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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AE+%A4 %AE%E5 %AE%ES &ा कहा हम ब्राह्मण हैं, और चार वेदों का अध्ययन किया हैं। इस से पुरोहित की प्रीति और भी दृढ हो गइ । I जब चैत्यवासीयों को विदित हुआ कि, सुविहित मुनि अपनी राजधानी में आये है, और ठहरे हैं भी राजपुरोहित के वहां !। तब उनके द्वारा इन मुनियों को यहां से अतिशीघ्र प्रस्थान करवाने के प्रयत्न सोचे जाने लगे। यहां तक नौबत आ गई कि, चैत्यवासीयों ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया “ आप शीघ्र नगर का परित्याग कर बाहर चले जाइये क्यों कि चैत्यबाह्य श्वेतांबरो को है यहां स्थान नही है, परंतु मुनियोंने कुछ प्रत्युत्तर न दिया । पुरोहितने ही उन्हें शान्ति से समझा वापिस लौटा दिये, तब चैत्यवासीगण महाराज दुर्लभराज चौलुक्य (राज्यकाल वि० सं० १०६६-७८) के पास जा कर अपना सार्वभौमिक इतिहास उपस्थित किया । बात यह थी कि अणहिलपुर पाटन के प्रस्थापक महाराज बनराज चावड़े का बाल्यकाल में पालनपोषण चैत्यवासी शीलगुणसूरि और देवचन्द्रसूरिने किया था। राज्याभिषेक भी उन्हीं ने किया था, इस के प्रत्युपकार के समय में और सम्प्रदाय विरोध के भय से पाटन में मात्र चैत्यवासी मुनि हीं रह सकते हैं, जैन श्वेतांबर मुनि नहीं, ऐसा लेख वनराज ने इन लोगों को लिख दिया था, यही महाराजा दूर्लभ के सामने पेश किया, और उन लोगों ने उपदेश दिया कि पूर्वपुरुषों का कथन आप को मान्य रखना चाहिये। ३४. तपसा तापसो शेयो, ब्रह्मचर्य ब्राह्मण। पापानि परिहरंव, परिबाजोऽभिधीयते गण० बृहद्वृति ॥ ३५. ऊचुश्च ते झटित्येव, गम्यतां नगराद् बहिः । अस्मिन्न लभ्यते स्थातुं, चैत्यबाह्यसितांबरैः ॥ ६४ ॥ ३६. चैत्यगच्छ यतिवात, सम्मतो वसतान्मुनिः, । नगरे मुनिभित्रि वस्तव्य तदसम्मतैः ॥ ६ ॥ प्रभावक चरित्र पृ. १६३ । SADSOCTOMORRORRECR For Private and Personal Use Only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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