SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तर, (३) ६४ ४ इस प्रकार से भी यर + ३ य ऊपर पूर्व प्रकार से मिला है । इसी भांति जब कि वर्गपूल का घनमूल अथवा घनमूल का वर्गमूल पघातमूल होता है और वर्गमूल के वर्गमूल का वर्गमूल राष्टघातमूल होता है इस लिये षड्धानमूल वा अष्टघातमूल जानना हो तो उक्त के अनुसार बार२ मूल लेने से भी अभीष्टमूल मिलेगा । अभ्यास के लिये और उदाहरण । क्या है ? (१) ४९ अ° + ७० अक्रय + २५ कय इस का वर्गमूल क्या है? उत्तर, ७ + ५ कय । - (३) * – २*य े + ३ अथ – २ अ + य' इस का वर्गमूल क्या है ? - य + ये ? | www.kobatirth.org (६) मूलःक्रया उत्तर, કા ३ यह वही चतुर्थीतमूल मिला नो उत्तर, .(४) २७ ३ – ५४ अ° + ३६ (७) ६४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ अश्क + २७४४ अकरें + २४०१ क इस का वर्गमूल ८२ - २८ चक्र - ४९ करे । उत्तर ३-२। (५) थ + १५ अय़ े + ७५ अ + १२५ * इस का घनमूल कहो । उतर य+५द्म । मिक्लो । *' + २७ र ६० इस का ग्र-३ । - ८ इस का घनमूल क्या है ? de घनमूल ३३६ र + ५८८ घर - ३४३ र इस का ४५ - २१ । For Private and Personal Use Only 'घनमूल जानो । उत्तर, (5) ¥€ + 2 **2 + 8€ q° उत्तर, चा' + ४ को (C) अ + ३ अभ्य ५ अ + ३ अथ' – व' इस का घनमूल क्या है ? उत्तर, चा + त्राय य | क यह किस का घन है ?
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy