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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org समीकरणसम्बन्धि प्रश्न । aa art जिस मार्ग में अपनी एकरूप गति से आता था उसी मार्ग पर वह रहस्य भी उस क्षेत्र को पकड़ने के लिये चानी एकरूप गति चला । यह पहिले दो घण्टे तक इसी अपनी चाल से चला और तत्र यह जाना कि चार मेरे से हर घण्टे में ५ है कोस अधिक चलता है । इस लिये उस ने तुरंत अपनी गति को दूना किया और जब वह घर से चला उस काल से ५ घण्टे में चोर को पकड़ा। तो चोर एक घण्टे मैं कितना चलता था और वह गृहस्य आरम्भ में एक घण्टे में कितना चलता था और उस ने अपने घर से कितने अन्तर पर चोर को पकड़ा सो कहो ? Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर, चोर हर घण्टे में 8 ३ कोस चलता था, गृहस्य पहिले र घण्टे में 2 कोस चलता था, और अपने घर से २९कोस पर चोर को पकड़ा । ४ (६०) और क इन दो मनुष्यों को एक महाजन का कुछ २ ऋण था । चा ने महाजन को कुछ रुपये देके अपना कृप दूर किया और इसी भांति क ने अपना ऋण दूर किया । तब को जिवना ऋण शेष बचा उस से क को तिगुन ऋण बचा । जो इन को और तीन २ सौ रुपये अधिक ऋण ह्येता और वे इसी भांति ऋण दूर करते तो के शेष ऋण से क का शेष ऋण दूना होता तो और क को कितना र ऋण था ? अ उत्तर, को ३७५ रुपये और क को १५०० रुपये प । (६८) किसी महाजन के पास कुछ गो घर पर थीं और कुछ गांव पर थीं । उन में हर महीने में घर की एक २ गौ को पांच २ रुपया और गांव फ्री एक २ को दो २ रुपया लगता था । इस से मांत्र की सब गौधों के लिये जितना द्रव्य लगता था उस के दूने से एक रुपया अधिक इतना घर की सब गाँवों के लिये लगता था । तब उस महाजन ने घर १८ For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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