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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra DE प्रकीर्णक । इस में अन्त के ६ इस पद के १,२,३ और ६ ये चार अपवर्तन हैं इन में – १,२ र ३ इन तीनों को य के समान मान के उद्दिष्ट पद में घ का अलग २ उत्थापन करने से उद्दिष्ट पद का मान • होता है । इस लिये उद्दिष्ट पद में य + १, य १२ और य + ३ ये तीन खण्ड हैं : +२ - ५६ - ६ = (य + १) (य - २) (य + ३) । उदा० (३) य' – रे - ४० युक्पद हों उन को अलग करो । उदा० (४) य - ७८ + उन को अलग करो । www.kobatirth.org इस में अन्त के २१ इस पद के १, ३, ० और २१ इतने अपवर्तन हैं इन में केवल + ३ और - ० इन दो अपवर्तनों से उत्थापन करने से उद्दिष्ट पद का मान होता है । इस लिये य ३ और य +9 इन दोनों द्वियुक्पदों से उद्दिष्ट पद निःशेष होगा । ० : - ३ - ४० य े + १०९ य - २१ = (य- ३) (+3 ) (घ२ - ५८ + १) । - १२ इस में जो खण्ड द्वियुक्पद हों पद दृढ है यहां अन्त के १२ इस पद के १, २, ३, ४, ६ और १२ इतने अपवर्तन हैं इन में चाहो उस अपवर्तन से उत्थापन करो तो भी उद्दिष्ट पद का मान शून्य नहीं होता इस लिये यह बहुयुक्पद किसी द्वियुक्पद से निःशेष न होगा | और जब कि इस में मुख्य अक्षर का सब से बड़ा घात घन है इस लिये यह और भी किसी से निःशेष न होगा इस लिये यह उद्दिष्ट I Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस प्रकार की उपपत्ति । + १०९६ - २१ इस में जो खण्ड द्वि जब कि (य- अ) (य-क) = यर ( + क) य + क -- (घ) (य-क) (य-ग) = य - (अ + क+ग) य + (अक + अ + कग) य - अकग, इत्यादि । इस में स्पष्ट दिखाई देता है कि य- अ, य • क इत्यादि ऐसे द्वियुक्पदों For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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