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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैं कि जगत में आज तक बहुत ध्यान लगाया परन्तु सब व्यर्थ । अब तो एक मात्र श्री अरिहंत पद का ध्यान धरो "श्री अरिहंत पद ध्याईये, चोत्रीश अतिशयवंता रे, पांत्रीस वाणी गुणे भर्या, बार गुणे गुणवंता रे..." जिनेश्वर देव को प्राप्त कर के भी यदि भारी अनुमोदन और तीव्र तत्त्वजिज्ञासा न हो तो सब व्यर्थ । इन्द्रभूति के पास तो यह है अतः प्रभु इन्हें समझाते हैं कि तुमने वेद वाक्य का'अर्थ इस प्रकार समझा है-'विज्ञानधन'चेतन', 'एतेभ्यो भूतेभ्य एव' =इन पृथ्वी प्रादि पंचभूत में से ही, 'समुत्थाय'= प्रकट-उत्पन्न होकर 'तान्येवानु-विनश्यति--इन भूतों के बिखरने के साथ ही वह चेतना भी नष्ट हो जाती है । 'न प्रत्यसंज्ञा अस्तीति-अन्यत्र जाना होता नहीं'। दूसरी ओर तुम्हें इन्हीं वेद में से 'स्वर्ग कामोऽग्नि होत्रं जुहुयात्-स्वर्ग चाहने वाले को अग्निहोत्र यज्ञ करना चाहिए' ऐसा कथन मिला, जिससे तुम्हें संदेह हुअा कि 'यहां से चेतना का अन्यत्र जाना न हो तो अग्निहोत्र करके स्वर्ग जाना जैसी वस्तु क्या है ? इस जीवन में तो कुछ है नहीं, अन्यत्र हो सकती है कि जहां जीव जाये। तो फिर क्या जीव जैसी कोई वस्तु होगी ?' समझाने की सुन्दर रीति ।-विरोधी को भी तत्व समझाने की जगत् कृपालु की यह कैसी सुन्दर पद्धति ! पहले तो आप विपक्षी के हृदय के भाव तथा उसकी शंकापूर्ण प्रांतरिक परिस्थिति का अनावरण कर देते हैं, अर्थात् स्पष्ट कर के बताते हैं। इसके लिए भी अत्यन्त वात्सल्यपूर्ण शब्दों का प्रयोग करते हैं। शत्रु के गले में भी अपनी बात उतारने का यह अपूर्व मार्ग है। इससे विपक्षी स्नेही बन कर प्राकर्षित होता है तथा इससे उसका कदाग्रह मिट जाता है कि जिससे वह अब सही तर्कों पर सोचता है; अन्यथा जब तक कदाग्रही बना रहता है तब तक अच्छी से अच्छी युक्ति को भी नहीं गिनता । श्री विशेषावश्यक-भाष्य नामक महान् ग्रंथ में पूज्यपाद श्री श्रुतमहोदधि जिनभद्रगरणी क्षमाश्रमण महाराज ने विस्तार पूर्वक गणधर वाद का प्रालेखन किया है। इसमें ११ गणधरों के जीव कर्म आदि के संबंधित संदेहों का भगवान For Private and Personal Use Only
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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