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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - घातक्रिया। ४७ उदा० (२) अ+ क इस के वर्ग, धन इत्यादि कुछ घात करो। न्यास। अ+क अ +क अर+अक + क+कर ( +क)२% अ+२ अक+कर अ + क अ+२ + प्रकर + अक+२अकर+करे (अ+क)३ = +३ अक+३अक+करे अ+क अ+३ अक+३ अकर+ अकर + अक+३ अकर+अक+क' (अ+क) = अ +8 अक+६अकर+8 अक+क अ+क + 8 अक+ कर+8 अकन अक: + अक+ ४ अक+६अक+४ अक + कर (+क) = अ +५ अक+१० अकर+१० अक+५अक+क इस से यह स्पष्ट है कि अ+ क ऐसे दियुक्यद के वर्गादिघातों में पहिले पद में मूल के पहिले पद का घात रहता है और उस का घातमापक क्रम से दो, तीन इत्यादि होता है । और उस से उत्तरोत्तर पदों में जो मूल के पहिले पद के घात हैं उन में हर एक के घात. मापक की संख्या में एक २ न्यन होता जाता है । और घातों के दूसरे पद में मूल के दूसरे पद के घात का घातमापक १ होता है और उस से उत्तरोत्तर पदों में जो मूल के दूसरे पद के घात हैं उन में हर एक के घासमापक की संख्या में एक २ अधिक होता जाता है और घातों के दूसरे पद का वारद्योतक घातमापक के समान होता है। :: (अ+क)न = अन+नअन-क+न, अन-रक+न, अन-क+दु०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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