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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गणघर साई शतकम् । ॥ १३ ॥ www.kobatirth.org वज्रस्वामी: - इनका वृत्तांत वृहद्वृत्ति एवं परिशिष्ट पर्व में अत्यन्त विस्तृत रूपेणोपलब्ध होता । आप वैश्य जातीय धनगिरिपत्नी सुनंदा के पुत्र थे । आपने जगन्नाथपुरी के बौद्ध राजा को प्रतिबोधित कर जैन बनाया। राजा का नाम ज्ञात नहीं। आप कई विद्याओं के धारक प्रभावक आचार्य, तथा दश पूर्वधर थे। आपकी जीवन घटना से विदित होता है कि उस समय चैत्यवासियों का प्राबल्य था । इ० स० ५८ में आपको देहोत्सर्ग हुआ । आर्थरक्षितः ये मालवदेशीय दशपुर - मन्दसौर के निवासी थे। आप जाति से विप्र, धर्म से जैन थे। आपने पाटलीपुत्रका अध्ययन किया था । उपरोक्त भद्रगुप्ताचार्य पास आपने जैन साहित्य के चार अनुयोग प्रथक् प्रथक् किये । उमास्वाति वाचक: ये आर्यमहागिरि के शिष्य बलिस्सह के शिष्य थे । इसे दि० उमास्वामी कहते हैं"। जैन साहित्य में इनका स्थान अत्यन्त - - पटना में १४ विधाओं १६. अज्ञानि ६ चत्वारो वेदा ४, मीमांसा - ११ न्यायविस्तरः ७२ पुराणं १३ धर्मशास्त्र १४ च विद्या एतचतुर्दशः ॥ १ ॥ १७. आर्यमहागिरेस्तु शिष्यौ बहुलबलिस्हौ यमलभ्रातरौ तत्र बलिस्सहस्य शिष्यः स्वातिः तत्वार्थादयो प्रन्यास्तु तत्कृता एवं सम्भाव्यन्ते धर्मसागरीय पट्टावली । १८. यह नाम उपयुक्त नही मालूम होता: इनके मातापिता का नाम उमा, स्वाति, क्रमशः था। अतः इन्होंने मातापिताकी स्मृतिरूप में भी यदि नाम रखा हो तो भी उमास्वाति ही अधिकः युक्तिसंगत मालूम होता है जैसे कि बप्पभट्टीसूरि । For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका । ॥ १३ ॥
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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