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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भागहार। न्यास। १२ अंक-१८ अकमरे -- १६ अकरें - --- =२ अ.-३कगः ६अक -अकरे। तीसरा प्रकार । जब भाज्य और भाजक दोनो संयुक्त पद वा केवल भाजक ही संयुक्त पद है। (३) रीति । यहां भाज्य भाजकों को व्यक्त गणित की रीति से इस भांति लिखो कि उन दोनों में किसी एक गुणरूप अतर के घातों के घातमापक उत्तरोत्तर घटते हुए वा बढ़ते हुए रहें। यों लिखने से भाज्य भाजकों में जिन गुणरूप अक्षरों के घातों के घातमापक उत्तरोत्तर घटते हुए वा बढ़ते हुए होंगे उन अक्षरों को मुख्य अक्षर कहो । अब भाजक के पहिले केवलपद का भाज्य के पहिले केवलपद में भाग देने से जो फल आने के योग्य हो उस को भजनफल के स्थानपर लिख के उस से समय भानक को गुण के उस गुणनफल को भाज्य में घटा देओ फिर जो शेष बचे उस को भाज्य मान के फिर पर्ववत विधि करो। ऐसा वारंवार तब तक करो जब तक शेष कुछ न बचे वा जब तक भाजक के पहिले पद का भाज्य के पहिले पद में भाग देने से जो फल आने के योग्य हो उस के छेद स्थान में कोई मुख्य अतर आवे । भानक का भाज्य में भाग देने से जो शेष कुछ न रहे तो भजन' फल के स्थानपर जितने पद पाए होंगे वह पूरा भजनफल है। और जो कछ शेष रहा हो तो उस को और भाजक को क्रम से अंश और छेद समझ के उन से जो एक भित्र पर बनेगा उस को भजनफल के स्थान पर जो पद हैं उन के पीछे लिख देनो यों करने से भजनफल के स्थान पर जो बनेगा सो पूरा भननफल है। + १९ अक+१५ करे इस में ३ अ+५क इस का उदा० (१) ६ भाग देओ। For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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