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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६६ प्रकीर्णक । ३ ८२ + ३ १२ + ३ ल' अर्थात् ३ (य' + र + ल') > (थ + श् + ल)’ यो उपपन्न हुआ । इसीयुक्ति से ४ (य' + r° + ल‍ + व े) > ( + र + ल + ब) र इत्यादि भी तुरन्त उपपच होता है । (४) तीन विषम राशियों के गुणनफल को उन तीन राशियों के योग से गुण देओ तो उस गुणनफल से भी उन तीन राशियों के चतुघोतों का योग बड़ा होता है । इस की उपपति । ऊपर के दूसरे सिद्धान्त के अनुसार जब कि य + र + ल > यर + यल + रल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तो इसमें य, र, ल दून के स्थान में उन के वर्गों को रखने से स्पष्ट है कि य* + r* + ल* > य ेr + य ेल' + ₹ल यों होगा और जब कि थ' + १' > २ यर इस लिये 'ल' + 'ल' > २ यरल । इसी भांति सिद्ध होता है कि यर + र ेल > २३ घरल और यह + य ल > २यरल और अब कि अधिक पक्षों का योग न्यून पत्तों के योग से बड़ा हि होता है । .: २८१२+२'ल' + २'ल' > २यरल + २याल + २ ल अर्थात् श् + य ेल' + र 'ल' > यरल (य + र + ल) În sat fag fanar fa a® + c*+a” >q2°C2 + q?a2 + c2a2 दस से अति स्पष्ट है कि य* + * + ल > यरल (य + र + ल ) यह उपपत्र हुआ । (५) यस सिद्ध करो कि जब य‍ होता है। 1 से पर न्यून +क और र = अ-क तो अ न्यास । य अ + क और ₹ = - क पहिले दो पक्षों में क्रम से दूसरे दोनों पक्षों को जोड़ देने से, For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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