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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इष्टकर्म और द्वीष्टकर्म । सर १८। जब कि एकवर्णएकघातसमीकरणसम्बन्धि प्रश्न मात्र में अय + क और गय + घ ऐसे दो समान पत उत्पच होते हैं यह स्पष्ट है। रस लिये इन दो पत्तों का अन्तर अवश्य • होगा . अर्थात अय+क- (गय+घ) = . (अ-ग) य+ (क-घ) . . अब ऐसे प्रश्न में नो अव्यक्तराशि का मान इष्ट अर्थात् चाहो सो मानो जैसा इ तो स्पष्ट है कि इस से प्रश्न की बोली के अनुसार जो प्रद + क और गइ + घ, ये दो पत उत्पन्न होंगे ये परस्पर समान न होंगे इस लिये इन का अन्तर • नहीं होगा। तो मानो कि इन दो पता का अन्तर न है। अर्थात् अइ + क- (गइ + घ) = न .:. (अ-ग) + (क-घ) =न और ऊपर का समीकरण, (अ-ग) य+ (क-घ) = • अन्तर करने से, (अ-ग) (इ-य) = न .. इसी प्रकार से जो अव्यक्तराशि का मान कोर दूसरा इष्ट जैसा उ मानो और इस दुष्ट से जो दो पक्ष होंगे उन का अन्तर म मानो तो ऊपर की युक्ति से (अ-ग) (उ-य) = म, यह समीकरण उत्पत्र होगा। :: भागहार से अ-गा(हु-या = में । अर्थात हु-य- न वा, मह-मय = नउ-नय .. (न-म) य = नउ-मद . और य = नर-मई ---- इस प्रकार से एकवर्णएकघातसमीकरणसम्बन्धि प्रश्नों के उत्तर के लिये य= नउ-मह यह बीजसूत्र है । इस से उन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये नीचे लिखा हुआ सामान्य विधि उत्पत्र होता है। इस को द्वीष्टकर्म कहते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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