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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्र - क + ग एकवर्ण एकघातसमीकरया । (३९) अ (अय-२क)- य (क-गर) = अर+क-ग (२ अय+ग), इस में +क -ग (४०) (+य) (अ+२य) + (+२ य) (अ+३य) -(प्र-य) (अ-२ य) =२(अ+य) ( +३य), . इस में ८४। जिस उद्दिष्ट समीकरण में अव्यक्त एक धा अनेक सच्छेद पदों में पड़ा है उसकी सक्रिया । रीति । उद्दिष्ट समीकरण में (EE) वे प्रक्रम से छेदगम करके सब छेदों को उड़ा देओ। फिर उस की समक्रिया ऊपर के प्रक्रम से तुरंत होगी। __ जाना चाहिये कि इस में जो सच्छेद पद के अंश में वा छेद में सच्छेद पद आवे तो उद सच्छेद पदके अंश और छेत्र इन दोनों को ऐसे एक हि पद से गुण देओ कि जिससे उस पद के अंश में वा छेद में केव न रहे फिर पति रीति से समक्रिया करो। उदा० (१) १-= ५-यू, इस में य का मान क्या है। यहां छेदगम करने से अर्थात्, १२ दस वेदों के लघुतमापवर्त्य से हर एक पद को गुण देने से, ६य-४ य%D६०-३य :. २य+३ य = ६०; घा, ५ य = ६० ।। और य= = १२ । उदा० (२) य ११ + २य- = ४.य, इस में य कितना है? यहां छेदगम करने से अर्थात समीकरण को ६ (य + १) + * (२ य - ७) = (४ य+9) . इस भांति लिख के दोनो पक्षों को ३० इस छेदों के लघुतमापवर्त्य से गुण देने से, ५(३+ १) + ३ (२ य.- ७) = व मा For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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