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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir %CROCHAC%AC% प्रसिद्ध हुई । प्रभावक चरित्र में शास्त्रार्थ विषयक उल्लेख को न देख कर, कई सम्प्रदायवादीओं ने फैसला दे दिया कि जिनेश्वररिजी और चैत्यवासियों का सभा में शास्त्रार्थ हुआ ही नहीं, प्रत्युत महाराजा दुर्लभ ने ही उनके गुणों पर मुग्ध हो कर निवास की आज्ञा दे दी, यह कथन सर्वथा प्रान्त है, क्यों कि सुमतिगणि ने बृहवृत्ति में साफ साफ शास्त्रार्थ का विवरणात्मक उल्लेख कर दिया है। १० जना आई। वह है भी सं० १२९५ का, और प्रभावक चरित्र सं. १३३९ का बना हुआ है। यद्यपि बहु संख्यक ऐतिहासिक विद्वान जैसे कि आचार्य म, श्री सागरानंदसूरिजी, मुनि फैल्याणविजयजी, आदि कों का 11 मन्तव्य है कि चौदहवीं शताब्दि के पूर्व खरतर शब्द का उल्लेख शिलालेख और ग्रन्थों में देखने में नहीं आता, उनके कथन में जरा भी सत्यता नहीं है । इतने बडे भारी विद्वान हो कर बिना खोज किये ही, किसी भी विषय पर अंतिम निर्णय देना कोई बुद्धिमानी का काम नहीं है, खरतर शब्द बारहवीं शताब्दी के कतिपय ग्रन्थों में उपलब्ध होता है पर गच्छव्यामोह से न दिखता हो तो हम कुछ नहीं कह सकते। खरतर शब्द पुरातन साहित्य में बहुत जगह पर व्यवहृत पाया गया है, जिनमे से कुछ का उल्लेख पाठकों के सम्मुख उपस्थित करने का लोभ संवरण नहीं कर सकते। ४१ बालुचरना कृत्रिम लेखने बाद करतां कोई प्रतिमाजी आदिना लेखमा १२०४ पहेला तो शुं ! पण १४ मी सीमा खरतर विरुदनी बात होय तो लखवी. सिद्धचक ०४, अं २१, पृ. ४८९ ४२ " उसी टौका में (गणधरसार्द्धशतक) सुमतिगणिने श्री जिनदत्तरि का भी सविस्तार चरित्र दिया है पर कही भी “ खरतर गच्छ" अथवा “खरतर" शब्द का सूचन नहीं मिलता । इन बातों से हमने जो कुछ सोचा और समझा उसका सार यही है कि चौदहवी सदी के पहिले के शिलालेखों और प्रन्थों में "गच्छ" शब्द के पूर्व में "खरतर" शब्द का प्रयोग नहीं हुआ।" श्री जनसत्यप्रकाश व. ५०, अं..,पृ. २६८ FACHECCALCAGACHAR For Private and Personal Use Only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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