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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकवर्ण एकघातसमीकरण । १६५ को केवल वर्गसमीकरण कहते हैं और जिस में अव्यक्त का वर्ग और उस का एक घात भी रहता है उस को मध्यमाहरण कहते हैं। जैसे। अय + क = ०, यह केवल वर्गसमीकरण है। और अय + कय = ग, यह मध्यमाहरण । इसी भांति घनसमीकरण, चतुर्यातसमीकरण, इत्यादि जानो और भी साधारण रीति से। य+लय + थर्य + . . . . + फय + बय +भ = . इस में अव्यक्त का सब से बड़ा घात म यह है इस लिये इस को मघातसमीकरण करते हैं। २ एक्रवर्ण एकघातसमीकरण । ८३। जिस उद्दिष्ट समीकरण में अध्यक्त किसी सच्छेद पद में नहीं पड़ा है उस की सक्रिया। रीति । उद्दिष्ट समीकरण में जितने अव्यक्त के पद होंगे उन सभों को पक्षान्तर नयन से = इस चिह्न की बांई ओर के पक्ष में कर देओ और जितने व्यक्त पद होंगे उन को दहनी ओर की पक्ष में कर देओ । फिर उस अव्यक्त के पदों का और उन व्यक्त पदों का अलग २ योग करो। यों करने से बांई ओर के पक्ष में अव्यक्त का नो वारद्योतक हो उस का दहनी ओर के पक्ष में भाग देने से उस अव्यक्त का मान लब्ध होता है। भास्कराचार्य जी ने भी कहा है कि एकाव्यक्तं शोधयेदन्यपता पाण्यन्यस्येतरस्माच्च पक्षात् । शेषाव्यक्तनोडरेट्रपशेषं व्यक्तं मान जायतेऽव्यक्तराशेः ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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