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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोष्ठ । २८। जब सजातीय संकलनीय पदों के चिह्न विजातीय हैं तब यदि वारद्योतक केवल-पद हों तो उन केवल पदों को अपने २ धन श्ण चिह्न के साथ एक कोष्ठ में लिख के उस कोष्ठ के आदि में धन चिह्न लिखो और उस कोष्ठ के पीछे सजातीय पद लिख देओ। और यदि वारद्योतक संयुक्त पद हों तो वहां जितने संकलनीय पद ऋण चिह्न से जुड़े होंगे उन को (२६) वे प्रक्रम के अनुसार धन चिह्न से युक्त करो वा जितने धन चिह से युक्त होंगे उनको (२) के प्रक्रम से ऋण चिह से युक्त करो यो संकलनीय पदों के चिहों को सजातीय कर के (२७) वे प्रक्रम से उन का योग करो। उदा० (१) ३ अयं +३ पर (२). (३-२क) र-(च+जन कय -२ फर (२-५कर+(३१- जाल . -५ गय -४ बर (अ+४कर-(एच+२न)ल (३ +क-५गय+ (प-२फ-४बर।( +कार-(७च+रज)ल जिन सजातीय दो पदों के वारयोतक अतरात्मक हैं उन का व्यवकलन । २९ । रीति । घटाने के पद का धन ऋण चिह्न पलटा के अव्यत्रहित प्रक्रमों से योग करो। ___ उदा० (१) अय-कल .. (२) (अ- प) य+ ( ग+५फ) र गय+घल (२+३प)य- (४ग- फ) र (अ-ग) य- (क+घ) ल। (५ -४५) य+ (५ग+४ फ)र । - अभ्यास के लिये और उदाहरण ।। (१) अघ-घर+२जल,कय-३चर-झल और गय-४कर +१२ल इन का योग क्या होता है ? उत्तर, ( + क+ ग) य-(घ+३ +४छ) र + (२न- झ+१२)ल । . For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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