाक्ष से देख कर दूसरे गवाक्ष बुलाए, वहां इन दोनों गवाक्षों के पास एकीकरण का सामर्थ्य नहीं । श्रतः एकीकरणकर्ता भिन्न व्यक्ति माना जाता है, ठीक इसी तरह प्रांख से किसी को खट्टा श्राम खाते देखकर जीभ अथवा दांत खट्ट े होने का अनुभव होता है, तो उन दोनों इन्द्रियों का सम्मीलित अनुभव करने वाला कोई भिन्न व्यक्ति ही होता है । (७) जैसे किन्ही पांच व्यक्तियों में प्रत्येक को एक एक अलग अलग विषय का ज्ञान हुआ, एक का जो ज्ञान हो वह दूसरे को न हो, फिर भी छठा कोई ऐसा हो कि जिसे इन पांचों का ज्ञान हो, तो वह उन पांचों से भिन्न है, बस इसी तरह पांचों इन्द्रियों से दृष्ट पांचों विषयों का स्मरण कर सकने वाली आत्मा कोई भिन्न ही व्यक्ति होनी चाहिये । कि 'तब क्या यहां ध्यान में रहे For Private and Personal Use Only
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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